खाप पंचायत की इच्छा के खिलाफ की शादी, जेएनयू के विवाहित युगल ने कहा, होस्टल है अब हमारा एकमात्र घर : दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा, विवाहित जोड़े को होस्टल में आने से न रोकें

LiveLaw News Network

4 July 2020 8:20 PM IST

  • खाप पंचायत की इच्छा के खिलाफ की शादी, जेएनयू के विवाहित युगल ने कहा, होस्टल है अब हमारा एकमात्र घर : दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा, विवाहित जोड़े को होस्टल में आने से न रोकें

    दिल्ली हाईकोर्ट ने उस युगल जोड़े को राहत प्रदान कर दी है, जिसे रिसर्च के फील्ड वर्क से वापस लौटने के बाद जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के विवाहित युगल छात्रावास में फिर से प्रवेश करने की अनुमति देने से इनकार कर दिया गया था।

    न्यायमूर्ति नजमी वजिरी की एकल पीठ ने इस मामले में विश्वविद्यालय द्वारा दिए गए आश्वासन को रिकॉर्ड पर ले लिया है। विवि की तरफ से कहा गया है कि कि विशेष परिस्थितियों को देखते हुए इस दंपति को कुछ शर्तों के साथ छात्रावास में फिर से प्रवेश की अनुमति दे दी जाएगी।

    याचिकाकर्ता लड़के ने दलील दी थी कि वह अपनी पत्नी के साथ पिछले पांच वर्षों से जेएनयू के विवाहित युगल के छात्रावास में रह रहा है।

    राष्ट्रव्यापी लाॅकडाउन शुरू होने से ठीक पहले वह अपनी जीवनसाथी के साथ कुछ फील्ड वर्क के लिए निकल गया था। हाल ही में उन्होंने जब विश्वविद्यालय में फिर से प्रवेश करने की कोशिश की, तो उन्हें प्रवेश देने से मना कर दिया गया। उन्हें उनके व्यक्तिगत सामान तक पहुंचने से भी रोक दिया गया, जबकि पिछले कुछ सालों से ये हाॅस्टल ही उनका एकमात्र आश्रय स्थल है।

    याचिकाकर्ता ने अदालत को बताया कि उसने परिवार की इच्छाओं और खाप पंचायत के खिलाफ जाकर अपनी जीवनसाथी से शादी की थी। इसलिए, वह अपने पैतृक घर में वापस नहीं जा सकता।

    याचिकाकर्ता ने यह भी बताया कि उनके पास न तो कोई वैकल्पिक आवास है और न ही महामारी के दौर में उन्हें कोई आश्रय देगा।

    उनकी याचिका के जवाब में विश्वविद्यालय ने कहा कि-

    -याचिकाकर्ता ने अपने जीवनसाथी के साथ फील्ड कार्य पर जाने से पहले इस बारे में विश्वविद्यालय को कोई सूचना नहीं दी थी।

    -लाॅकडाउन शुरू होने से पहले फील्ड के कार्य के लिए याचिकाकर्ता जहां पर ठहरा हुआ था, उसे वहां पर अपने रहने की अवधि को बढ़ा लेना चाहिए था।

    -याचिकाकर्ता की जीवनसाथी की प्रस्तावित परीक्षाएं स्थगित कर दी गई हैं।

    अदालत ने कहा कि विश्वविद्यालय का विवाहित युगल के लिए बना छात्रावास ही एकमात्र ऐसा घर है जहां पर याचिकाकर्ता और उनकी जीवनसाथी पिछले कुछ वर्षों से रह रहे हैं। ऐसे में कानून की उचित प्रक्रिया के बिना उनको इस छात्रावास में प्रवेश करने से वंचित नहीं किया जा सकता है।

    अदालत ने कहा कि-

    'वे किसी फील्ड वर्क से बाहर गए थे, सिर्फ इस आधार पर उनको दोबारा प्रवेश से वंचित नहीं किया जा सकता। उनके पास जाने के लिए कोई अन्य जगह नहीं है और विशेष रूप से इस महामारी के समय में याचिकाकर्ता द्वारा कोशिश करने के बाद भी उनको जल्दी से कोई वैकल्पिक आवास प्राप्त होने की संभावना नहीं है। चूंकि उनको हाॅस्टल आवंटित हुआ था,इसलिए अब उस अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता है। न ही उन्हें आवंटित आवास में रहने से रोका जाना चाहिए।'

    अदालत ही इन टिप्पणियों को ध्यान में रखते हुए विश्वविद्यालय के लिए पेश होने वाले वकील ने विश्वविद्यालय से आगे के निर्देश लिए। उसके बाद अदालत को बताया गया कि विश्वविद्यालय ने याचिकाकर्ता के मामले पर पुनर्विचार किया है और उसकी विशेष परिस्थितियों के कारण, उसे और उसकी जीवनसाथी को फिर से प्रवेश की अनुमति दे दी जाएगी और उन्हें उनको आवंटित विश्वविद्यालय आवास में रहने दिया जाएगा।

    हालांकि, विश्वविद्यालय के वकील ने यह भी बताया कि इस पुनर्विचार को एक मिसाल के रूप में उद्धृत नहीं किया जा सकता है, क्योंकि यह केवल इस मामले के अजीब तथ्यों और परिस्थितियों को देखते हुए किया गया है।

    याचिका का निपटारा करते हुए अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता को विश्वविद्यालय के उस सर्कुलर का पालन करना होगा,जिसमें आयुष मंत्रालय द्वारा जारी नियमों का हवाला दिया गया है। इन नियमों में COVID19 महामारी के प्रसार को रोकने के लिए अपनाए जाने वाले एहतियाती उपाय भी बताए गए हैं।

    आदेश की प्रति डाउनलोड करें



    Next Story