कानूनी प्रतिनिधि मोटर दुर्घटना दावा का हकदारः ‌दिल्‍ली हाईकोर्ट ने मृतक की पहली शादी से पैदा हुए बच्चों को दिए मुआवजे को बरकरार रखा

LiveLaw News Network

8 Feb 2022 9:56 AM GMT

  • दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्‍ली हाईकोर्ट ने यह दोहराते हुए कि किसी व्यक्ति का कानूनी प्रतिनिधि मोटर दुर्घटना दावा का हकदार है, एक फैसले में मृतक की पहली शादी से पैदा हुए दो बच्चों को दिए गया मुआवजा बरकरार रखा है।

    ज‌‌स्टिस संजीव सचदेवा 22.03.2021 को दिए फैसले के खिलाफ दायर एक याचिका पर विचार कर रहे थे। फैसले में दुर्घटना की एवज में बच्चों को मुआवजा दिया गया था, जबकि याचिका में उक्‍त फैसले को चुनौती दी गई ‌थी।

    अपीलकर्ता बीमा कंपनी का मामला था कि न्यायाधिकरण ने मृतक की पहली शादी से पैदा हुए दो बच्चों को मुआवजा देकर गलती की थी। यह प्रस्तुत किया गया था कि उन्हें मृतक के आश्रित परिजन के रूप में नहीं माना जा सकता।

    यह भी तर्क दिया गया कि ट्रिब्यूनल ने मृतक का मासिक वेतन 41,807 रुपये मानकर गलती की थी। मृतक की पत्नी का दावा था कि वेतन केवल 35,000 रुपये प्रति माह था। दूसरी ओर प्रतिवादियों ने यह प्रस्तुत किया कि दोनों बच्चे मृतक के साथ रह रहे थे और इस तरह उन्हें उस पर आश्रित माना जाएगा।

    "जहां तक ​​गैर आर्थिक मद के तहत मुआवजे देने का संबंध है, गुजरात राज्य सड़क परिवहन निगम बनाम रमनभाई प्रभातभाई और अन्य, (1987) एससीसी (3) 234 के फैसले का संदर्भ लिया जा सकता है, जहां सुप्रीम कोर्ट ने माना है कि भारतीय समाज की स्थिति को देखते हुए, मोटर वाहन दुर्घटना में किसी व्यक्ति की मौत के कारण पीड़ित प्रत्येक कानूनी प्रतिनिधि के पास मुआवजे पाने का उपाय होना चाहिए।"

    उस फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने यह भी माना कि एक भारतीय परिवार में भाई, बहन और भाइयों के बच्चे और कभी-कभी पालक बच्चे एक साथ रहते हैं और वे परिवार के कमाऊ सदस्‍य पर निर्भर होते हैं और अगर एक मोटर दुर्घटना में कमाऊ सदस्य की मौत हो जाती है उन्हें मुआवजे से इनकार करने का कोई औचित्य नहीं है।

    इसके अलावा, कोर्ट ने एन जयश्री और अन्य बनाम चोलामंडलम एमएस जनरल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि मोटर वाहन कानून के अध्याय XII के उद्देश्य के लिए 'कानूनी प्रतिनिधि' शब्द की व्यापक व्याख्या की जानी चाहिए और इसे केवल मृतक के पति या पत्नी, माता-पिता और बच्चों तक ही सीमित नहीं रखा जाना चाहिए।

    अदालत ने कहा,

    "सुप्रीम कोर्ट ने माना कि मोटर वाहन कानून पीड़ितों या उनके परिवारों को मौद्रिक राहत प्रदान करने के उद्देश्य से बनाया गया एक उदार कानून है। इसलिए, मोटर वाहन कानून अपने अधिनियम वास्तविक उद्देश्य और विधायी मंशा को पूरा करने के लिए एक उदार और व्यापक व्याख्या की मांग करता है।"

    जहां तक ​​वेतन की मात्रा का संबंध है, न्यायालय ने कहा कि यह मृतक के नियोक्ता द्वारा दिए गए एक बयान के आधार पर निर्धारित किया गया था। तदनुसार, न्यायालय ने न्यायाधिकरण द्वारा दिए गए अधिनिर्णय और मुआवजे की गणना को बरकरार रखा।

    केस शीर्षक: यूनाइटेड इंडिया इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड बनाम फरीदा सरोश पूनावाला और अन्य।

    सिटेशन: 2022 लाइव लॉ (दिल्ली) 100

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