विवाहित महिला यह दावा नहीं कर सकती कि किसी आदमी ने शादी का वादा तोड़कर उसे धोखा दिया गया: कर्नाटक हाईकोर्ट
Avanish Pathak
21 Jun 2023 4:18 PM IST
कर्नाटक हाईकोर्ट ने हाल ही में एक विवाहित महिला द्वारा एक व्यक्ति के खिलाफ दर्ज एफआईआर को रद्द कर दिया, जिसमें शिकायत की गई थी कि उस व्यक्ति ने उसे धोखा दिया क्योंकि वह उससे शादी करने का अपना वादा पूरा करने में विफल रहा।
जस्टिस एम नागप्रसन्ना की सिंगल जज बेंच ने व्यक्ति की याचिका को खारिज करने की अनुमति दी और कहा,
"धोखाधड़ी का आरोप इस आधार पर लगाया जाता है कि याचिकाकर्ता ने शादी का वादा तोड़ा है। शिकायतकर्ता ने स्वीकार किया कि वह पहले से ही शादीशुदा है और इस शादी से उसका एक बच्चा भी है। अगर वह पहले से शादीशुदा है तो शादी का वादा तोड़ने पर धोखा देने का सवाल ही नहीं उठता। इसलिए, उक्त अपराध भी याचिकाकर्ता के खिलाफ नहीं लगाया जा सकता है।
याचिकाकर्ता पर भारतीय दंड संहिता की धारा 498ए, 504, 507 और 417 के तहत आरोप लगाए गए थे। शिकायतकर्ता ने दावा किया कि वह शादीशुदा है और उसकी एक बेटी भी है लेकिन उसके पति ने उन्हें छोड़ दिया। उसने याचिकाकर्ता से काम पर मुलाकात का का दावा किया और यह आरोप लगाया कि याचिकाकर्ता ने आश्वासन दिया था कि वह उससे शादी करेगा।
शिकायतकर्ता ने कहा कि याचिकाकर्ता ने उसे शादी का आश्वासन देकर संबंध बनाने का लालच दिया और चूंकि उसने अपना वादा नहीं निभाया, इसलिए उसने शिकायत दर्ज कराई।
याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि उसने शिकायतकर्ता की तब मदद की जब उसे सख्त जरूरत थी। हालांकि, उसने उसे कभी आश्वासन नहीं दिया कि वह उससे शादी करेगा, क्योंकि शिकायतकर्ता पहले से ही शादीशुदा थी और उसका एक बच्चा भी था। इसके अलावा, जब तक वह शादी से बाहर नहीं आती, तब तक यह आरोप भी कायम नहीं रह सकता कि याचिकाकर्ता ने उससे शादी करने का वादा किया था।
रिकॉर्ड देखने पर पीठ ने पाया कि याचिकाकर्ता मलेशिया में था और रहने के उद्देश्य से शिकायतकर्ता को पैसे भेजता था। इसलिए शिकायतकर्ता ने दावा किया कि उसमें पति होने के गुण हैं। उसने आरोप लगाया कि बाद में उसने कॉल का जवाब देना बंद कर दिया।
कोर्ट ने कहा कि यह साबित करने के लिए कोई दस्तावेज पेश नहीं किया गया कि याचिकाकर्ता कभी भी शिकायतकर्ता का पति था।
“कथित अपराध आईपीसी की धारा 498ए के तहत एक दंडनीय अपराध है। यह प्रदर्शित करने के लिए कोई दस्तावेज भी नहीं है कि याचिकाकर्ता और प्रथम प्रतिवादी विवाहित हैं। शिकायतकर्ता ने वास्तव में स्वीकार किया है कि वह पहले से ही शादीशुदा है और उक्त विवाह से उसका एक बच्चा भी है।
कोर्ट ने कहा कि अगर शिकायतकर्ता पहले से ही शादीशुदा है तो यह समझ में नहीं आता कि वह यह दावा कैसे कर सकती है कि याचिकाकर्ता उसका पति है।
कोर्ट ने कहा,
"शिकायतकर्ता की आपत्ति यह नहीं बताती है कि उसने अपने पहले पति से तलाक की डिक्री हासिल कर ली है। जब उक्त विवाह अभी भी चल रहा है, तो शायद ही यह कहा जा सकता है कि याचिकाकर्ता उसका पति है और शिकायतकर्ता और उसकी बेटी को भरण-पोषण की जरूरत है।"
महिला को मासिक रूप से कुछ राशि देने के पहलू पर पीठ ने कहा,
"केवल इसलिए कि याचिकाकर्ता ने शिकायतकर्ता की जरूरत के लिए कुछ समय के लिए कुछ पैसे भेजे हैं, यह नहीं कहा जा सकता है कि याचिकाकर्ता को शिकायतकर्ता और याचिकाकर्ता के बीच बिना किसी कानूनी बंधन शिकायतकर्ता का भरणपोषण करना चाहिए।”
तदनुसार, अदालत ने शिकायत को खारिज कर दिया।
केस टाइटल: प्रजित आर और XXX और अन्य।
केस नंबर : क्रिमिनल पेटिशन नंबर 544 ऑफ 2021
साइटेशन: 2023 लाइव लॉ (कर) 232