'याचिकाकर्ता ने गोपनीय इरादों से अदालत की आंखों में धूल झोंकने के लिए अपना आपराधिक इतिहास छुपाया': इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने पांच लाख रुपए का जुर्माना लगाया

LiveLaw News Network

16 Dec 2020 5:35 PM IST

  • याचिकाकर्ता ने गोपनीय इरादों से अदालत की आंखों में धूल झोंकने के लिए अपना आपराधिक इतिहास छुपाया: इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने पांच लाख रुपए का जुर्माना लगाया

    इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने हाल ही में एक याचिकाकर्ता पर पांच लाख रुपए का जुर्माना लगाया, जिसने रिट याचिका में गलत बयान दिया था कि केवल मात्र एक मामले के आधार पर उसके खिलाफ गैंगस्टर एक्ट लगाया गया था।

    जस्टिस पंकज नकवी और जस्टिस विवेक अग्रवाल की खंडपीठ एक रिट याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें प्रार्थना की गई थी कि जिला मजिस्ट्रेट, मऊ के आदेशों (याचिकाकर्ता की संपत्ति की कुर्की के आदेश) को रद्द कर दिया जाए।

    दलील

    याचिकाकर्ता की दलील थी कि दिनांक 21.10.2020 के आधार पर, जिला मजिस्ट्रेट, मऊ ने यूपी गैंगस्टर्स एंड एंटी-सोशल एक्टिविटीज (प्र‌िवेंशन) एक्ट, 1986 की धारा 14 (1) के तहत अपने अधिकार का इस्तेमाल करते हुए याचिकाकर्ता की संपत्तियों की कुर्की का निर्देश दिया था, जबकि 29.10.2020 को आदेश में संशोधन करते हुए, जिला मजिस्ट्रेट ने 300 टन कोयला को जब्त करने का आदेश दिया, जिसे अवैध रूप से उन्हीं संपत्तियों में इकट्ठा किया गया था।

    याचिकाकर्ता के वकील ने प्रस्तुत किया कि याचिकाकर्ता को केवल संदेह के आधार पर प्रताड़ित किया गया है।

    उन्होंने आगे कहा कि मऊ जिले के कोतवाली पुलिस स्टेशन में एफआईआर, गैंगस्टर एक्ट की धारा 3 (1) के तहत, 2010 की अपराध संख्या 47, के साथ संलग्न गैंग चार्ट के अनुसार, याचिकाकर्ता के एक मामले का उल्लेख है।

    दलील दी गई कि एक मात्र मामले के आधार पर, उसके खिलाफ गैंगस्टर एक्ट के तहत मामला दर्ज किया गया था, इसलिए, यह कहा गया कि याचिकाकर्ता को अन्य मकसद से झूठा फंसाया गया है।

    दूसरी ओर, एजीए ने कहा कि याचिकाकर्ता की दलील तथ्यात्मक रूप से गलत है और याचिकाकर्ता ने रिट याचिका के मुख्य हिस्से में जानकारी को चतुराई से छुपा लिया है।

    एजीए ने प्रस्तुत किया कि याचिकाकर्ता का आपराधिक मामलों में संलिप्तता का लंबा इतिहास है और वह आदतन कई आपराधिक मामलों में शामिल है और इन सामग्रियों को जिला मजिस्ट्रेट द्वारा ध्यान में रखा गया है।

    यह तर्क दिया गया कि याचिकाकर्ता ने मनमाने ढंग से उल्लेख किया कि वह 2009 के केस क्राइम नंबर 1866 के रूप में केवल एक ही मामले में शामिल था, जो तथ्यात्मक रूप से गलत है और इस अदालत से जानकारी को छुपाने का बराबर है।

    कोर्ट का अवलोकन

    न्यायालय ने आश्चर्य व्यक्त किया कि याचिकाकर्ता ने इस तथ्य का उल्लेख नहीं किया कि उसके पास अन्य आपराधिक मामलों का इतिहास था।

    कोर्ट ने कहा, "हम मानते हैं कि कि चूक जानबूझकर और गलत इरादों से अदालत को चकमा देने के लिए की गई, जिस पर दंड‌ित किया जाना आवश्यक है। यह स्पष्ट है कि याचिकाकर्ता कई तथ्यों को छुपाने के लिए दोषी है।"

    कोर्ट ने यह भी कहा, "यह भी स्पष्ट है कि याचिकाकर्ता ने रिट याचिका में गलत बयान दिया है कि केवल एक मात्र मामले के आधार पर, उसके खिलाफ गैंगस्टर एक्ट लगाया गया है। वास्तव में, याचिकाकर्ता का मामला गैंगस्टर्स एक्ट की धारा 2 (1) (बी) के खंड I, ii और XXV के तहत पूरी तरह कवर किया गया है, और इसलिए आदेशों को रद्द करने का कोई आधार नहीं है। "

    इसके अलावा, न्यायालय ने कहा कि तथ्यों को गलत तरीके से पेश करने के कारण याचिकाकर्ता पर भारी लागत लगाने की आवश्यकता है। इसलिए, अदालत ने याचिकाकर्ता पर पांच लाख रुपए) की लागत लगाते हुए रिट याचिका को खारिज कर दिया। लागत को आदेश की तिथि से 30 दिनों के भीतर उच्च न्यायालय कानूनी सेवा प्राधिकरण में जमा करने का निर्देश दिया गया है।

    केस टाइटल - उमेश सिंह बनाम उत्तर प्रदेश राज्य और अन्य [Criminal Misc. Writ Petition No. - 13508 of 2020]

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