विदेशी अधिनियम या किसी अन्य कानून के उल्लंघन के मामले में विदेशी नागरिक को प्रत्यर्पित करने के आदेश देने का अधिकार मजिस्ट्रेट को नहीं है : तेलंगाना हाईकोर्ट

LiveLaw News Network

28 Jun 2021 3:08 AM GMT

  • विदेशी अधिनियम या किसी अन्य कानून के उल्लंघन के मामले में विदेशी नागरिक को प्रत्यर्पित करने के आदेश देने का अधिकार मजिस्ट्रेट को नहीं है : तेलंगाना हाईकोर्ट

    तेलंगाना हाईकोर्ट ने विदेशी नागरिक के संबंध में मजिस्ट्रेट द्वारा जारी दो प्रत्यर्पण आदेशों को निरस्त करते हुए कहा है कि आपराधिक प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) के तहत मजिस्ट्रेट को विदेशी अधिनियम या अन्य प्रकार के कानून के उल्लंघन की स्थिति में विदेशी नागरिक को प्रत्यर्पित करने के आदेश देने का अधिकार नहीं है।

    न्यायमूर्ति के लक्ष्मण की एकल बेंच ने इस प्रकार कहा :

    "जैसा कि उपर कहा गया है, मजिस्ट्रेट के पास संबंधित अधिनियम या किसी अन्य कानून के प्रावधानों के उल्लंघन के मामले में भी किसी विदेशी नागरिक के प्रत्यर्पण आदेश का अधिकार नहीं है।"

    इसने आगे कहा :

    "मजिस्ट्रेट को सीआरपीसी की धारा 248 के तहत अभियुक्त को बरी किये जाने या दोषी ठहराये जाने के संबंध में ही अपने निष्कर्ष को सीमित करना होता है। मजिस्ट्रेट के पास किसी भी कानून के उल्लंघन के लिए विदेशी नागरिक को प्रत्यर्पित करने के आदेश का अधिकार नहीं है।"

    रोजगार वीजा पर भारत आये आइवरी कोस्ट के रहने वाले याचिकाकर्ता ने मजिस्ट्रेट द्वारा जारी प्रत्यर्पण आदेश को निरस्त करने की मांग को लेकर हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। मजिस्ट्रेट ने याचिकाकर्ता को आपराधिक मामले में बरी करने के बाद जेल अधिकारियों को उसे तत्काल रिहा करने और भारत में उसके खिलाफ कोई अन्य मामला लंबित न होने की स्थिति में उसे उसके देश शीघ्र प्रत्यर्पित करने का निर्देश दिया था।

    याचिकाकर्ता का कहना था कि मजिस्ट्रेट को सीआरपीसी की धारा 248 के तहत निर्णय सुनाते वक्त किसी भी प्रकार के उल्लंघन को लेकर विदेशी नागरिक को प्रत्यर्पित आदेश देने का अधिकार नहीं है।

    यह भी दलील दी गयी थी कि विदेशी कानून, 1946 के प्रावधानों के उल्लंघन के लिए विदेशी नागरिक के प्रत्यर्पण के लिए इसी कानून के तहत विशेष प्रक्रिया वर्णित है, लेकिन मजिस्ट्रेट के पास संबंधित कानून के प्रावधानों के उल्लंघन के लिए किसी भी विदेशी नागरिक के वास्ते प्रत्यर्पण आदेश जारी करने का अधिकार ही नहीं है।

    उपरोक्त आदेशों पर विचार करते हुए हाईकोर्ट ने इस प्रकार टिप्पणी की :

    "दोनों फैसलों पर विचार करने से यह खुलासा होता है कि मजिस्ट्रेट ने याचिकाकर्ता के लिए प्रत्यर्पण आदेश जारी करने का कोई कारण नहीं दिया है। मजिस्ट्रेट द्वारा छह मई 2021 को दिये दोनों फैसलों में यह कारण नहीं दिया गया है कि याचिकाकर्ता संबंधित कानून का उल्लंघन करके भारत में रह रहा है।"

    कोर्ट ने कहा,

    "इसलिए उपरोक्त विमर्श के मद्देनजर सीसी नं. 27/2020 और सीसी नं. 30/2020 मामले में आइवरी कोस्ट के नागरिक याचिकाकर्ता/ अभियुक्त के प्रत्यर्पण को लेकर छह मई 2021 को दिये दोनों फैसले अवैध एवं सीआरपीसी के प्रावधानों के विरुद्ध हैं।"

    कोर्ट ने यह भी कहा कि,

    "आपराधिक प्रक्रिया संहिता मजिस्ट्रेट को उपरोक्त कैलेण्डर केस का निपटारा करते वक्त प्रत्यर्पण आदेश जारी करने की अनुमति नहीं देती।"

    हालांकि, कोर्ट ने साइबर क्राइम पुलिस की कस्टडी से रिहा करने के निर्देश देने का याचिकाकर्ता का अनुरोध यह कहते हुए ठुकरा दिया :

    "किसी भी कानून के उल्लंघन के लिए विदेशी नागरिक के प्रत्यर्पण के बारे में खासतौर पर संबंधित कानून और नियमों के तहत उल्लेख किया गया है। पुलिस ने संबंधित प्रक्रिया पहले ही शुरू कर दी है और एफआरआरओ की ओर से 18 मई 2021 को एक आदेश भी जारी किया गया है। याचिकाकर्ता को उसके देश भेजने के प्रयास किये जा रहे हैं।"

    कोर्ट ने संबंधित अधिकारियों से अनुमति प्राप्त करने के बाद याचिकाकर्ता को जल्द से जल्द उसके देश प्रत्यर्पित करने के लिए साइबर क्राइम पुलिस, एफआरआरओ और हैदराबाद के सिविल अधिकारियों को निर्देश दिये।

    केस का शीर्षक : बेली गुई लैंड्री बनाम तेलंगाना सरकार (सरकारी वकील के माध्यम से), तेलंगाना हाईकोर्ट (साइबर क्राइम, साइबराबादी के माध्यम से)

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