''लिव-इन पार्टनर्स अपने जीवनसाथी से तलाक लिए बिना ही वासनापूर्ण और व्यभिचारी जीवन जी रहे हैं'': पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने संरक्षण याचिका खारिज की

LiveLaw News Network

8 Oct 2021 8:00 AM GMT

  • लिव-इन पार्टनर्स अपने जीवनसाथी से तलाक लिए बिना ही वासनापूर्ण और व्यभिचारी जीवन जी रहे हैं:  पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने संरक्षण याचिका खारिज की

    पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने हाल ही में एक लिव-इन कपल की तरफ से दायर एक संरक्षण/सुरक्षा याचिका को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि वे दोनों अपने-अपने जीवनसाथी से तलाक लिए बिना ही एक-दूसरे के साथ वासनापूर्ण और व्यभिचारी जीवन जी रहे हैं।

    जस्टिस अरविंद सिंह सांगवान की बेंच एक लिव-इन कपल की तरफ से याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें कहा गया था कि वे दोनों पिछले कई सालों से एक-दूसरे से प्यार करते हैं और पिछले एक महीने से लिव-इन रिलेशनशिप में हैं।

    कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता नंबर 1 (कविता) की आयु लगभग 35 वर्ष है और उसकी शादी प्रतिवादी नंबर 4 से हुई है, जबकि याचिकाकर्ता नंबर 2 (अंगरेज़ सिंह) की आयु लगभग 32 वर्ष है और उसकी शादी प्रतिवादी नंबर 6 से हुई है।

    याचिकाकर्ताओं ने ''उपर्युक्त व्यक्तियों'' से खतरे की आशंका व्यक्त की है, हालांकि, उनके पूरे प्रतिनिधित्व (पुलिस अधीक्षक, कैथल को संबोधित) में ऐसे किसी व्यक्ति का नाम नहीं लिया गया है और न ही यह बताया गया है कि उनको किससे धमकी मिल रही है।

    महिला-याचिकाकर्ता ने प्रस्तुत किया कि उसने तलाक की याचिका दायर की थी, लेकिन अब तक तलाक नहीं मिला है। हालांकि, याचिका पर विचार करते हुए, कोर्ट ने कहा कि तलाक की मांग करने वाली याचिका पर कोई तारीख नहीं लिखी गई है और न ही इस तलाक की याचिका पर मामले की संख्या का उल्लेख किया गया है।

    इसे देखते हुए, न्यायालय ने आगे कहा किः

    ''...दोनों याचिकाकर्ता अपने-अपने पति या पत्नी से तलाक लिए बिना (प्रतिवादी नंबर 4 और 6) ही एक दूसरे के साथ एक कामुक और व्यभिचारी जीवन जी रहे हैं और एक पूरी तरह से अस्पष्ट दस्तावेज यानी प्रतिनिधित्व पर भरोसा किया है जिसमें कहीं भी यह नहीं बताया गया है कि किससे, वे अपने जीवन और स्वतंत्रता के लिए खतरा महसूस कर रहे हैं।''

    उनकी याचिका को खारिज करते हुए न्यायालय ने कहा कि,

    ''यहां यह ध्यान देने योग्य है कि प्रतिनिधित्व में किसी के नाम से आरोप न लगाने के चलते यह नहीं माना जा सकता है कि दोनों याचिकाकर्ताओं को अपने स्वयं के जीवनसाथी से कोई खतरे की आशंका है और यह याचिका सिर्फ उनके तथाकथित लिव-इन-रिलेशनशिप पर इस न्यायालय की मुहर प्राप्त करने के लिए दायर की गई है।''

    संबंधित समाचारों में, एक विवाहित व्यक्ति के साथ रह रही एक विधवा को पुलिस सुरक्षा देने से इनकार करते हुए, राजस्थान हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा था कि याचिकाकर्ताओं के बीच ऐसा संबंध कानूनी लिव-इन संबंध के दायरे में नहीं आता है, बल्कि, ऐसे रिश्ते 'पूरी तरह से अवैध' और 'असामाजिक' होते हैं।

    यह देखते हुए कि लिव-इन-रिलेशनशिप इस देश के सामाजिक ताने-बाने की कीमत पर नहीं बन सकते हैं - इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में अपने लिव-इन साथी के साथ रहने वाली एक विवाहित महिला की सुरक्षा याचिका को 5,000 रुपये जुर्माने के साथ खारिज कर दिया था।

    लिव-इन साथी के साथ उसके संबंध को अवैध संबंध बताते हुए, न्यायमूर्ति डॉ कौशल जयेंद्र ठाकर और न्यायमूर्ति सुभाष चंद की खंडपीठ ने कहा था कि,

    ''पुलिस को उन्हें सुरक्षा प्रदान करने का निर्देश देना अप्रत्यक्ष रूप से ऐसे अवैध संबंधों को हमारी सहमति दे सकता है।''

    हालांकि, पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के साथ अपनी असहमति व्यक्त की और यह माना कि वयस्क होने के नाते अगर दो लोग एक-दूसरे के साथ लिव-इन रिलेशनशिप में रहते हैं तो कोई अपराध नहीं बनेगा, भले ही वे पहले से किसी और से शादीशुदा हों।

    केस का शीर्षक - कविता व अन्य बनाम हरियाणा राज्य व अन्य

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