मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने रेप के आरोपी की जमानत रद्द करने के लिए 'टू फिंगर टेस्ट' पर भरोसा किया

LiveLaw News Network

20 April 2022 3:41 PM IST

  • Writ Of Habeas Corpus Will Not Lie When Adoptive Mother Seeks Child

    MP High Court

    मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने हाल ही में पॉक्सो एक्ट के प्रावधानों के तहत बलात्कार के आरोपी को दी गई जमानत को रद्द करते हुए कहा है कि हालांकि पीड़िता की मेडिकल रिपोर्ट में बलात्कार के बारे में किसी निश्चित राय का उल्लेख नहीं किया गया है, लेकिन इस रिपोर्ट में बताया गया है कि उसका हाइमन टूटा हुआ था और उसकी योनि (vagina) में दो उंगलियां आसानी से चली गई थी, जिससे प्रथम दृष्टया इस तथ्य की पुष्टि होती है कि उसका यौन शोषण किया गया था।

    जमानत रद्द करने की मांग करते हुए पीड़िता के पिता द्वारा सीआरपीसी की धारा 439(2) के तहत दायर आवेदन पर विचार करते हुए जस्टिस आर.के. दुबे ने कहा,

    हालांकि, पीड़िता की मेडिकल जांच रिपोर्ट में, यह उल्लेख किया गया है कि बलात्कार के बारे में कोई निश्चित राय नहीं दी जा सकती है, लेकिन इसके अलावा यह भी उल्लेख किया गया है कि हाइमन काफी पहले से टूटा हुआ था और दो उंगलियां आसानी से योनि में जा रही थी, जो प्रथम दृष्टया इस तथ्य की पुष्टि करता है कि उसका यौन शोषण किया गया था।

    अपीलकर्ता का मामला यह है कि उसकी बेटी (जो इन घटनाओं की अवधि के दौरान नाबालिग थी) का प्रतिवादी/आरोपी ने लगभग 6 वर्षों से अधिक समय तक यौन शोषण किया है। आरोपी के डर के कारण वह किसी को भी घटना का खुलासा नहीं कर सकी और जब उसके भाई ने उसे आत्महत्या करने की कोशिश करते देखा तो उसने सच्चाई का खुलासा किया।

    अपीलकर्ता ने तर्क दिया कि प्रतिवादियों द्वारा किए गए यौन शोषण ने पीड़िता के शारीरिक और भावनात्मक स्वास्थ्य पर गंभीर प्रभाव ड़ाला है। उन्होंने आगे बताया कि उसे अपने डर, चिंता और आत्मविश्वास की कमी से निपटने के लिए मनोचिकित्सक के साथ कई काउंसलिंग सेशन से गुजरना पड़ा है। अपीलकर्ता ने तर्क दिया कि उक्त तथ्यों के बावजूद, निचली अदालत ने इन पर तथ्यों पर और अपराध की गंभीरता पर विचार नहीं किया। इस प्रकार उन्होंने निष्कर्ष निकाला कि निचली अदालत ने प्रतिवादियों/अभियुक्तों को गलत तरीके से जमानत दे दी और जमानत का आक्षेपित आदेश रद्द किए जाने योग्य है।

    इसके विपरीत, प्रतिवादियों/आरोपियों ने तर्क दिया कि एफआईआर दर्ज करने में हुई देरी के लिए अभियोजन पक्ष द्वारा कोई स्वीकार्य स्पष्टीकरण नहीं दिया गया है। इसके अलावा, उन्होंने प्रस्तुत किया कि यदि वे 6 वर्षों से पीड़िता का यौन शोषण कर रहे थे, तो यह बात पीड़िता की मां के संज्ञान में पहले ही आ गई होगी। उन्होंने यह भी प्रस्तुत किया कि निचली अदालत ने मामले के सभी तथ्यों और परिस्थितियों की सराहना करने के बाद ही प्रतिवादियों को जमानत दी है।

    सुप्रीम कोर्ट के कई फैसलों पर भरोसा करते हुए, प्रतिवादियों ने जोर देकर कहा कि जमानत रद्द करने के मानदंड/पैरामीटर जमानत देने के मानदंड/पैरामीटर से अलग हैं। उन्होंने कहा कि पहले से दी गई जमानत को रद्द करने का निर्देश देने वाले आदेश के लिए बहुत ही दृढ़ और अत्यधिक प्रभावशाली परिस्थितियों की आवश्यकता होती है। उन्होंने तर्क दिया कि प्रतिवादियों के खिलाफ ऐसा कोई आरोप नहीं है कि उन्होंने जमानत की स्वतंत्रता का दुरुपयोग किया है या कि उन्होंने पीड़िता या उसके परिवार के सदस्यों पर दबाव डाला है। उन्होंने आगे कहा कि वे छात्र हैं और उनका कोई आपराधिक इतिहास नहीं है और चूंकि वे लगातार जांच और मुकदमे में सहयोग कर रहे हैं, इसलिए उनकी जमानत रद्द करने की कोई आवश्यकता नहीं है।

    कोर्ट ने जमानत रद्द करने के विषय पर दोनों पक्षों की दलीलों, रिकॉर्ड पर आए दस्तावेजों और सुप्रीम कोर्ट के विभिन्न फैसलों पर विचार करने के बाद कहा,

    एक बार दी गई जमानत को यांत्रिक तरीके से इस बात पर विचार किए बिना रद्द नहीं किया जाना चाहिए कि क्या किसी भी पर्यवेक्षणीय परिस्थितियों ने आरोपी को मुकदमे के दौरान जमानत की रियायत का आनंद लेते हुए अपनी स्वतंत्रता बनाए रखने की अनुमति देने को निष्पक्ष सुनवाई के लिए अनुकूल नहीं बनाया है? हालांकि, अदालतों के पास जमानत रद्द करने की शक्ति और विवेक है, भले ही कोई पर्यवेक्षणीय परिस्थितियां न हों, लेकिन जहां रिकॉर्ड पर आए महत्वपूर्ण सबूतों की अनदेखी करके और बिना कारण बताए जमानत का आदेश पारित किया गया हो या जहां अस्थिर आधार पर जमानत दी गई हो या जहां जमानत देने का आदेश गंभीर दुर्बलताओं से ग्रस्त है।

    अदालत ने कहा कि निचली अदालत ने पीड़िता की मेडिकल रिपोर्ट पर भरोसा किया है, जिसमें विशेष रूप से यह संकेत नहीं दिया गया है कि वह पीड़िता थी और यह भी एक तथ्य है कि शिकायत दर्ज करने में 8 साल की देरी हुई है।

    एफआईआर दर्ज करने में हुई देरी के संबंध में कोर्ट ने कहा कि,

    अभियोजन पक्ष की ओर से एफआईआर दर्ज करने में हुई देरी को भी स्पष्ट कर दिया गया है। केस डायरी में लिखे गए पीड़िता के बयान में यह उल्लेख किया गया है कि जब उसके भाई ने उसे आत्महत्या करने की कोशिश करते हुए देखा था, उस समय उसने पहली बार अपने परिवार के सदस्यों को सारी घटना बताई थी। वहीं ऐसे मामलों में जहां एक नाबालिग लड़की का दो लोगों द्वारा यौन शोषण किया जाता है और इनमें से एक उसका रिश्तेदार है, तो केवल प्राथमिकी दर्ज करने में हुई देरी अभियोजन के मामले को ध्वस्त नहीं कर सकती है।

    अदालत ने कहा कि न्याय के हित में और कानून के अनुसार, प्रतिवादी/अभियुक्तों की कैद कम से कम उस समय तक आवश्यक है, जब तक अभियोजन पक्ष की गवाही समाप्त नहीं हो जाती है।

    उपरोक्त टिप्पणियों के बाद, न्यायालय ने आरोपियों को दी गई जमानत को रद्द कर दिया और तदनुसार, आवेदन की अनुमति दे दी गई।

    केस का शीर्षक- पीड़िता-एक्स के पिता बनाम मध्य प्रदेश राज्य

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