'इससे जल संरक्षण के बारे में जागरूकता का एक वातावरण बनेगा', मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने जमानत शर्त के रूप में वॉटर हार्वेस्टिंग सिस्टम की स्थापना करने को कहा

SPARSH UPADHYAY

8 Aug 2020 3:38 PM GMT

  • Writ Of Habeas Corpus Will Not Lie When Adoptive Mother Seeks Child

    MP High Court

    मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय की ग्वालियर खंडपीठ के न्यायमूर्ति आनंद पाठक ने जमानत आवेदकों के समक्ष एक अनोखी शर्त रखने का एक नया चलन शुरू किया है। जमानत आदेश में वे जमानत आवेदकों को अपने लॉज / घर में, जिसमें वह निवास कर रहा है, वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम या वाटर रिचार्ज सिस्टम स्थापित करने का निर्देश दे रहे हैं।

    9 जुलाई से 6 अगस्त के बीच पारित किये गए 30 से ज्यादा जमानत आदेश में एकल न्यायाधीश ने अभियुक्तों को यह निर्देश दिया कि वह "अपने लॉज/घर में, जहां वह निवास कर रहे हैं, वहां वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम या वाटर रिचार्ज सिस्टम, आदेश की तारीख से एक/दो/तीन महीने के भीतर स्थापित करें अगर आवेदक ने पहले से ही सिस्टम स्थापित नहीं किया है।"

    ये आदेश इस बात पर भी प्रकाश डालते हैं कि "इस तथ्य को देखते हुए कि दिन-प्रतिदिन पानी की कमी हो रही है और इस क्षेत्र के 'जीरो डे जोन' के अंतर्गत आने का अनुमान है", यह जरूरी है कि आवेदक को वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम या वाटर रिचार्ज सिस्टम स्थापित करना होगा। इसके अलावा, आवेदकों को एक नियमित आधार पर भविष्य में भी उक्त प्रणाली को बनाए रखना होगा।

    इस संबंध में और प्रणाली को स्थापित करने के उद्देश्य से, आवेदकों को न्यायालय द्वारा निर्देशित किया गया है कि वे संबंधित जिले के नगर परिषद सहित संबंधित विभागों से आवश्यक अनुमति ले सकते हैं और बदले में, अधिकारियों को आवेदकों को यह सुविधा प्रदान करनी होगी और वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम या वाटर रिचार्ज सिस्टम की स्थापना के लिए इस संबंध में सहयोग करना होगा।

    अपने सभी आदेशों में, अदालत यह भी स्पष्ट कर रही है कि प्रणाली की स्थापना के बाद, आवेदक एक रिपोर्ट और अनुपालन प्रमाण पत्र (यदि आवश्यक हो) जमा करेगा, साथ ही इस संबंध में इस अदालत की रजिस्ट्री के समक्ष उसकी तस्वीरें रखी जाएँगी।

    इसके अलावा, आदेश में कहा गया कि

    "इस दिशा में (वाटर रिचार्ज / हार्वेस्टिंग प्रणाली स्थापित करने के लिए) निर्देश, पर्यावरण और समुदाय की बेहतरी के लिए कुछ काम करने के लिए आवेदक की मंशा और इच्छा को देखते हुए स्थिति-विशेष में दिया जा रहा है और यह पूरी उम्मीद है कि आवेदक का यह कार्य जल संरक्षण के बारे में जनता में जागरूकता का माहौल पैदा करेगा।"

    साथ ही, कुछ जमानत आदेशों में, आवेदकों को आवेदक की रिहाई की तारीख से एक/दो महीने की अवधि के भीतर 'सेना के केंद्रीय कल्याण कोष' में धनराशि (न्यायालय द्वारा तय) जमा करने के लिए भी निर्देशित किया जा रहा है।

    जमानत शर्त के रूप में पौधे लगाना

    इसके अतिरिक्त, इन जमानत आदेशों में से कुछ में, ट्री गार्ड के साथ पौधे लगाने की शर्त भी रखी जा रही है। यह ध्यान दिया जा सकता है कि जैसा कि पहले हमारे द्वारा रिपोर्ट किया गया था कि मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने जमानत के लिए शर्त के रूप में आरोपी व्यक्तियों को ट्री गार्ड के साथ पौधे लगाने के लिए निर्देश दिया था

    आदेश में कहा गया है कि,

    "यह निर्देश (ट्री गार्ड के साथ पौधे लगाने के लिए) इस कोर्ट द्वारा एक परिक्षण प्रकरण के तौर पर दिए गए हैं ताकि हिंसा और बुराई के विचार का प्रतिकार, सृजन एवं प्रकृति के साथ एकाकार होने के माध्यम से सामंजस्य बनाया जा सके। वर्तमान में मानव अस्तित्व के आवश्यक अंग के रूप में दया, सेवा प्रेम एवं करुणा की प्रकृति को विकसित करने की आवश्यकता है क्योंकि यह मानव जीवन की मूलभूत प्रवृतियां हैं और मानव अस्तित्व को बनाये रखने के लिए इनका पुनर्जीवित होना आवश्यक है। यह प्रयास केवल एक वृक्ष के रोपण का प्रश्न न होकर बल्कि एक विचार के अंकुरण का है।"

    हाल ही के उल्लेखनीय जमानत आदेश

    मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय (इंदौर पीठ) ने गुरुवार (30 जुलाई) को एक व्यक्ति (स्त्री की लज्जा भंग करने के आरोपी) को जमानत पर रिहा करते हुए यह शर्त लगायी कि वह शिकायतकर्ता-महिला के घर जाए और उनसे राखी बांधने का अनुरोध करे और यह वादा करे कि वह आने वाले समय में अपनी सर्वश्रेष्ठ क्षमता में उनकी रक्षा करेगा।

    दरअसल, न्यायमूर्ति रोहित आर्य की पीठ एक मामले की सुनवाई कर रही थी जिसके तहत एक पड़ोसी के रूप में जमानत के आवेदनकर्ता/आरोपी ने शिकायतकर्ता-महिला के घर में प्रवेश किया था और शिकायतकर्ता का हाथ पकड़कर उनकी लज्जा भंग करने का प्रयास किया था (अभियोजन की कहानी के अनुसार)।

    मध्यप्रदेश हाईकोर्ट की ग्वालियर बेंच (न्यायमूर्ति शील नागू की पीठ) ने बीते मई के महीने में तमाम जमानत आवेदनों में इस शर्त पर जमानत दी थी कि याचिकाकर्ता को संबंधित जिला मजिस्ट्रेट के समक्ष खुद को "COVID -19 वॉरियर्स" के रूप में पंजीकृत करना होगा। इसके पश्च्यात, उन्हें COVID -19 आपदा प्रबंधन का काम सौंपा जायेगा।

    इसी प्रकार की शर्त पटना हाईकोर्ट ने जून महीने की शुरुआत में (1-4 जून 2020) 20 से अधिक जमानत आवेदन के मामलों में लगायी थी।

    हाईकोर्ट ने आरोपियों को इस शर्त पर जमानत दी कि जमानत आवेदनकर्ता/आरोपी को एक/दो/तीन महीने की अवधि के लिए "स्वयंसेवक" (Volunteer) के रूप में (Covid -19 से मुकाबला करने के लिए) या COVID अस्पताल/जिला स्वास्थ्य केंद्र में "स्वयंसेवक" के रूप में अपनी सेवा प्रदान करनी होगी।

    वहीँ, जून ही के महीने में मध्यप्रदेश हाईकोर्ट की इंदौर बेंच (न्यायमूर्ति विवेक रूसिया की पीठ) ने मंगलवार (30-जून-2020) को धारा 439 सीआरपीसी के अंतर्गत दाखिल जमानत आवेदन को स्वीकारते हुए आरोपियों/जमानत आवेदनकर्ताओं को इस शर्त पर जमानत दे दी कि वे 5-5 लीटर अल्कोहलिक सैनिटाइजर और 200-200 अच्छे गुणवत्ता वाले मास्क जिला अस्पताल, धार के पैरा मेडिकल स्टाफ के उपयोग के लिए दान करेंगे।

    इसके अलावा, मध्य प्रदेश हाईकोर्ट (न्यायमूर्ति शील नागू की पीठ) का एक और जमानत आदेश हाल ही में बहुत चर्चा में रहा था जहाँ आरोपियों को ज़मानत की पूर्व शर्त के रूप में स्थानीय ज़िला अस्पताल में दो एलईडी टीवी लगाने का निर्देश दिया, लेकिन साथ ही अदालत ने यह भी कहा था कि ये टीवी चीन में बने नहीं होने चाहिए।

    वहीँ पिछले महीने, मध्यप्रदेश हाईकोर्ट की ग्वालियर बेंच ने 02-जुलाई-2020 को लगभग डेढ़ दर्जन मामलों में जमानत आवेदन (धारा 438/439 सीआरपीसी के तहत दायर आवेदन) को स्वीकारते हुए आरोपियों/जमानत आवेदनकर्ताओं को इस शर्त पर जमानत दे दी थी कि वे शिक्षा स्वयंसेवक के रूप में अपने निवास के निकट स्थित सरकारी प्राथमिक विद्यालय को शारीरिक और वित्तीय सहायता प्रदान करेंगे।

    न्यायमूर्ति शील नागू की पीठ ने इन तमाम मामलों में जमानत आवेदन को स्वीकारते हुए यह शर्त लगायी और यह रेखांकित किया कि इससे स्वच्छता और सफाई सुनिश्चित की जा सकेगी और याचिकाकर्ताओं के कौशल/संसाधनों से उक्त विद्यालय में अवसंरचनात्मक सुविधाओं की कमियों को दूर किया जा सकेगा।

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