''लिव-इन-रिलेशनशिप कोई नई घटना नहीं, लेकिन समाज ऐसे रिश्तों को भौंहें चढ़ाए बिना स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं'': पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट

LiveLaw News Network

28 Jun 2021 3:45 AM GMT

  • लिव-इन-रिलेशनशिप कोई नई घटना नहीं, लेकिन समाज ऐसे रिश्तों को भौंहें चढ़ाए बिना स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं: पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट

    पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने मंगलवार को लिव-इन रिलेशनशिप में रहने वाले एक कपल को सुरक्षा प्रदान करते हुए कहा कि,''लिव-इन-रिलेशनशिप आजकल कोई नई घटना नहीं है, लेकिन समाज इतना विकसित नहीं हुआ है कि वह इस तरह के रिश्तों पर भौंहें चढ़ाए बिना ही इनको स्वीकार कर ले।''

    जस्टिस राजेश भारद्वाज की एकल पीठ क्रमशः 18 और 19 वर्ष की आयु के एक लड़के और लड़की द्वारा दायर की गई सुरक्षा याचिका पर विचार कर रही थी, जो सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म फेसबुक पर मिले थे और एक-दूसरे से शादी करना चाहते हैं।

    यह देखते हुए कि दोनों याचिकाकर्ता 18 वर्ष से अधिक आयु के हैं, हालांकि, लड़का विवाह योग्य आयु का नहीं है, न्यायालय ने कहा कि,

    ''यह स्पष्ट है कि दोनों याचिकाकर्ता 18 वर्ष से अधिक आयु के हैं, हालांकि, लड़का विवाह योग्य उम्र का नहीं है। लिव-इन-रिलेशनशिप आजकल कोई नई घटना नहीं है, लेकिन समाज इतना विकसित नहीं हुआ है कि वह इस तरह के रिश्तों पर भौंहें चढ़ाए बिना ही इनको स्वीकार कर ले।''

    इसके अलावा, कोर्ट ने यह भी कहा कि,

    ''इस प्रकार, बार-बार माननीय सर्वोच्च न्यायालय के साथ-साथ विभिन्न अन्य हाईकोर्ट ने भी लिव-इन-रिलेशनशिप को स्वीकार किया है और भारत के संविधान के आर्टिकल 21 के तहत विभिन्न कपल के बचाव में आए हैं। हालांकि इस याचिका में याचिकाकर्ताओं ने उनके लिव इन-रिलेशनशिप और भारत के संविधान के आर्टिकल 21 में निहित उनके जीवन और स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार मुद्दे को उठाया है, लेकिन न्यायालय को चिंता केवल संविधान के आर्टिकल 21 के तहत मिले उनके अधिकार की है।''

    याचिकाकर्ताओं का कहना था कि जब वे विवाह योग्य आयु प्राप्त करेंगे तो वे एक-दूसरे से विवाह कर लेंगे। यह भी प्रस्तुत किया गया था कि लड़की के माता-पिता उसकी शादी किसी अन्य लड़के से करवाना चाहते हैं और जब उसने अपने परिवार के सदस्यों को मनाने की कोशिश की, तो वे नहीं माने।

    इसे ध्यान में रखते हुए कपल ने उन्हें सुरक्षा प्रदान करने के लिए पुलिस अधीक्षक, महेंद्रगढ़ को एक अभ्यावेदन भी दिया था, लेकिन उस पर कोई कार्रवाई नहीं की गई।

    नंदकुमार व अन्य बनाम केरल राज्य व अन्य के मामले में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिए गए फैसले पर भी कोर्ट ने भरोसा किया, जिसमें माना गया था कि लिव-इन रिलेशनशिप को घरेलू हिंसा से महिलाओं के संरक्षण अधिनियम, 2005 के प्रावधानों के तहत विधानमंडल से मान्यता प्राप्त है। इसलिए कोर्ट ने कहा किः

    ''याचिकाकर्ताओं द्वारा उठाई गई शिकायतों का समाधान न करने का कोई कारण नहीं है। परिणामस्वरूप, पुलिस अधीक्षक, महेंद्रगढ़ को निर्देश दिया जाता है कि वह याचिकाकर्ताओं के अभ्यावेदन (अनुलग्रक पी -6) में उठाए गए तर्कों पर विचार करते हुए याचिकाकर्ताओं के लिए खतरे की धारणा (यदि कोई हो तो) का आकलन करे।''

    तद्नुसार याचिका का निस्तारण किया गया।

    केस का शीर्षकः संजय व एक अन्य बनाम हरियाणा राज्य व अन्य

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