एमपी हाईकोर्ट ने सामान्य श्रेणी के उस उम्मीदवार की याचिका में हस्तक्षेप करने से इनकार किया, जो अनुसूचित जाति वर्ग की एक खाली रहने के बावजूद एससी उम्मीदवार से सीट पाने में पीछे रह गया
Shahadat
10 Sep 2022 9:23 AM GMT
![Writ Of Habeas Corpus Will Not Lie When Adoptive Mother Seeks Child Writ Of Habeas Corpus Will Not Lie When Adoptive Mother Seeks Child](https://hindi.livelaw.in/h-upload/images/750x450_madhya-pradesh-high-court-minjpg.jpg)
MP High Court
मध्य प्रदेश हाईकोर्ट, ग्वालियर बेंच ने हाल ही में उस याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें याचिकाकर्ता यूनिवर्सिटी की चयन प्रक्रिया से व्यथित था, जिसके कारण वह एससी श्रेणी की सीट के खली रहने के बावजूद मेधावी एससी उम्मीदवार के मुकाबले उसे सीट से वंचित रहना पड़ा।
जस्टिस जीएस अहलूवालिया की खंडपीठ ने इस बात के गुण-दोष पर ध्यान नहीं दिया कि आरक्षित वर्ग के पद को न भरना उचित था या नहीं।
उन्होंने कहा,
यदि वर्तमान मामले के तथ्यों पर विचार किया जाए तो प्रतिवादी द्वारा दाखिल परिणाम के साथ विवरणी से यह स्पष्ट है कि कु. आरती कैथवास ने 53 अंक यानी चयन समिति द्वारा तय बेंचमार्क से ज्यादा अंक हासिल किए, जबकि याचिकाकर्ता ने 49 अंक यानी चयन समिति द्वारा तय बेंचमार्क से कम अंक हासिल किए। चयन समिति द्वारा तय किए गए बेंचमार्क को भले ही नजरअंदाज कर दिया जाए, लेकिन यह स्पष्ट है कि कु. आरती कैथवास ने अधिक अंक हासिल किए हैं, इसलिए वह याचिकाकर्ता की तुलना में अधिक मेधावी है। इसलिए उसे अनारक्षित महिला वर्ग के खिलाफ नियुक्ति दी गई।
चूंकि अनुसूचित जाति के उम्मीदवारों के लिए आरक्षित सीट खाली रह गई और किसी ने भी उक्त पहलू को चुनौती नहीं दी, इसलिए इस पहलू पर विचार करना आवश्यक नहीं कि अनुसूचित जाति वर्ग के लिए आरक्षित पद को न भरना उचित था या नहीं।
मामले के तथ्य यह थे कि प्रतिवादी यूनिवर्सिटी ने सब-इंजीनियर (सिविल) के कुछ पदों के लिए आवेदन आमंत्रित किए। चयन समिति द्वारा निर्धारित न्यूनतम कट-ऑफ अंक के बाद याचिकाकर्ता सीट के लिए अर्हता प्राप्त नहीं कर सका, क्योंकि अनारक्षित श्रेणी की सीट के लिए अनुसूचित जाति वर्ग के अन्य मेधावी उम्मीदवार का चयन किया गया। इसके साथ ही अनुसूचित जाति वर्ग के उम्मीदवार के लिए आरक्षित सीट खाली रह गई। याचिकाकर्ता ने यह तर्क देते हुए न्यायालय का रुख किया कि आरक्षित श्रेणी के उम्मीदवार को अनारक्षित श्रेणी में "माइग्रेट" नहीं किया जा सकता।
पक्षकारों के प्रस्तुतीकरण और रिकॉर्ड पर दस्तावेजों की जांच करते हुए कोर्ट ने स्पष्ट किया कि अनारक्षित सीटें किसी अलग कोटे के अंतर्गत नहीं आतीं।
कोर्ट ने कहा,
अनारक्षित श्रेणी अलग कोटा नहीं है और केवल उन उम्मीदवारों के लिए आरक्षित अलग स्वतंत्र श्रेणी के रूप में नहीं माना जा सकता, जो अन्य आरक्षित श्रेणी से संबंधित नहीं हैं। अनारक्षित श्रेणी सभी उम्मीदवारों के लिए उपलब्ध खुली श्रेणी है, यहां तक कि अन्य आरक्षित श्रेणियों से संबंधित उम्मीदवारों के लिए भी। इसलिए यदि किसी आरक्षित वर्ग से संबंधित उम्मीदवार को अधिक अंक प्राप्त करने के लिए अनारक्षित कोटे के खिलाफ नियुक्ति दी जाती है तो यह उम्मीदवार के श्रेणी से दूसरी श्रेणी में प्रवास की श्रेणी नहीं होगी।
इसके अलावा, साधना सिंह डांगी और अन्य बनाम पिंकी असती और अन्य में सुप्रीम कोर्ट के निर्णय पर भरोसा करते हुए कोर्ट ने देखा कि आरक्षण लागू करते समय योग्यता को वरीयता दी जानी है और यदि आरक्षित वर्ग से संबंधित उम्मीदवार ने अधिक अंक प्राप्त किए हैं तो उसे अनारक्षित श्रेणी के पद के लिए विचार किया जाना चाहिए।
उपरोक्त टिप्पणियों के साथ न्यायालय ने माना कि प्रतिवादी यूनिवर्सिटी ने अनारक्षित श्रेणी की सीट के तहत एससी श्रेणी के उम्मीदवार को नियुक्त करने में कोई त्रुटि नहीं की, जिसने याचिकाकर्ता से अधिक अंक प्राप्त किए। इसी के तहत याचिका खारिज कर दी गई।
केस टाइटल: मिस लवली निरंजन बनाम राजमाता विजयाराजे सिंधिया कृषि यूनिवर्सिटी
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