पत्नी के खिलाफ विश्वासघात और बेवफाई का आरोप लगाना मानसिक क्रूरता के समानः केरल हाईकोर्ट ने कपल को तलाक की मंजूरी दी

LiveLaw News Network

30 Jun 2021 7:15 AM GMT

  • पत्नी के खिलाफ विश्वासघात और बेवफाई का आरोप लगाना मानसिक क्रूरता के समानः केरल हाईकोर्ट ने कपल को तलाक की मंजूरी दी

    Kerala High Court

    केरल हाईकोर्ट ने सोमवार को एक वैवाहिक अपील को अनुमति देते हुए कहा कि कि एक पति या पत्नी द्वारा दूसरे के खिलाफ निराधार और चरित्र हनन का आरोप लगाना मानसिक क्रूरता का गठन करेगा।

    न्यायमूर्ति ए. मोहम्मद मुस्तक और न्यायमूर्ति कौसर एडप्पागथ की खंडपीठ ने कहा किः

    ''प्रतिवादी उसके द्वारा लगाए गए उन आरोपों को साबित करने में बुरी तरह विफल रहा है कि अपीलकर्ता का किसी अन्य व्यक्ति के साथ संबंध है और वह एक अपवित्र महिला है। पत्नी पर अपवित्रता और विश्वासघात जैसे घृणित आरोप लगाना, निस्संदेह मानसिक क्रूरता का सबसे खराब रूप है।''

    अपीलकर्ता सबिथा उन्नीकृष्णन ने मावेलिक्कारा फैमिली कोर्ट के उस फैसले को चुनौती दी थी,जिसमें उसकी तलाक के लिए पति के खिलाफ दायर मूल याचिका को खारिज कर दिया गया था। फैमिली कोर्ट ने अपने आदेश में कहा था कि वह क्रूरता साबित करने में विफल रही है।

    दोनों पक्षकार ओमान में नौकरी करते थे। अपीलकर्ता के अनुसार, उनके सहवास के दौरान, प्रतिवादी ने उसके खिलाफ अपवित्रता के झूठे आरोप लगाए और इन्हें अपने रिश्तेदारों के साथ-साथ अपने कार्यस्थल पर भी फैला दिया, जहां अपीलकर्ता के पिता भी कार्यरत थे।

    तदनुसार, अपीलकर्ता को यू.एस.ए. में रहने वाली प्रतिवादी की मौसी की ओर से उस पर बेवफाई का आरोप लगाते हुए एक ईमेल प्राप्त हुआ। उक्त ईमेल में यह भी आरोप लगाया गया था कि अपीलकर्ता को उसके प्रेमी के साथ पुलिस ने पकड़ लिया था और उन दोनों को पुलिस स्टेशन भी ले जाया गया था।

    अपीलकर्ता ने कहा कि प्रतिवादी द्वारा लगाए गए (उसके व्यभिचारी आचरण के) इन झूठे आरोपों ने सहकर्मियों सहित अन्य लोगों की नजर में उसकी प्रतिष्ठा को कम कर दिया। इस प्रकार उसने दावा किया कि अब उससे प्रतिवादी के साथ रहने की उम्मीद नहीं की जा सकती है। उसने आगे यह भी आरोप लगाया कि प्रतिवादी उसकी वफादारी पर सवाल उठाते हुए अक्सर उससे झगड़ा करता था।

    अपील में मार्च 2012 को प्रतिवादी द्वारा अपीलकर्ता पर शारीरिक हमला करने का भी उल्लेख किया गया है, जिसके बाद से वह अलग रह रहे हैं।

    अपीलकर्ता की ओर से पेश होते हुए वकील नागराज नारायणन ने प्रस्तुत किया कि मौखिक और रिकॉर्ड पर मौजूद दस्तावेजी साक्ष्य स्पष्ट रूप से साबित करते हैं कि प्रतिवादी ने अपीलकर्ता पर मानसिक और शारीरिक दोनों तरह की क्रूरता का प्रयोग किया था।

    हालांकि, प्रतिवादी की ओर से पेश हुए एडवोकेट जैकब पी. एलेक्स ने आरोपों से इनकार किया और कहा कि वह अभी भी अपीलकर्ता के साथ रहने और अपने वैवाहिक दायित्वों का निर्वहन करने के लिए तैयार है। इसलिए प्रतिवादी ने याचिका को खारिज करने की मांग की।

    इसके अलावा, प्रतिवादी ने प्रस्तुत किया कि चूंकि उक्त ईमेल केवल एक अपुष्ट प्रति थी और इसके लेखक की जांच नहीं की गई थी, इसलिए उस पर कोई भरोसा नहीं किया जा सकता है। यहां तक कि अगर यह स्वीकार किया जाता है कि ईमेल प्रतिवादी की मौसी द्वारा भेजी गई थी, फिर भी ईमेल में इस बात का उल्लेख नहीं है कि प्रतिवादी ने अपीलकर्ता की बेवफाई की जानकारी उनको दी थी। इसलिए उसने दावा किया कि उसे इस ईमेल की सामग्री के लिए उत्तरदायी नहीं ठहराया जा सकता है।

    डिवीजन बेंच ने वकीलों द्वारा उठाए गए तर्कों पर विचार करते हुए कहा कि साक्ष्य अधिनियम के पारिभाषिक शब्दों को फैमिली कोर्ट के समक्ष चल रही कार्यवाही के लिए आयात नहीं किया जा सकता है। फैमिली कोर्ट एक्ट की धारा 14 एक फैमिली कोर्ट को पेश किए गए उन सभी दस्तावेजों पर भरोसा करने के लिए अधिकृत करती है,जिनके संबंध में यदि अदालत इस बात से संतुष्ट है कि विवाद से प्रभावी ढंग से निपटने के लिए वह अदालत की सहायता के लिए आवश्यक हैं।

    इसके अलावा, कोर्ट ने कहा कि मामले की परिस्थितियों से संकेत मिलता है कि प्रतिवादी ने अपनी मौसी को बताया कि अपीलकर्ता को पुलिस ने उसके प्रेमी के साथ पकड़ा है। इस कारण से, कोर्ट ने कहा कि ईमेल की सामग्री पर सुरक्षित रूप से भरोसा किया जा सकता है। प्रतिवादी भी अपीलकर्ता की दलीलों को नकारने के लिए कुछ भी ठोस पेश करने में विफल रहा है।

    अपीलकर्ता की कथित क्रूरता के आधार पर टिप्पणी करते हुए, पीठ ने कहा किः

    ''एक वैवाहिक अपराध के रूप में क्रूरता, वैवाहिक कर्तव्यों और दायित्वों के संबंध में एक आचरण है। यह तय किया गया है कि क्रूरता का गठन करने के लिए शारीरिक हिंसा बिल्कुल जरूरी नहीं है; एक क्रूरता की शिकायत मानसिक या शारीरिक हो सकती है। मानसिक क्रूरता जीवनसाथी के दिमाग की एक स्थिति और भावना है,जो दूसरे के व्यवहार या व्यवहार के पैटर्न के कारण बनती है और इसका निष्कर्ष उपस्थित तथ्यों और परिस्थितियों के संचयी रूप से निकाला जा सकता है।''

    न्यायालय ने वर्तमान मामले में संभावनाओं की प्रधानता का विश्लेषण किया और पाया कि अपीलकर्ता द्वारा प्रतिवादी पर लगाए गए मानसिक क्रूरता के मुख्य आरोप का कारण अपीलकर्ता के खिलाफ लगाया गया अपवित्रता का झूठा आरोप था।

    इसलिए, यह माना गया कि प्रतिवादी द्वारा लगाए गए आरोप इतने महत्वपूर्ण और प्रभावशाली थे कि अपीलकर्ता के मन में उचित आशंका पैदा हो गई कि उसके लिए वैवाहिक संबंध जारी रखना सुरक्षित नहीं है।

    खंडपीठ ने दलीलों व सबूतों पर समग्र रूप से विचार करते हुए अपीलकर्ता को हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 13 (1) (आईबी) के तहत क्रूरता के आधार पर विवाह को भंग करने की डिक्री प्रदान कर दी। इसी के साथ अपील को स्वीकार कर लिया गया और फैमिली कोर्ट के फैसले को खारिज कर दिया गया।

    केस का शीर्षक-सबिथा उन्नीकृष्णन बनाम विनीत दास

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