वैवाहिक विवाद में कोई अवैध कस्टडी नहीं: कलकत्ता हाईकोर्ट ने कस्टडी के लिए पिता की बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका खारिज की
Shahadat
3 March 2023 10:57 AM IST
कलकत्ता हाईकोर्ट ने बुधवार को पिता द्वारा दायर बंदी प्रत्यक्षीकरण रिट याचिका को इस आधार पर खारिज कर दिया कि बाल कस्टडी मामलों में संरक्षक और प्रतिपाल्य अधिनियम के तहत सामान्य उपाय उपलब्ध है।
जस्टिस तपब्रत चक्रवर्ती और जस्टिस पार्थ सारथी चटर्जी की खंडपीठ ने कहा,
"निर्विवाद रूप से याचिकाकर्ता और उसकी पत्नी के बीच वैवाहिक विवाद है। पक्षकारों द्वारा एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगाए गए हैं, जिनकी साक्ष्य के संदर्भ में जांच किए जाने की आवश्यकता है।"
खंडपीठ ने कहा,
"अधिनियम VIII के तहत जांच और रिट कोर्ट द्वारा शक्तियों के प्रयोग के बीच महत्वपूर्ण अंतर हैं, जो संक्षिप्त प्रकृति का है।"
याचिकाकर्ता का मामला है कि उसकी पत्नी अपने नाबालिग बच्चों और सास-ससुर के साथ 19 नवंबर, 2022 को शादी समारोह में शामिल होने के लिए हैदराबाद में ससुराल से निकली थी। वह अपने नाबालिग बच्चों के साथ ट्रेन से उतर गई। अपने सास-ससुर को आश्वासन दिया कि वह अपने बच्चों के साथ विवाह समारोह में शामिल होगी।
याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया कि हालांकि, याचिकाकर्ता की पत्नी द्वारा कोई सूचना नहीं दी गई और तब से वह अपने बच्चों के साथ लापता है।
याचिकाकर्ता ने कहा कि उसने पुलिस और बाल कल्याण समिति से संपर्क किया, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं की गई। इसलिए याचिकाकर्ता ने हाईकोर्ट के समक्ष बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दायर की।
याचिकाकर्ता के वकील अयान पोद्दार ने अदालत के समक्ष प्रस्तुत किया कि याचिकाकर्ता अपने बच्चों का प्राकृतिक अभिभावक है और याचिकाकर्ता की पत्नी को बच्चों की कस्टडी सौंपने का निर्देश दिया जाना चाहिए।
उन्होंने आगे कहा कि बच्चों की कस्टडी के मुद्दे के निर्धारण के लिए यह पक्षकारों का अधिकार नहीं है, बल्कि बच्चों का कल्याण है, जो निर्णायक महत्व का है।
राज्य की ओर से पेश वकील सिमंत कबीर ने कहा कि याचिकाकर्ता और उसकी पत्नी के बीच वैवाहिक विवाद है। यह भी बताया गया कि याचिकाकर्ता की पत्नी ने भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 498ए, धारा 406 और धारा 3 और उसके पति और ससुराल वालों के खिलाफ दहेज निषेध अधिनियम की धारा 4 के तहत शिकायत दर्ज कराई। हालांकि, उन्हें इस मामले में जमानत दे दी गई।
राज्य के वकील द्वारा यह भी प्रस्तुत किया गया कि बच्चे वर्तमान में अपनी मां के साथ अपने पैतृक घर में रह रहे हैं और याचिकाकर्ता के नाबालिग बेटे को स्कूल में भर्ती कराया गया है।
अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता और उसकी पत्नी के बीच भौतिक विवाद है और रिकॉर्ड पर ऐसी कोई सामग्री नहीं है, जो यह दर्शाती हो कि याचिकाकर्ता की पत्नी और उसके बच्चों को अवैध रूप से कस्टडी में लिया गया।
अदालत ने आगे कहा,
"हमारे सामने रखी गई दलीलों और दस्तावेजों से हमें यह निष्कर्ष निकालने के लिए कोई ठोस सामग्री नहीं मिली कि नाबालिग बच्चों का कल्याण ख़तरे में है।"
तदनुसार, अदालत ने रिट याचिका खारिज कर दी।
केस टाइटल: सैकत घोष बनाम पश्चिम बंगाल राज्य व अन्य।
कोरम: जस्टिस तापब्रत चक्रवर्ती और जस्टिस पार्थ सारथी चटर्जी
ऑर्डर डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें