'हर माता-पिता जस्टिस लीला सेठ की तरह नहीं होते': समलैंगिक दंपत्ति मामले में हाईकोर्ट ने दिवंगत जज को किया याद

Shahadat

4 Jun 2025 5:49 PM IST

  • हर माता-पिता जस्टिस लीला सेठ की तरह नहीं होते: समलैंगिक दंपत्ति मामले में हाईकोर्ट ने दिवंगत जज को किया याद

    समलैंगिक महिला को उसके साथी के साथ जाने की अनुमति देते हुए मद्रास हाईकोर्ट ने दिवंगत जस्टिस लीला सेठ द्वारा दिखाई गई प्रगतिशीलता को याद किया, जिन्होंने अपने बेटे के यौन अभिविन्यास को मान्यता दी और उसे स्वीकार किया।

    जस्टिस लीला सेठ हाईकोर्ट की पहली महिला चीफ जस्टिस थीं। उनको अक्सर अपने समलैंगिक बेटे का सार्वजनिक रूप से समर्थन करने के लिए सराहा जाता था।

    सुरेश कुमार कौशल और अन्य बनाम नाज़ फाउंडेशन के मामले में जब सुप्रीम कोर्ट ने नाज़ फाउंडेशन मामले में दिल्ली हाईकोर्ट का फैसला पलट दिया और भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 377 (समलैंगिकता को अपराध बनाना) की वैधता बरकरार रखा तो जस्टिस लीला ने अपने बेटे के लिए एक भावपूर्ण नोट लिखा था।

    अपने नोट में जस्टिस लीला ने लिखा,

    "प्यार ही जीवन को सार्थक बनाता है। हमें इंसान बनाने वाला अधिकार प्यार करने का अधिकार है। उस अधिकार की अभिव्यक्ति को अपराध घोषित करना बेहद क्रूर और अमानवीय है। इस तरह के अपराध को स्वीकार करना या इससे भी बदतर इसे फिर से अपराध घोषित करना करुणा के बिल्कुल विपरीत है। जब मामला मौलिक अधिकारों का हो तो बहुमत वाली संसद के प्रति अतिशयोक्ति दिखाना न्यायिक कायरता प्रदर्शित करना है, क्योंकि इसमें कोई संदेह नहीं है कि संवैधानिक व्यवस्था में न्यायपालिका ही अंतिम व्याख्याकार है।"

    सुप्रीम कोर्ट ने बाद में नवतेज सिंह जौहर बनाम भारत संघ में अपने फैसले के माध्यम से समलैंगिकता को अपराध से मुक्त कर दिया।

    जस्टिस जीआर स्वामीनाथन और जस्टिस वी लक्ष्मीनारायण की मद्रास हाईकोर्ट की खंडपीठ ने हाल ही में जस्टिस लीला को एक ऐसे मामले में याद किया, जिसमें समलैंगिक महिला को उसके यौन अभिविन्यास के कारण उसके परिवार द्वारा जबरन हिरासत में लिया गया था।

    बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका बंदी के साथी द्वारा दायर की गई, जिसमें बंदी को रिहा करने के लिए अदालत के हस्तक्षेप की मांग की गई। अदालत ने कहा कि समाज की रूढ़िवादी प्रकृति के कारण याचिकाकर्ता ने हिरासत में लिए गए व्यक्ति के साथ अपने रिश्ते की वास्तविक प्रकृति का वर्णन करने के बजाय खुद को हिरासत में लिए गए व्यक्ति का करीबी दोस्त बताया था।

    याचिका की सुनवाई के दौरान, अदालत ने हिरासत में लिए गए व्यक्ति की मां से बातचीत की, जिसने याचिकाकर्ता पर अपनी बेटी को 'भटकाने' का आरोप लगाया। मां ने यहां तक ​​आरोप लगाया था कि उसकी बेटी नशे की आदी है और उसे काउंसलिंग और पुनर्वास की आवश्यकता है।

    हालांकि अदालत ने मां की भावनाओं और स्वभाव को समझा। अदालत ने कहा कि हिरासत में लिए गए व्यक्ति की मां कोई लीला सेठ नहीं थी और वह चाहती होगी कि उसकी बेटी किसी अन्य विषमलैंगिक महिला की तरह शादी करके जीवन में बस जाए।

    हालांकि व्यर्थ, अदालत ने मां को यह समझाने की कोशिश की कि उसकी बेटी अपने लिए जीवन चुनने की हकदार है।

    आखिरकार, अदालत ने याचिका स्वीकार की और हिरासत में लिए गए व्यक्ति को अपने साथी के साथ जाने की स्वतंत्रता दी। अदालत ने हिरासत में लिए गए व्यक्ति के पैतृक परिवार से उसकी व्यक्तिगत स्वतंत्रता में हस्तक्षेप न करने को भी कहा।

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