'मेरे विकास का मार्ग प्रशस्त करेगा' : मद्रास हाईकोर्ट के न्यायाधीश ने समलैंगिक संबंधों को बेहतर तरीके से समझने के लिए मनोवैज्ञानिक शिक्षा लेने का निर्णय किया

LiveLaw News Network

29 April 2021 4:42 AM GMT

  • मेरे विकास का मार्ग प्रशस्त करेगा : मद्रास हाईकोर्ट के न्यायाधीश ने समलैंगिक संबंधों को बेहतर तरीके से समझने के लिए मनोवैज्ञानिक शिक्षा लेने का निर्णय किया

    मद्रास हाईकोर्ट के न्यायाधीश एन. आनंद वेंकटेश ने बुधवार को टिप्पणी की कि वह समलैंगिक संबंधों की अवधारणा के बारे में पूरी तरह से 'जागृत' नहीं हैं और इस संबंध को समझने के लिए वह मनोवैज्ञानिक शिक्षा सत्र में हिस्सा लेंगे।

    न्यायाधीश ने कहा,

    "मनोविज्ञानी शिक्षा सत्र मुझे समलैंगिक संबंधों को समझने में मदद करेगा और मेरे विकास का मार्ग प्रशस्त करेगा।"

    यह वाकया समलैंगिक जोड़े द्वारा दायर एक संरक्षण याचिका की सुनवाई के दौरान हुआ।

    महत्वपूर्ण रूप से न्यायाधीश ने पहले इस समलैंगिक जोड़े और इनके माता-पिता को एक दूसरे को बेहतर तरीके से समझने के लिए काउंसेलिंग कराने की सलाह दी थी।

    चूंकि दोनों पार्टियों के बीच महत्वपूर्ण प्रगति नजर आई थी, इसलिए इस तरह के मामलों से निपटने के लिए कुछ दिशानिर्देश जारी करने का कोर्ट से आग्रह किया गया था, ताकि समलैंगिक संबंधों में शामिल व्यक्तियों के साथ सम्मानपूर्वक व्यवहार हो और उनकी सुरक्षा भी सुनिश्चित हो सके।

    यही मौका था, जब न्यायमूर्ति वेंकटेश ने टिप्पणी की,

    "जहां तक इस प्रकार के मामलों के लिए दिशानिर्देश जारी करने का याचिकाकर्ताओं के वकील के अनुरोध का संबंध है तो मैं खुद के मंथन4 के लिए कुछ और समय देना चाहता हूं।"

    उन्होंने आगे कहा,

    "अंतत: इस मामले में मेरे शब्द दिमाग से नहीं दिल से निकलने चाहिए और ऐसा तब तक सम्भव नहीं है जब तक मैं खुद इस बारे में जागृत न हो जाऊं। इस उद्देश्य के लिए मैं सुश्री विद्या दिनाकरन से मनोवैज्ञानिक शिक्षा लेना चाहता हूं और मैं उनसे आग्रह करूंगा कि वह इसके लिए अपनी सुविधा के हिसाब से मुझे कोई समय दें।"

    उन्होंने कहा कि मनोवैज्ञानिक शिक्षा सत्र से गुजरने के बाद यदि वह इस मामले में आदेश लिखते हैं तो शब्द खुद-ब-खुद दिल से निकलेंगे।

    जहां तक इस मामले के संबंधित पक्षों की बात है तो कोर्ट का कहना है कि याचिकाकर्ता जोड़े का ध्यान सुरक्षित तौर पर एक गैर-सरकारी संगठन द्वारा रखा जा रहा है और वे नियमित आधार पर अपने माता-पिता से बातचीत कर रहे हैं।

    हालांकि, उनके माता-पिताओं ने समलैंगिक जोड़ों से जुड़े कलंक और वंश, दत्तक ग्रहण करने और विषमलिंगी संबंधों के सामान्य परिणामों के प्रति भ्रम की स्थिति को लेकर अपनी चिंता जाहिर की है।

    इस परिप्रेक्ष्य में कोर्ट ने कहा कि माता-पिताओं में बदलाव रातोंरात नहीं हो सकता और बदलाव लाने के लिए लगातार प्रयास की जरूरत होती है।

    इसलिए, कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं के माता-पिताओं को संबंधित मनोविज्ञानी के पास एक बार और काउंसेलिंग में जाने का निर्देश दिया।

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