मकोका | मुकदमा चलाने की अनुमति से इनकार न्यायिक हिरासत के विस्तार के आदेश को अमान्य नहीं करता: बॉम्बे हाईकोर्ट

Avanish Pathak

3 Jan 2023 9:22 AM GMT

  • मकोका | मुकदमा चलाने की अनुमति से इनकार न्यायिक हिरासत के विस्तार के आदेश को अमान्य नहीं करता: बॉम्बे हाईकोर्ट

    Bombay High Court

    बॉम्बे हाईकोर्ट ने हाल ही में एक मामले में कहा कि अदालत जब किसी आरोपी की न्यायिक हिरासत बढ़ा देती है तो मुकदमा चलाने की मंजूरी से इनकार हिरासत के बढ़ाने को अमान्य नहीं कर देता।

    उक्त टिप्पणी के साथ कोर्ट ने महाराष्ट्र संगठित अपराध नियंत्रण अधिनियम, 1999 के तहत एक मामले में डिफॉल्ट जमानत देने से इनकार कर दिया।

    कोर्ट ने कहा,

    "एक बार, जब विशेष अदालत ने कारण बताते हुए जांच की अवधि को 180 दिनों तक बढ़ा दिया है तो मुकदमे की मंजूरी से इनकार से विशेष अदालत द्वारा दी गई 90 दिनों की विस्तारित अवधि खत्म नहीं होगी या यहां तक कि विशेष अदालत द्वारा दी गई विस्तारित अवधि भी कम नहीं होगी।"

    जस्टिस सुनील बी शुक्रे और जस्टिस एम डब्ल्यू चंदवानी की नागपुर स्थिति खंडपीठ ने कहा कि मकोका के तहत स्पेशल जज द्वारा न्यायिक हिरासत को 90 दिनों तक बढ़ाने की शक्ति और मकोका के तहत अभियोजन की अनुमति देने के लिए अतिरिक्त डीजीपी की शक्ति के अलग-अलग उद्देश्य हैं।

    अदालत ने कहा, "दूसरे शब्दों में, न्यायिक हिरासत बढ़ाने की शक्ति जांच की सुविधा के लिए मौजूद है, जबकि अनुमति की शक्ति अभियुक्तों के मुकदमे की सुविधा के लिए है।"

    अदालत ने सीआरपीसी की धारा 167(2) के तहत सात पुरुषों को डिफ़ॉल्ट जमानत से मजिस्ट्रेट के इनकार के आदेश के खिलाफ दायर एक रिट याचिका खारिज कर दी।

    याचिकाकर्ताओं पर धारा 302, 307, 324, 143, 147, 148 आईपीसी, सहपठित धारा 149 आईपीसी और महाराष्ट्र पुलिस अधिनियम, 1951 की धारा 135 के तहत मुकदमा चलाया जा रहा है। अभियोजन पक्ष ने मकोका की धारा 3(1) (ऑर्गनाइज्ड क्राइम का अपराध) और 3(4) (ऑर्गनाइज्ड क्राइम सिंडिकेट की सदस्यता) को भी लागू किया था। स्पेशल जज ने 23 अगस्त, 2022 तक न्यायिक हिरासत 90 दिनों के लिए बढ़ा दी। 22 अगस्त, 2022 को एडीजीपी ने उन पर मकोका के तहत मुकदमा चलाने की अनुमति देने से इनकार कर दिया। उसी दिन याचीगण ने डिफॉल्ट जमानत के लिए आवेदन दिया। जांच अधिकारी ने उसी दिन चार्जशीट भी फाइल कर दी थी।

    न्यायिक दंडाधिकारी प्रथम श्रेणी ने याचिकाकर्ताओं को डिफॉल्ट जमानत देने से इनकार कर दिया। अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश के समक्ष उनकी पुनरीक्षण याचिका खारिज कर दी गई।

    एपीपी एसएम घोडेश्वर ने प्रस्तुत किया कि याचिकाकर्ताओं को डिफॉल्ट जमानत का अपरिहार्य अधिकार नहीं है क्योंकि विस्तारित अवधि 23 अगस्त, 2022 को समाप्त होनी थी और चार्जशीट 22 अगस्त, 2022 को दायर की गई थी।

    सीआरपीसी की धारा 167(2) में प्रावधान है कि यदि जांच 24 घंटे के भीतर पूरी नहीं होती है तो मजिस्ट्रेट कुल 90 दिनों की अवधि के लिए अभियुक्त को हिरासत में रखने का अधिकार दे सकता है, यदि जांच मृत्यु, आजीवन कारावास या न्यूनतम 10 वर्ष की अवधि के लिए कारावास से दंडनीय अपराधों के बारे में है। मकोका की धारा 21(2)(बी) के तहत इस अवधि को और 90 दिनों के लिए बढ़ाया जा सकता है।

    अगर जांच एजेंसी 90 दिनों या बढ़ाई गई अवधि के भीतर चार्जशीट दाखिल नहीं करती है तो हिरासत में लिए गए आरोपी को जमानत पर रिहा करना होता है।

    मकोका की धारा 23 के तहत, एक विशेष अदालत मकोका के तहत किसी भी अपराध का संज्ञान एडीजीपी रैंक के पुलिस अधिकारी की पूर्व मंजूरी के बिना नहीं ले सकती है।

    अदालत ने कहा कि न्यायिक हिरासत को बढ़ाने की शक्ति का प्रयोग अदालत द्वारा किया जाता है जबकि मुकदमा चलाने की अनुमति देने या अस्वीकार करने की शक्ति का प्रयोग एक पुलिस अधिकारी द्वारा किया जाता है। यह हिरासत बिना किसी बाधा के प्रभावी और त्वरित जांच सुनिश्चित करने के लिए है, जबकि विशेष अदालत को मकोका के तहत अपराध का संज्ञान लेने में सक्षम बनाने के लिए मंजूरी आवश्यक है।

    कोर्ट ने कहा,

    इस प्रकार ये दोनों शक्तियां अलग-अलग क्षेत्रों में कार्य करती हैं। किसी विशेष मामले में आवश्यक जांच के परिमाण पर विचार करने के बाद, विशेष न्यायाधीश हिरासत अवधि बढ़ाकर गहन जांच में सक्षम बनाता है, और जबकि विशेष द्वारा संज्ञान लेने पर मकोका अधिनियम की धारा 23 (2) द्वारा एक प्रतिबंध लगाया गया है। एडीजीपी की पूर्व अनुमति के बिना इस प्रकार के एम्बार्गो को शामिल करने का उद्देश्य कानून के कड़े प्रावधानों के तहत किसी को भी शामिल करने से पहले डबल फिल्टर प्रदान करना है।

    कोर्ट ने कहा,

    वर्तमान मामले में, हिरासत को एक अदालत ने धारा 21(2)(बी) मकोका के तहत एक तर्कपूर्ण आदेश के साथ अधिकृत किया था, जो अंतिम हो गया क्योंकि इसे कभी चुनौती नहीं दी गई थी। इसलिए, 90 दिनों के बाद याचिकाकर्ताओं की हिरासत अनधिकृत नहीं है।

    अदालत ने यह भी कहा कि याचिकाकर्ताओं ने यह तर्क नहीं दिया कि अभियोजन पक्ष ने दुर्भावनापूर्ण तरीके से काम किया और केवल उन्हें हिरासत में लेने के लिए मकोका लगाया।

    इसलिए, अदालत ने कहा कि एक बार विशेष अदालत ने जांच की अवधि को 180 दिनों तक बढ़ा दिया है, मंजूरी से इनकार करने से विस्तारित अवधि समाप्त नहीं होगी या विशेष अदालत द्वारा दी गई विस्तारित अवधि को भी कम कर दिया जाएगा।

    अदालत ने यह मानते हुए इस मुद्दे पर दूसरे कोण से विचार किया कि मंजूरी से इनकार का मतलब यह होगा कि चार्जशीट में मकोका के तहत कोई अपराध नहीं किया गया है। अदालत ने कहा कि परिणाम यह होगा कि हिरासत विस्तार आदेश उस दिन के अंत में प्रभावी होना बंद हो जाएगा जिस दिन मंजूरी से इनकार किया जाता है और उस दिन तक विस्तार आदेश मान्य होगा।

    अदालत ने कहा कि हालांकि याचिकाकर्ताओं ने चार्जशीट दायर होने से 30 मिनट पहले जमानत के लिए आवेदन किया था, जबकि डिफॉल्ट जमानत मांगने का अधिकार अगले दिन ही पैदा होगा।

    कोर्ट ने कहा कि सीआरपीसी की धारा 167 (2) के तहत किए गए प्रावधान घंटे, मिनट और सेकंड के संदर्भ में नहीं, बल्कि केवल पूरे किए गए दिनों की संख्या के संदर्भ में बोलते हैं। इस तर्क से, चूंकि 22 अगस्त, 2022 को मंजूरी से इनकार कर दिया गया था, वह दिन उनकी अधिकृत हिरासत का आखिरी दिन बन गया। इसलिए, सीआरपीसी की धारा 167(2) के तहत डिफॉल्ट जमानत का लाभ उठाने का अधिकार 23 अगस्त, 2022 से ही उनके पक्ष में आया।

    इसलिए, याचिकाकर्ताओं का आवेदन समय से पहले दायर किया गया था जिस दिन उन्हें डिफॉल्ट जमानत का अधिकार नहीं था, इस प्रकार अदालत ने याचिका खारिज कर दी।

    केस टाइटलः नरेश पुत्र नेतराम नागपुरे व अन्य बनाम महाराष्ट्र राज्य

    केस नंबरः क्रिमिनल रिट पिटीशन नंबर 817 ऑफ 2022

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