कानून के छात्रों ने की अंतिम वर्ष की परीक्षाएं रद्द करने की मांग : बॉम्बे हाईकोर्ट ने राज्य, यूजीसी और बीसीआई से जवाब मांगा
LiveLaw News Network
19 July 2020 6:03 PM IST
बॉम्बे हाईकोर्ट ने शुक्रवार को कानून के एक छात्र की तरफ से दायर जनहित याचिका पर महाराष्ट्र राज्य, विश्वविद्यालय अनुदान आयोग और बार काउंसिल ऑफ इंडिया से जवाब मांगा है। इस जनहित याचिका में COVID19 महामारी के चलते अंतिम वर्ष की परीक्षाएं रद्द करने की मांग की गई है।
मुख्य न्यायाधीश दीपांकर दत्ता और न्यायमूर्ति अनुजा प्रभुदेसाई की खंडपीठ ने राज्य, बीसीआई और यूजीसी को निर्देश दिया है कि वेे 24 जुलाई तक अपना जवाबी हलफनाम दाखिल करेंं। मामले में अगली सुनवाई 31 जुलाई 2020 को होगी।
याचिकाकर्ता समरवीर सिंह, गवर्नमेंट लॉ कॉलेज, मुंबई में चौथे वर्ष के कानून के छात्र हैं। जनहित याचिका में कहा गया है कि यदि उक्त परीक्षाएँ आयोजित की जाती हैं, तो छात्र उच्च अध्ययन के लिए आवेदन करने से चूक जाएँगे या उन फर्म या अधिवक्ताओं को ज्वाइन नहीं कर पाएंगे,जहां से उनको नौकरी के ऑफर मिले हैं या फिर वह अपनी प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी शुरू नहीं कर पाएंगे।
याचिका में कहा गया है कि ''जिन छात्रों का भारतीय या फिर विदेशी विश्वविद्यालयों में स्नातकोत्तर पाठ्यक्रमों या पोस्ट-ग्रेजुएट कोर्स में प्रवेश प्राप्त हो गया है,उन्हें एक साल का नुकसान होगा क्योंकि वे समय पर अपनी डिग्री जमा या प्रस्तुत नहीं कर पाएंगे।''
वहीं इस पीठ के समक्ष एक अन्य मामला भी आया है,जिसमें पांचवें वर्ष के कानून के छात्रों अविरुप मंडल, ओंकार वबल, स्वप्निल धगे, तेजस माने और सुरभि अग्रवाल ने एक रिट याचिका दायर कर अंतिम वर्ष की परीक्षाओं को रद्द करने और परिणामों की तत्काल घोषणा की मांग की थी। जिस पर पीठ ने सुनवाई भी की है।
इसके अतिरिक्त 19 जून 2020 को जारी महाराष्ट्र सरकार के जीआर के समर्थन में एक हस्तक्षेप आवेदन भी दायर किया गया है। जिसमें राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण ने निर्णय लिया है कि महामारी के बीच जो छात्र अंतिम वर्ष की परीक्षा में बैठने के इच्छुक नहीं है,उनकी परीक्षाएं रद्द करने की जाएं।
हालांकि इससे पहले, एक धनंजय कुलकर्णी ने जनहित याचिका दायर कर उक्त जीआर को चुनौती दी थी।
मुख्य न्यायाधीश दीपांकर दत्ता की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष कुलकर्णी की जनहित याचिका पर शुक्रवार को सुनवाई हुई थी। इस सुनवाई के दौरान महाधिवक्ता आशुतोष कुंभकोनी ने राज्य के रुख को स्पष्ट किया और कहा कि वर्तमान स्थिति में महाराष्ट्र में कोई भी परीक्षा आयोजित नहीं की जाएगी,चाहे वह प्रोफेशनल कोर्स से संबंधित हो या नाॅन-प्रोफेशनल कोर्स से।
याचिकाकर्ता छात्रों ने बार काउंसिल ऑफ इंडिया की अधिसूचना के साथ ही यूजीसी के संशोधित दिशानिर्देशों को चुनौती दी थी,जिसमें वर्तमान महामारी के दौरान परीक्षा आयोजित करने के लिए कहा गया था।
भारत संघ व यूजीसी की तरफ से अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल अनिल सिंह पेश हुए। उन्होंने इस याचिका के जवाब में हलफनामा दायर करने के लिए पीठ से समय मांगा।
दूसरी ओर इस मामले में अंतिम वर्ष के लाॅ छात्रों की तरफ से अधिवक्ता यशोदीप देशमुख साथ में एडवोकेट अक्षय कपाड़िया पेश हुए क्योंकि इन सभी छात्रों ने कुलकर्णी के मामले में हस्तक्षेप भी किया था।
मुख्य याचिकाकर्ता धनंजय कुलकर्णी की तरफ से वकील उदय वारुंजिकर पेश हुए,परंतु उन्होंने गंभीरता से हस्तक्षेप आवेदन का विरोध नहीं किया। जिसके बाद पीठ ने कानून के छात्रों की तरफ से दायर हस्तक्षेप आवेदन को स्वीकार कर लिया था। इसी के साथ, उनकी तरफ से दायर रिट याचिका को भी इसी मामले के साथ टैग कर दिया था।
याचिकाकर्ता छात्रों ने दावा किया है कि उनको विभिन्न वर्ग के 500 से अधिक अंतिम वर्ष के छात्रों का समर्थन प्राप्त है। उन्होंने दलील दी है कि याचिकाकर्ता सहित कई अन्य छात्र उच्च शिक्षा के लिए भारत और विदेशों के विश्वविद्यालयों में आवेदन करने के लिए उत्सुक हैं। जिसके लिए यह आवश्यक है कि जल्द से जल्द परिणाम घोषित कर दिए जाएं।
अधिवक्ता वारुंजिकर ने कहा कि उन्हें इस मामले में भारत सरकार के गृह मंत्रालय और राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण को भी अतिरिक्त प्रतिवादी के रूप जोड़ने की अनुमति दी जाए,जिसे न्यायालय ने स्वीकार कर लिया था। इसके अलावा मामले में राज्य की ओर से एक हलफनामा प्रस्तुत किया गया था और याचिकाकर्ता के अधिवक्ता को एक प्रति दे दी गई थी। जिसके बाद अधिवक्ता वारुंजिकर ने प्रत्युत्तर हलफनामा दायर करने के लिए एक सप्ताह का समय मांगा और न्यायालय ने इस मांग को भी स्वीकार कर लिया था।
मुंबई और महाराष्ट्र में पाॅजिटिव कोरोनावायरस मामलों की बढ़ती संख्या के बारे में चिंता व्यक्त करते हुए, याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया था कि-
''COVID19 के प्रकोप की वर्तमान स्थिति को देखते हुए महाराष्ट्र के दूर के जिलों में रहने वाले या अन्य राज्यों से आने वाले छात्रों को यात्रा करना बहुत मुश्किल होगा। न ही इन छात्रों को रहने के लिए कोई स्थान मिलेगा क्योंकि सरकार ने पहले ही बहुत सारे होटलों का संस्थागत संगरोध केंद्रों के रूप में अधिग्रहण कर लिया है। अकेले महाराष्ट्र में 12,000 से अधिक कंटेनमेंट जोन हैं।''
इस मामले में भी अगली सुनवाई 31 जुलाई 2020 को ही होगी।