टेलीग्राफ अथॉरिटी के रूप में नियुक्त लाइसेंसधारी बिजली ट्रांसमिशन लाइन स्थापित करने के लिए भूमि का उपयोग करने के लिए मुआवजा निर्धारित कर सकता: बॉम्बे हाईकोर्ट

Shahadat

16 Dec 2023 7:46 AM GMT

  • टेलीग्राफ अथॉरिटी के रूप में नियुक्त लाइसेंसधारी बिजली ट्रांसमिशन लाइन स्थापित करने के लिए भूमि का उपयोग करने के लिए मुआवजा निर्धारित कर सकता: बॉम्बे हाईकोर्ट

    बॉम्बे हाईकोर्ट ने हाल ही में माना कि टेलीग्राफ अथॉरिटी के रूप में नियुक्त ट्रांसमिशन लाइसेंसधारी के पास बिजली ट्रांसमिशन लाइनें स्थापित करने के लिए भूमि का उपयोग करने के लिए मुआवजे का भुगतान करने की शक्ति के साथ-साथ मुआवजा राशि निर्धारित करने की भी शक्ति है।

    जस्टिस अविनाश जी घरोटे ने कहा कि भारतीय टेलीग्राफ एक्ट, 1885 की धारा 10 (डी) के तहत मुआवजा देने की शक्ति में मुआवजा निर्धारित करने की शक्ति भी शामिल है, क्योंकि मुआवजे के निर्धारण के बिना कोई भुगतान नहीं हो सकता है।

    अदालत ने कहा,

    “प्रतिवादी नंबर 4 (जमींदार) के विद्वान वकील कोठारी का तर्क है कि टेलीग्राफ एक्ट की धारा 10 (डी) केवल भुगतान करने की शक्ति पर विचार करती है न कि जिला कलेक्टर द्वारा मुआवजे का निर्धारण करने की और मुआवजे का निर्धारण किया जाना है, मेरी सुविचारित राय गलत है…।"

    अदालत ने कहा कि यदि जिला कलेक्टर के पास मुआवजा निर्धारित करने का अधिकार होता तो टेलीग्राफ एक्ट की धारा 10 (डी) में ऐसा प्रावधान होता।

    अदालत ने महाराष्ट्र ईस्टर्न ग्रिड पावर ट्रांसमिशन कंपनी लिमिटेड की रिट याचिका को अनुमति दी, जिसमें सिंदखेडराजा में उप-विभागीय अधिकारी (एसडीओ) के 05 सितंबर, 2018 के आदेश को चुनौती दी गई। आदेश में एक विद्युत पारेषण लाइन की स्थापना के लिए दिलीप बीकाजी धेटे की भूमि का उपयोग करने के लिए मुआवजे का निर्धारण किया गया।

    याचिकाकर्ता को ट्रांसमिशन लाइनों की स्थापना और संचालन के लिए महाराष्ट्र राज्य विद्युत नियामक आयोग (एमईआरसी) द्वारा लाइसेंसधारी के रूप में नियुक्त किया गया।

    याचिकाकर्ता के वकील डीवी चौहान ने 13 जून, 2011 के आदेश पर भरोसा किया, जिसमें याचिकाकर्ता को टेलीग्राफ अथॉरिटी की शक्तियां दी गईं। चौहान ने प्रकाश डाला कि याचिकाकर्ता को विशेष रूप से विद्युत अधिनियम की धारा 164 (कुछ मामलों में टेलीग्राफ प्राधिकरण की शक्तियों का प्रयोग) की टेलीग्राफ अथॉरिटी की शक्तियों का प्रयोग करने के लिए उपयुक्त प्राधिकारी बनाया गया।

    उन्होंने तर्क दिया कि इसने टेलीग्राफ एक्ट की धारा 10 (डी) के तहत मुआवजा निर्धारित करने के लिए याचिकाकर्ता को निहित विशेष अधिकार को मजबूत किया। चौहान ने तर्क दिया कि इस प्रकार, टेलीग्राफ एक्ट की धारा 16(3) के तहत केवल जिला जज के पास मुआवजे की राशि पर विवाद पर विचार करने का अधिकार क्षेत्र है।

    महाराष्ट्र विद्युत कार्य लाइसेंसधारी नियम, 2012 (एमईडब्ल्यूएल नियम) के नियम 3(1) से 3(3) में प्रावधान है कि जिला कलेक्टर एमईआरसी द्वारा संशोधन के अधीन विद्युत आपूर्ति लाइनें लगाने के लिए लाइसेंसधारी द्वारा भुगतान किए जाने वाले मुआवजे का निर्धारण करेगा।

    चौहान ने तर्क दिया,

    हालांकि, नियम 3(4) बिजली एक्ट की धारा 164 के तहत लाइसेंसधारी की शक्तियों को संरक्षित करता है।। इसलिए एसडीओ के पास मुआवजा निर्धारित करने का कोई अधिकार क्षेत्र नहीं होगा।

    जमीन मालिक के वकील जेएच कोठारी ने एसडीओ के आदेश का समर्थन करते हुए तर्क दिया कि टेलीग्राफ एक्ट की धारा 10 (डी) के तहत टेलीग्राफ अथॉरिटी को केवल मुआवजा देने का अधिकार है, उसे निर्धारित करने का नहीं।

    उन्होंने तर्क दिया कि याचिकाकर्ता की शक्तियां सरकारी प्रस्ताव में उल्लिखित अपवादों के अधीन हैं। उन्होंने तर्क दिया कि बाद के जीआर द्वारा मजबूत किए गए एसडीओ के पास मुआवजा निर्धारित करने का सही अधिकार है। उन्होंने कहा कि एमईडब्ल्यूएल नियम, 2012 के अनुसार, जिला कलेक्टर या उनके द्वारा अधिकृत अधिकारी को मुआवजा निर्धारित करने की शक्ति है।

    उन्होंने यह भी तर्क दिया कि चूंकि कलेक्टर को मुआवजा निर्धारित करने का निर्देश देने वाले एमईआरसी के आदेश को चुनौती नहीं दी गई, इसलिए इसे अंतिम रूप दे दिया गया और इसलिए इस मामले में प्रतिनिधि यानी एसडीओ के माध्यम से केवल कलेक्टर ही मुआवजा निर्धारित कर सकते हैं।

    अदालत ने कहा कि बिजली अधिनियम की धारा 164 के तहत लाइसेंसधारी को टेलीग्राफ एक्ट की धारा 10 (डी) द्वारा टेलीग्राफ अथॉरिटी की शक्तियां देकर दिया गया अधिकार क्षेत्र वैधानिक प्रकृति का है। इसलिए यह एमईडब्ल्यूएल नियमों जैसे किसी भी नियम के माध्यम से किसी भी अन्य प्राधिकरण में बनाए गए किसी भी क्षेत्राधिकार पर लागू होगा, क्योंकि नियम हमेशा एक वैधानिक प्रावधान के अधीन होते हैं।

    अदालत ने कहा,

    “एक बार जब बिजली एक्ट की धारा 14 के तहत नियुक्त लाइसेंसधारी को बिजली एक्ट, 2003 की धारा 164 के तहत शक्तियों के प्रयोग के आधार पर टेलीग्राफ अथॉरिटी के रूप में गठित किया जाता है तो ट्रांसमिशन लाइन का निर्माण और रखरखाव टेलीग्राफ एक्ट द्वारा, न कि विद्युत अधिनियम, 2003 द्वारा प्रावधानों द्वारा नियंत्रित किया जाएगा।”

    अदालत ने निष्कर्ष निकाला कि टेलीग्राफ प्राधिकरण के रूप में मान्यता प्राप्त ट्रांसमिशन लाइसेंसधारी के रूप में याचिकाकर्ता के पास टेलीग्राफ एक्ट की धारा 10 (डी) के तहत मुआवजा निर्धारित करने और भुगतान करने की वैधानिक और विशेष शक्ति है। अदालत ने रेखांकित किया कि एमईडब्ल्यूएल नियमों के नियम 3(4) ने लाइसेंसधारी की शक्तियों को संरक्षित रखा है।

    अदालत ने कहा,

    टेलीग्राफ अथॉरिटी के रूप में कार्य करने वाले लाइसेंसधारी द्वारा किसी व्यक्ति को दिए गए मुआवजे पर टेलीग्राफिक एक्ट की धारा 16(3) के तहत जिला न्यायाधीश के पास जाकर ही सवाल उठाया जा सकता है, अन्यथा नहीं।

    कोर्ट ने एसडीओ के दिनांकित आदेश को क्षेत्राधिकार विहीन करार देते हुए रद्द कर दिया। अदालत ने एमईआरसी के समक्ष भूमि मालिक द्वारा शुरू की गई कार्यवाही को इसी तरह अधिकार क्षेत्र की कमी के रूप में वर्गीकृत किया।

    केस टाइटल- महाराष्ट्र ईस्टर्न ग्रिड पावर ट्रांसमिशन कंपनी लिमिटेड बनाम बुलढाणा के कलेक्टर और अन्य।

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