निजता, स्वायत्तता के अधिकार को प्रभावहीन नहीं करता विवाह: पति के आधार की जानकारी मांगने वाली पत्नी की आरटीआई पर कर्नाटक हाईकोर्ट ने कहा

LiveLaw News Network

28 Nov 2023 12:56 PM GMT

  • निजता, स्वायत्तता के अधिकार को प्रभावहीन नहीं करता विवाह: पति के आधार की जानकारी मांगने वाली पत्नी की आरटीआई पर कर्नाटक हाईकोर्ट ने कहा

    कर्नाटक हाईकोर्ट की सिंगल बेंच ने एक आदेश को रद्द कर दिया, जिसमें यूआईडीएआई को एक आधार कार्ड धारक को सुनवाई का नोटिस जारी करने का निर्देश दिया गया था।

    आधार कार्ड धारक की पत्नी ने आधार की निजी जानकारी, जैसे उसकी नौकरी का पता आदि जानने के लिए एक आरटीआई आवेदन दायर किया था, ताकि भरण-पोषण के आदेश को लागू किया जा सके।

    एकल पीठ ने सहायक महानिदेशक, केंद्रीय लोक सूचना अधिकारी, यूआईडीएआई को सुनवाई/जांच करने और यह तय करने का निर्देश दिया था कि क्या पति के आधार विवरण उसकी पत्नी को बताए जा सकते हैं।

    यह देखते हुए कि आधार अधिनियम के तहत जानकारी प्रकट करने का आदेश केवल हाईकोर्ट का जज दे सकता है, न कि यूआईडीएआई अधिकारी, जस्टिस एस सुनील दत्त यादव और ज‌स्टिस विजयकुमार ए पाटिल की खंडपीठ ने सिंगल जज बेंच के आदेश को खारिज कर दिया।

    उन्होंने कहा "आधार धारक की निजता का अधिकार व्यक्ति की निजता के अधिकार की स्वायत्तता को सुरक्षित रखता है, जिसे प्रधान माना गया है और वैधानिक योजना के तहत इसमें कोई अपवाद नहीं है। विवाह का रिश्ता, जो दो भागीदारों का मिलन है, निजता के अधिकार पर ग्रहण नहीं लगाता है। निजता का अध‌िकार एक व्यक्ति का अधिकार है, और ऐसे अधिकार की स्वायत्तता धारा 33 के तहत सुनवाई की प्रक्रिया के तहत मान्यता प्राप्त और संरक्षित है।"

    पीठ ने कहा, “यह एक स्थापित सिद्धांत है कि, यदि अधिनियम यह प्रावधान करता है कि किसी विशेष कार्य को एक विशेष तरीके से किया जाना है, तो इसे उसी तरीके से किया जाना चाहिए या बिल्कुल नहीं किया जाना चाहिए। इसके मुताबिक, विद्वान एकल न्यायाधीश मामले को तीसरे प्रतिवादी-केंद्रीय लोक सूचना अधिकारी (यूआईडीएआई) को नहीं भेज सकता था।''

    मामला

    मामले में सूचना का अधिकार अधिनियम के तहत किए गए अनुरोधों को खारिज कर दिए जाने के बाद याचिकाकर्ता पी लावण्या ने अपने भरण-पोषण आदेश को लागू करने के लिए अपने पति के व्यक्तिगत विवरण की मांग करते हुए अदालत का दरवाजा खटखटाया था। प्राधिकरण ने तर्क दिया कि एकल न्यायाधीश का निर्देश आधार अधिनियम की धारा 33 के तहत शासनादेश का उल्लंघन है।

    अपीलकर्ताओं ने तर्क दिया कि आधार धारक की जानकारी के खुलासे से संबंधित आधार अधिनियम की संशोधित धारा 33 के साथ-साथ ऐसी जानकारी का खुलासा करने से पहले सुनवाई हाईकोर्ट के जज द्वारा की जानी थी।

    यह प्रस्तुत किया गया कि आधार अधिनियम की धारा 33 में यह संशोधन केएस पुट्टास्वामी (सेवानिवृत्त) और अन्य (आधार) बनाम यून‌ियन ऑफ इंडिया और अन्य (2018) मामले में माननीय सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के अनुसार किया गया था, जो संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत निजता के अधिकार को मौलिक अधिकार के रूप में पढ़ता है।

    संशोधित धारा 33(1) का जिक्र करते हुए पीठ ने कहा, "अपीलकर्ताओं के वकील का यह तर्क कि आधार अधिनियम की धारा 33(1) का कड़ाई से पालन होना चाहिए, स्वीकार किया जाना चाहिए।"

    कोर्ट ने कहा कि माननीय शीर्ष न्यायालय की ओर से केएस पुट्टास्वामी (सुप्रा) मामले में की गई टिप्पणियों के आधार पर, जिस व्यक्ति की जानकारी का खुलासा करने की मांग की गई है, उसे आधार अधिनियम की धारा 33(1) के अनुसार इस तरह के खुलासे से पहले अपना मामला सामने रखने का अधिकार है।

    अदालत ने पत्नी की ओर से दिए गए इस अंडरटेकिंग को स्वीकार कर लिया कि एकल पीठ के समक्ष चल रही रिट कार्यवाही में पति को प्रतिवादी बनाने के लिए आवश्यक संशोधन किया जाएगा।

    उसी के मुताबिक, कोर्ट ने आदेश को रद्द कर दिया और मामले को नए सिरे से विचार के लिए वापस भेज दिया।

    साइटेशन नंबर: 2023 लाइव लॉ (कर) 451

    केस टाइटलः उप महानिदेशक और एफएए केंद्रीय लोक सूचना अधिकारी और अन्य और पी लावण्या और अन्य।

    केस नंबर: रिट अपील नंबर 100406/2023

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