विवाह कैजुअल किस्म की बात नहीं; यह पश्चिमी व्यवस्था नहीं हैं जहां आप आज विवाह करें और कल तलाक ले लें: सुप्रीम कोर्ट
Avanish Pathak
14 Oct 2022 6:13 PM IST
एक पत्नी की ओर से अपने विवाह को बचाने के लिए सुप्रीम कोर्ट के समक्ष दायर एक स्थानांतरण याचिका में गुरुवार बहुत ही नाटकीय मोड़ आ गया।
मामले की सुनवाई के दरमियान जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस अभय श्रीनिवास ओका की बेंच ने विवाह पर कुछ महत्वपूर्ण टिप्पणियां कीं और कहा कि कैसे किसी को अपने पार्टनर से असंभव की उम्मीद नहीं करनी चाहिए, बल्कि पति और पत्नी की ओर से लगाए गए आरोपों को भी देखना चाहिए।
सुनवाई के दरमियान पत्नी ने बेंच को बताया कि वह अपनी वैवाहिक जीवन को दोबारा शुरु करना चाहती है, जबकि पति ने कहा कि उनका विवाह अब दोबारा न जुड़ पाने की स्थिति तक टूट गया है, इसलिए स्थानांतरण याचिका को रद्द कर देना चाहिए।
पति ने कहा कि वे दोनों केवल 40 दिनों तक साथ रहे और लगभग दो साल से अलग रह रहे हैं।
"हम अब अजनबी के अलावा कुछ नहीं हैं।"
पत्नी की ओर से पेश वकील ने जब कहा कि वह अपने विवाह को एक और मौका देना चाहती है, तब पीठ ने कहा, "यह सुनकर हमें बहुत खुशी हुई। लेकिन दोनों पक्षों को विवाह को बचाना चाहिए। हम (अदालत) शादी को नहीं बचा सकते।"
सुनवाई की शुरुआत में बेंच का विचार था कि दोनों पक्ष अलग होना चाहते हैं, इसलिए कहा, "दो युवाओं को, जिनके आगे पूरा जीवन है, किसी ऐसी चीज के लिए मजबूर क्यों करें जो काम नहीं कर रही है?"
अदालत के समक्ष पेश पति ने बताया कि उसकी शादी एक "हनी ट्रैप" थी और उसकी पत्नी को केवल उसके पैसे में दिलचस्पी थी। पति ने कोर्ट को बताया कि पत्नी की ओर से सेटलमेंट के लिए दो करोड़ रुपये का दावा किया गया था।
पत्नी ने अपनी पक्ष रखते हुए कहा कि वह कनाडा में काम कर रही थी और COVID-19 लॉकडाउन के दरमियान भारत आई थी। उसने आरोप लगाया, "पति ने मेरी जिंदगी और मेरे करियर को बर्बाद कर दिया।"
कुछ देर तक दलीलें सुनने के बाद जस्टिस कौल ने कहा, "जब दो अच्छे लोग नहीं मिल सकते तो क्या करें?"
कोर्ट ने कहा कि वह दो लोगों को एक साथ रहने के लिए मजबूर नहीं कर सकता।
पति ने दलील दी,
"आदरणीय, मैं अपने माता-पिता के साथ रहता हूं और मैं बुढ़ापे में बड़ों की सेवा करने पर भरोसा करता हूं। और उनका (पत्नी का) कनाडाई दृष्टिकोण है कि हमें अपने माता-पिता के साथ नहीं रहना चाहिए। यह मेरे मूल्यों और संस्कृति का हिस्सा नहीं है।"
हालांकि बेंच का विचार था,
"माता-पिता की देखभाल करना एक बात है। या तो आपको विवाह नहीं करना चाहिए था और केवल अपने माता-पिता की देखभाल करनी चाहिए, या, आपको ऐसे परिदृश्य में विवाह करना चाहिए, जहां महिला काम नहीं कर रही हो और आपके माता-पिता की देखभाल करे। आप ऐसी महिला से विवाह करते हैं, जो कनाडा में रह रही है, और अब आप उससे सब कुछ खत्म करने और यहां आने के लिए कहते हैं, यह कैसे संभव है……?"
बेंच ने कहा कि यह ऐसा मामला नहीं है, जहां अनुच्छेद 142 के तहत शक्तियों का इस्तेमाल किया जा सकता है।
"ऐसा मामला नहीं है, जहां दोनों पक्ष अलग-अलग रहते हैं, जहां विवाह विफल हो चुका है और हम अनुच्छेद 142 के तहत शक्तियों का प्रयोग कर सकते हैं। यह ऐसा मामला नहीं है जहां हम स्वत: संज्ञान लेकर 142 का प्रयोग कर सकते हैं। इस बात पर संतुष्ट हो पाना बहुत मुश्किल है कि विवाह पूरी तरह से टूट गया है, जब तक कि दोनों पक्ष यह न कहें कि विवाह टूट गया है।"
हलफनामों और दोनों पक्षों की दलीलों अवलोकन के बाद अदालत ने कहा कि सभी आरोप "मूर्खतापूर्ण" प्रतीत होते हैं।
"दरअसल, अगर मैं "मूर्खतापूर्ण" शब्द का उपयोग करूं तो दोनों पक्षों की ओर से कुछ मतभेद हैं, लेकिन यह विवाह के टूटने की स्थिति तक नहीं पहुंचे हैं। और शादी ऐसी कैजुअल बात नहीं है। यह पश्चिमी व्यवस्था नहीं हैं, जहां आप आज शादी करें और कल तलाक ले लें। हम उन तरीकों को यहां नहीं थोप सकते ... दोनों पक्ष उस मुकाम पर नहीं पहुंचे हैं, जहां विवाह में कुछ भी बचा न हो। मुझे भरोसा नहीं है कि कोशिश की गई है।"
बेंच ने दंपति को निजी मध्यस्थता कार्यवाही के लिए आग्रह करने का सुझाव देते हुए कहा, "यदि दोनों पक्ष अलग होना चाहते हैं, यदि वे पश्चिमी दर्शन के प्रभाव में हैं तो हम अनुमति देते। लेकिन यह एकतरफा नहीं हो सकता।"