मैंगलुरु फायरिंगः पुलिस के खिलाफ दायर शिकायतों पर कार्रवाई न करने के मामले में कर्नाटक हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को लगाई फटकार
LiveLaw News Network
29 Feb 2020 2:52 PM IST
कर्नाटक हाईकोर्ट ने प्रथम दृष्टया पाया है कि 19 दिसंबर 2019 को मैंगलुरु पुलिस द्वारा की गोलीबारी में मारे गए दोनों व्यक्तियों के परिवार के सदस्यों और इस घटना के पीड़ितों द्वारा की गई शिकायतों पर पुलिस द्वारा भेजे गए अनुमोदन या एंडाॅर्समन्ट को वापिस लिया जाए , क्योंकि एफआईआर के पंजीकरण के बिना, पुलिस इस निष्कर्ष पर नहीं पहुंच सकती है कि शिकायत झूठी है। नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) के विरोध में निकाली गई रैली में पुलिस गोलीबारी की घटना हुई थी।
मुख्य न्यायाधीश अभय ओका और न्यायमूर्ति हेमंत चंदनगौदर की खंडपीठ ने इस संबंध में निर्देश लेने के लिए एडवोकेट जनरल, (एजी) प्रभुलिंग नवदगी को 17 मार्च तक का समय दे दिया है।
पिछली सुनवाई में याचिकाकर्ता एचएस डोरेस्वामी की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता रवि वर्मा कुमार ने तर्क दिया था कि ''पीड़ितों द्वारा की शिकायत के बाद एक भी मामला दर्ज नहीं किया गया है।'' अपने जवाब में, एजी ने कहा था कि जांच को स्थानीय पुलिस से सीआईडी को हस्तांतरित कर दी गई है। सभी शिकायतों को समर्थित कर दिया गया है और नई जांच एजेंसी को सौंप दिया गया है।
पिछली सुनवाई पर अदालत ने निर्देश दिया था कि निजी व्यक्तियों द्वारा इस घटना पर बनाए वीडियो क्लिप को एकत्रित किया जाए या मंगवाया जाए। इस निर्देश के संबंध में अपना जवाब दायर करते हुए जगदीशा, उपायुक्त और जिला मजिस्ट्रेट, उडुपी जिला की तरफ से एक हलफनामा दायर किया गया था जिसमें बताया गया था कि उन्होंने प्रकाशन जारी कर आम जनता और मीडिया के लोगों से विडियो क्लिप पेश करने के लिए कहा था। जिसके बाद, एक व्यक्ति ने एक कॉम्पैक्ट डिस्क और पेन ड्राइव दी थी जिसमें 50 वीडियो क्लिपिंग थी।
उन्होंने यह भी बताया था कि 19 फरवरी 2020 को, एक व्यक्ति ने सोशल मीडिया की कुछ वीडियो क्लिपिंग की एक कॉम्पैक्ट डिस्क और पेन ड्राइव उनको सौंपी थी। हालांकि, इसे स्वीकार नहीं किया गया था क्योंकि उक्त रिपोर्ट की वास्तविकता पर विश्वास करना संभव नहीं था।
एजी ने अदालत में यह भी बताया कि सरकार ने इस घटना की मजिस्ट्रियल या अदालती जांच के आदेश दिए हैं जो 24 मार्च 2020 को पूरी होने की संभावना है।
102 वर्षीय, स्वतंत्रता सेनानी, एचएस. डोरस्वामी ने अपनी याचिका में बताया था कि पुलिस ने मंगलौर शहर में घटना के संबंध में लगभग 32 एफआईआर दर्ज की हैं। कुछ एफआईआर दर्ज की गई हैं जो अज्ञात व्यक्तियों के खिलाफ है,जिनको ''अज्ञात मुस्लिम युवा''के रूप में संदर्भित किया गया हैं। शिकायतों को देखने के बाद पाया गया है कि पुलिस फायरिंग या लाठीचार्ज के कारण व्यक्तियों को लगी चोट के लिए पुलिस कर्मियों के खिलाफ कोई शिकायत नहीं है। हालांकि, प्रदर्शनकारियों और दर्शकों पर अंधाधुंध प्रहार किया गया था।
यह भी कहा गया कि उत्तर प्रदेश और दिल्ली में भी ऐसी ही हिंसा हुई है। उत्तर प्रदेश में हुई हिंसा के मामले में, इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक पत्र को जनहित याचिका में बदल दिया है और उत्तर प्रदेश सरकार को नोटिस जारी किया है। इसके अलावा, प्रतिवादी की कार्रवाई अवैध, मनमानी, दुर्भावनापूर्ण और गलत है, जो कि भारत के संविधान के भाग तीन( III) के प्रावधानों के तहत गारंटीकृत मूलभूत अधिकारों का स्पष्ट उल्लंघन है।
याचिका में अनुरोध किया गया है कि प्रतिवादी को परमादेश दिया जाए कि वह कानून के उचित प्रावधान के तहत मृतकों के परिवार के सदस्यों और विभिन्न घायल व्यक्तियों से प्राप्त सभी शिकायत के आधार पर प्रथम सूचना रिपोर्ट या एफआईआर दर्ज करें। इसके अलावा, एक विशेष जांच दल का गठन करने के लिए आवश्यक कदम उठाएं,जिसमें वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों को शामिल किया जाए और इस दल की अध्यक्षता अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक के रैंक से नीचे का अधिकारी न करें। न्याय के हित व निष्पक्षता के लिए यह जांच दल माननीय न्यायालय की सीधी निगरानी में मंगलौर में 19 दिसम्बर 2019 की हुई घटना के संबंध में दर्ज एफआईआर की जांच करें।