मैनेजर ने कर्मचारी से लेखा बहियों की अनियमितता को स्पष्ट करने के लिए कहा था, यह आईपीसी की धारा 306 के तहत आत्महत्या के लिए उकसाना नहीं: गुजरात हाईकोर्ट

Avanish Pathak

24 March 2023 10:59 AM GMT

  • मैनेजर ने कर्मचारी से लेखा बहियों की अनियमितता को स्पष्ट करने के लिए कहा था, यह आईपीसी की धारा 306 के तहत आत्महत्या के लिए उकसाना नहीं: गुजरात हाईकोर्ट

    Gujarat High Court

    गुजरात हाईकोर्ट के हाल ही में एक फैसले में स्पष्ट किया कि एक प्रबंधक का अपने कर्मचारी से लेखा बहियों में क‌थित अनियमितताओं के बारे में बताने के लिए कहना आईपीसी की धारा 306 के तहत आत्महत्या के लिए उकसाने की श्रेणी में नहीं आता।

    जस्टिस हेमंत एम प्रच्छक की पीठ ने कहा,

    "अगर व्यक्ति भावुक है और चरम फैसला करता है तो यह प्रश्नगत अपराध के लिए उकसाने के समान नहीं होगा, इसलिए आईपीसी की धारा 114 सहपठित धारा 306 के तहत अपराध की सामग्री नहीं बनेगी।"

    मामले में याचिकाकर्ता एक पेट्रोल पंप का प्रबंधक है। उसने मृतक पर कदाचार और गबन का संदेह किया था और उसे बिक्री और भुगतान के संबंध में खाते के पूरे विवरण के बारे में जानकारी मांगी थी।

    हालांकि, मृतक ने जल्द ही खुद पर ज्वलनशील पदार्थ डालकर आत्महत्या कर ली।

    इसके बाद, मृतक की पत्नी ने याचिकाकर्ताओं के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई। उसने आरोप लगाया कि उन्होंने मृतक पर दबाव बनाया, खातों के संबंध में झूठे और तुच्छ आरोप लगाए और उसे धमकी दी, जिसके कारण उसने आत्महत्या कर ली।

    याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश सीनियर एडवोकेट यतिन ओझा ने तर्क दिया कि आईपीसी की धारा 306 के तहत दंडनीय आत्महत्या के आरोप के लिए, यह आवश्यक है कि आईपीसी की धारा 107 के तहत वर्णित अपमान मौजूद होना चाहिए, जिसके न होने पर धारा 306 के तहत दर्ज एफआईआर को रद्द किया जा सकता है।

    दूसरी ओर अतिरिक्त लोक अभियोजक हिमांशु पटेल ने तर्क दिया कि याचिकाकर्ताओं पर गंभीर आरोप लगाए गए हैं और यहां तक कि चार्जशीट भी दायर की गई है। खाते के संबंध में, याचिकाकर्ताओं ने मृतक के खिलाफ झूठे आरोप लगाए हैं और इसलिए, उन्होंने मृतक को आत्महत्या जैसे कठोर कदम को उठाने के लिए मजबूर किया है।

    जस्टिस प्रच्छक ने न‌िष्कर्ष में कहा,

    "वर्तमान मामले के तथ्यों को ध्यान में रखते हुए और एफआईआर में दिए गए बयानों पर विचार करते हुए, मेरी राय है कि याचिकाकर्ताओं के खिलाफ एफआईआर में लगाए गए आरोप को आईपीसी की धारा 114 के साथ धारा 306 को आकर्ष‌ित नहीं करते हैं।

    चूंकि विवाद स्पष्ट रूप से ऐसी प्रकृति का है, जहां पेट्रोल पंप चलाने वाले व्यक्तियों ने निश्चित रूप से खाते के बारे में पूछा है, क्योंकि पैसे पाने के बाद पेट्रोलियम पदार्थ बेचे गए हैं और यदि मृतक ने पैसे जमा नहीं किए हैं तो वे निश्चित रूप से मृतक से पूछ सकते हैं कि खाते में राशि क्यों नहीं डाली। यह आत्महत्या करने के लिए उकसाने के बराबर नहीं है, विशेष रूप से इसे आईपीसी की धारा 114 और 306 के प्रावधानों के तहत नहीं लाया जा सकता है।”

    कोर्ट ने कहा कि चार्जशीट के कागजात से ऐसा कुछ भी नहीं मिला है जो यह दर्शाता हो कि याचिकाकर्ताओं ने इस तरह से काम किया कि उन्होंने मृतक को आत्महत्या के लिए उकसाया या उन्होंने अपराध के लिए उकसाया।

    जियो वर्गीज बनाम राजस्थान राज्य और अन्य 2021 एससीसी ऑनलाइन एससी 873, मदन मोहन सिंह बनाम गुजरात राज्य और अन्य (2010) 8 एससीसी 628, एके चौधरी बनाम गुजरात राज्य [2005] 3 जीएलएच 444 इम्तियाज गफर सुपेदीवाला बनाम गुजरात राज्य, 19.10.2010 विशेष आपराधिक आवेदन संख्या 2063/2010, संजय कनकमल अग्रवाल बनाम गुजरात राज्य 27.6.2022 आपराधिक विविध आवेदन संख्या 19305/2020 में सुप्रीम कोर्ट के फैसलों पर भरोसा करते हुए कोर्ट ने कहा, "जब वर्तमान याचिकाकर्ताओं के खिलाफ यह इंगित करने के लिए कोई सामग्री नहीं है कि उन्होंने या तो मृतक को भड़काया है या आत्महत्या के लिए उकसाया है, तो वर्तमान एफआईआर को रद्द करने और उससे पैदा सभी परिणामी कार्यवाही को रद्द करने की आवश्यकता है।

    केस टाइटल: रतिलाल कालिदास वर्मा बनाम गुजरात राज्य R/CRIMINAL MISC.APPLICATION NO. 2390 of 2022

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