मद्रास हाईकोर्ट ने आरोपों से बरी करने के बाद 8 महीने के लिए हिरासत में लिए गए व्यक्ति को मुआवजा देने का निर्देश दिया

Shahadat

16 Jan 2023 11:53 AM IST

  • मद्रास हाईकोर्ट ने आरोपों से बरी करने के बाद 8 महीने के लिए हिरासत में लिए गए व्यक्ति को मुआवजा देने का निर्देश दिया

    मद्रास हाईकोर्ट ने हाल ही में राज्य को ऐसे व्यक्ति को अंतरिम मुआवजा देने का निर्देश दिया, जिसे अवैध रूप से 8 महीने से अधिक समय तक जेल में बंद रखा गया, जबकि अदालत ने उसे हत्या के आरोपों से बरी कर दिया था।

    जस्टिस सुंदर मोहन ने कहा कि चूंकि उस व्यक्ति को अपने अधिकारों के बारे में पता नहीं था, इसलिए उसने अपील को प्राथमिकता नहीं दी। इस तरह उसे अपने बरी होने की जानकारी नहीं थी। इस प्रकार, न्यायालय के लिए ऐसे व्यक्तियों की सहायता के लिए आना आवश्यक है।

    इस अदालत ने आगे पाया कि याचिकाकर्ता के बेटे को अपने अधिकारों के बारे में पता नहीं था, जैसा कि इस तथ्य से देखा जा सकता है कि उसके द्वारा कोई अपील दायर नहीं की गई और उसे अपने मामले में सह-आरोपी के बरी होने की जानकारी नहीं थी। इस न्यायालय को ऐसे नागरिकों की सहायता के लिए आगे आना होगा, जिन्हें अपने मूल अधिकारों की जानकारी तक नहीं है। ये वे नागरिक हैं, जिन्हें पर्याप्त मुआवजा दिया जाना है।

    इस प्रकार अदालत ने राज्य को उस व्यक्ति को 3,50,000 रूपए का अंतरिम मुआवजा देने का निर्देश दिया। अदालत ने यह भी कहा कि अगर वह अधिक मुआवजे का हकदार है तो वह व्यक्ति हर्जाने के लिए फाइल करने के लिए स्वतंत्र है।

    इसलिए इस न्यायालय की राय है कि राज्य को आज से तीन सप्ताह की अवधि के भीतर मुआवजे के रूप में 3,50,000/- रूपए (तीन लाख पचास हजार रूपए मात्र) की राशि का भुगतान याचिकाकर्ता के बेटे को करना होगा। हालांकि, यह आदेश याचिकाकर्ता के बेटे को हर्जाने के लिए उचित कार्यवाही करने से नहीं रोकेगा, अगर याचिकाकर्ता का बेटा यह दिखाने में सक्षम है कि वह अधिक मुआवजे का हकदार है।

    वर्तमान मामले में याचिकाकर्ता के बेटे छोक्कर को मइलराज के साथ हत्या के मामले में दूसरे आरोपी के रूप में दोषी ठहराया गया। जब मयिलराज ने अपील दायर की तो उसकी सजा रद्द कर दी गई और उसे बरी कर दिया गया। अदालत ने कहा कि चूंकि छोकर को भी इसी तरह के आधार पर दोषी ठहराया गया, इसलिए वह भी बरी होने का हकदार है।

    हालांकि, न तो याचिकाकर्ता और न ही उनके बेटे छोकर को अपने अधिकारों या अदालत द्वारा जारी निर्देशों के बारे में पता। इस प्रकार, छोकर जेल में ही रहा।

    हालांकि अधिकारियों ने अपने जवाबी हलफनामा में कहा कि रिहाई प्रभावी नहीं हुई, क्योंकि अदालत के आदेश में छोकर का नाम निर्दिष्ट नहीं किया गया, वे इस बात से सहमत थे कि छोकर को हिरासत में रखने का कोई आधार या बहाना नहीं था। अधिकारियों ने अदालत को यह भी आश्वासन दिया कि दोषी अधिकारियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की गई।

    इसे संतोषजनक पाते हुए अदालत ने कहा कि इस संबंध में किसी और निर्देश की आवश्यकता नहीं है। हालांकि, अदालत ने इस बात पर प्रकाश डाला कि रुदुल शाह बनाम बिहार राज्य में सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुसार छोकर मुआवजे का हकदार था और इस तरह का आदेश दिया।

    अदालत ने जेलों में कैदियों के मामले की स्थिति की जांच करने के लिए उपयोगकर्ता के अनुकूल कियोस्क स्थापित करने के संबंध में स्टेटस रिपोर्ट भी मांगी। अदालत ने कैदियों को उनके अधिकारों से अवगत कराने और राहत प्राप्त करने में उनकी सहायता करने के लिए कानूनी सहायता सलाहकार के रूप में अधिवक्ताओं की नियुक्ति के संबंध में स्टेटस रिपोर्ट भी मांगी।

    केस टाइटल: रथिनम बनाम राज्य

    केस नंबर: WP (MD).No.10524 of 2020

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