पति ने धोखाधड़ी से तलाक की एक-पक्षीय डिक्री प्राप्त की, उत्तराखंड हाईकोर्ट ने उसे 50 हजार रुपये का भुगतान करने का निर्देश दिया

Avanish Pathak

9 Oct 2022 9:45 AM GMT

  • पति ने धोखाधड़ी से तलाक की एक-पक्षीय डिक्री प्राप्त की, उत्तराखंड हाईकोर्ट ने उसे 50 हजार रुपये का भुगतान करने का निर्देश दिया

    उत्तराखंड हाईकोर्ट ने हाल ही में यह जानने के बाद कि तलाक की एक पक्षीय डिक्री पाने के लिए उसे गुमराह किया गया है, एक व्यक्ति को अपने वेतन से 50 हजार रुपये का भुगतान करने का आदेश दिया। अदालत ने उसे चार सप्ताह के भीतर राज्य कानूनी सेवा प्राधिकरण के पास रुपये जमा करने का आदेश दिया।

    दरअसल, पति पत्नी के साथ रहता था और उसने उसे अंधेरे में रखते हुए गलत तरीके से उसका हस्ताक्षर प्राप्त किया था। उसने पत्नी से कहा कि किसी केस के सिलसिले में हस्ताक्षर की आवश्यकता है, और उस हस्ताक्षर के जर‌िए वह एक पक्षीय तलाक पाने के कामयाब रहा।

    उसने कोर्ट के समक्ष यह दिखाय था कि कि उसकी पत्नी को तलाक की कार्यवाही की जानकारी दी गई है और वह 'उनसे सहमत' है।

    मामले के तथ्यों को ध्यान में रखते हुए, चीफ जस्टिस विपिन सांघी और जस्टिस रमेश चंद्र खुल्बे की पीठ ने कहा कि पति ने अपने आचरण से विवाह की संस्था को गंभीर रूप से कमजोर किया है, जो हिंदुओं के बीच पवित्र है।

    कोर्ट ने यह भी कहा कि अगर उसे तलाक लेना था तो उसे तलाक की याचिका दायर करने से पहले अपनी पत्नी से निष्पक्ष और पूरी तरह से अलग हो जाना चाहिए था, और उसे उसके साथ नहीं रहना चाहिए था।

    कोर्ट ने कहा,

    "वह तलाक की याचिका दायर करने और एकतरफा तलाक पाने के बाद भी पति के रूप में उसके साथ रहना जारी रखा। केवल एक निष्कर्ष जो हम निकाल सकते हैं वह यह है कि अपीलकर्ता ने समन पर हस्ताक्षर पाने के लिए पत्नी को गुमराह किया, और यह दिखाने के लिए कि उसे तलाक की कार्यवाही की जानकारी दी गई थी, प्रोसेस सर्वर रिपोर्ट प्राप्त की जबकि उसने उक्त घटनाक्रम से पूरी तरह से अनभिज्ञता रहते हुए अपीलकर्ता के साथ पत्नी के रूप में रहना जारी रखा।"

    अदालत ने अपीलकर्ता पर एक लाख रुपये का जुर्माना लगाया।

    मामला

    अगस्त 2022 में फैमिली कोर्ट, कोटद्वार, पौड़ी गढ़वाल के एक आदेश के खिलाफ पति ने फैमिली कोर्ट एक्ट की धारा 19 के तहत हाईकोर्ट में मौजूदा अपील दायर की थी। फैमिली कोर्ट ने प्रतिवादी-पत्नी द्वारा सीमा अधिनियम की धारा 5 के तहत दायर आवेदन और सीपीसी के आदेश 9 नियम 13 के तहत दायर दूसरे आवेदन को की अनुमति दी थी और तलाक की एकतरफा डिक्री को रद्द कर दिया था।

    प्रतिवादी ने दावा किया कि जब उसे अपने पति के किसी अन्य महिला के साथ संबंधों के बारे में पता चला, तो उसने उसका विरोध किया और तभी पति ने उसे बताया कि उसने पहले ही उसके खिलाफ तलाक का डिक्री प्राप्त कर ली है। इसके बाद ही, वह एकपक्षीय तलाक की डिक्री को रद्द करने के लिए फैमिली कोर्ट गई।

    पत्नी ने तर्क दिया कि उसने समन (तलाक की कार्यवाही के संबंध में न्यायालय द्वारा जारी) पर हस्ताक्षर नहीं किए थे और अपीलकर्ता द्वारा ‌समन पर लिए गए उसके हस्ताक्षर जाली थे। हालांकि, फैमिली कोर्ट ने यह देखते हुए कि एकतरफा तलाक की डिक्री को रद्द कर दिया कि प्रतिवादी-पत्नी के हस्ताक्षर अपीलकर्ता / पति ने गलत तरीके से प्राप्त किए थे।

    निष्कर्ष

    अदालत ने पाया कि जब पति ने पत्नी के वैवाहिक दुराचार के आधार पर तलाक की याचिका दायर की थी, तो वह प्रतिवादी के साथ उसके पति के रूप में रह रहा था और याचिका दायर करने के बाद भी वह उसके साथ रहता था।

    इसे देखते हुए, कोर्ट ने कहा कि प्रतिवादी के कथित वैवाहिक कदाचार को माफ कर दिया जाएगा, क्योंकि तलाक की याचिका दायर करने और एकतरफा तलाक प्राप्त करने के बाद भी पक्ष पति और पत्नी के रूप में एक ही छत के नीचे रहते थे।

    समन पर प्राप्त हस्ताक्षर के बारे में, अदालत ने कहा कि पति अपने कपटपूर्ण आचरण से यह तर्क देकर बच नहीं सकता है कि पत्नी ने स्वयं समन पर हस्ताक्षर किए थे, क्योंकि अदालत ने कहा कि भले ही उसने वास्तव में समन पर हस्ताक्षर किए हों, लेकिन वह उसके साथ रहना जारी रखा। तलाक की एकपक्षीय डिक्री पाने के बाद भी उसने उसके सा‌‌थ पत्नी जैसा व्‍यवहार जारी रखा।

    केस टाइटल- महेंद्र प्रसाद द्विवेदी बनाम लज्जी देवी [APPEAL FROM ORDER NO. 331 OF 2022]

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