'मजिस्ट्रेट ने उसके मन की अव्यवस्थित अवस्था को व्यक्तिगत अपमान की तरह मान लिया': देश भर के वकीलों ने पटना हाईकोर्ट के CJ को लिखा पत्र, रेप सर्वाइवर के रिमांड मामले में हस्तक्षेप करने की अपील

LiveLaw News Network

16 July 2020 9:15 AM IST

  • मजिस्ट्रेट ने उसके मन की अव्यवस्थित अवस्था को व्यक्तिगत अपमान की तरह मान लिया: देश भर के वकीलों ने पटना हाईकोर्ट के CJ को लिखा पत्र, रेप सर्वाइवर के रिमांड मामले में हस्तक्षेप करने की अपील

    देश भर के वकीलों के एक समूह ने पटना हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को एक पत्र लिखा है, जिसमें अररिया जिला न्यायालय, बिहार में हिंसक यौन अपराधों के शिकार हुए पीड़ितों के उपचार में तत्काल और प्रणाली मेंं बदलाव की आवश्यकता पर जोर दिया गया है।

    यह पत्र एक 'परेशान करने वाली घटना' की पृष्ठभूमि में लिखा गया है, जिसमें एक न्यायिक मजिस्ट्रेट ने एक सामूहिक बलात्कार पीड़िता और उसकी देखभाल करने वालों दो लोगों को हिरासत में भेज दिया। बताया गया है कि कथित तौर पर न्यायिक मजिस्ट्रेट ने सीआरपीसी की धारा 164 के तहत पीड़िता का बयान दर्ज करते समय उसके मन की अव्यवस्थित अवस्था को निजी अपमान की तरह मान लिया गया था।

    वकीलों ने दावा किया है कि गैंगरेप की घटना के बाद से वह केवल चौथा दिन था और मामले को 'कुछ संवेदनशीलता' के साथ निपटाया जाना चाहिए था।

    पत्र में कहा गया है कि उनकी ''नाजुक अवस्था'' को समझने के बजाय, ''उन्हें सीधा पुलिस हिरासत में भेज दिया गया। यह भी इंगित किया गया है कि पीड़िता का कोरोना का टेस्ट भी नहीं करवाया गया था,जबकि उसके साथ कई अजनबियों ने सामूहिक बलात्कार किया है। सबसे परेशान करने वाली बात ये है कि जब वह तीनों पुलिस की हिरासत में थे ,तो मामले की कार्यवाही के दौरान जो बाते सामने आई, उन सबके बारे में इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में रिपोर्ट किया गया। इतना ही नहीं मीडिया ने पीड़िता की सारी जानकारी,उसके पिता का नाम व उसके घर के पते का भी खुलासा कर दिया था।''

    उन्होंने आरोप लगाया है कि तीनों को 10 जुलाई को हिरासत में ले लिया गया था, लेकिन अवमानना मामले की प्राथमिकी अगले दिन दर्ज की गई थी। वह भी उस पुलिस स्टेशन में जिसके अधिकार क्षेत्र में, वो इलाका आता ही नहीं है जहां पर न्यायालय स्थित है। इसके अलावा गवाहों से ''खाली गिरफ्तारी ज्ञापन'' पर हस्ताक्षर करवाए गए थे।

    बाद में, तीनों को अदालत में पेश किया गया और उन्हें न्यायिक हिरासत के तहत 240 किलोमीटर दूर स्थित दलसिंहसराय की जिला जेल में भेज दिया गया।

    वकीलों का तर्क है कि परिस्थितियों को देखते हुए उनको न्यायिक हिरासत में भेजना ''अत्यधिक कठोर'' कदम है।

    वकीलों ने दावा किया है कि जब पीड़िता का बयान मजिस्ट्रेट द्वारा दर्ज किया जा रहा था, उस समय-

    ''सर्वाइवर 'ए' पूरी तरह से परेशान थी और उसका मन बहुत ही भटका हुआ था। वह न खा रही थी और न ही सो पा रही थी। उसके शरीर में दर्द भी था। चार दिनों के दौरान, उसने अपने अनुभव को कई लोगों के सामने दोहराया,वो भी सिर्फ दृश्य-संबंधी उद्देश्यों के लिए या घटना का ब्यौरा देने के लिए। वह घटना के बाद से पूरी तरह से व भावनात्मक रूप से उसकी देखभाल करने वालों पर निर्भर थी। जो खुद आघात में थे और बहुत परेशान थे। हम सम्मानपूर्वक प्रस्तुत करते हैं कि किसी भी कथित अनादर को इस दृष्टिकोण से देखा जाना चाहिए।''

    पीड़िता और उसकी देखभाल करने वालों को आईपीसी की धारा 353 (सार्वजनिक कर्मी को उसके कर्तव्य का निर्वहन करने से रोकने के लिए हमला करना या आपराधिक बल का प्रयोग करना), धारा 228 (न्यायिक कार्यवाही में बैठे लोक सेवक के काम में रूकावट ड़ालना या उसका जानबूझकर अपमान करना) और धारा 188 ( लोक सेवक द्वारा दिए गए विधिवत आदेश का पालन न करना) के तहत मामला बनाया गया है।

    वकीलों का कहना है कि बाद के दो अपराध जमानती हैं, लेकिन मजिस्ट्रेट पर ''हमला या आपराधिक बल का प्रयोग'' करने का आरोप ''सबसे अविश्वसनीय'' लगता है।

    वकीलों ने कहा, ''पीड़िता की भावनात्मक स्थिति बेहद नाजुक है और हमें डर है कि उसकी देखभाल करने वालों से अलग होने से कारण उसके स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा।''

    वकीलों ने अदालत से इस मामले में हस्तक्षेप करने और ऐसी ''मजबूत आपराधिक न्याय प्रणाली'' बनाने का आग्रह किया है, जो हिंसक यौन अपराधों के सर्वाइवर या पीड़ितों की जरूरतों को अनुकूल हो।

    इस पत्र का 376 वकीलों ने समर्थन किया है।

    पत्र की प्रति डाउनलोड करें



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