लखीमपुर खीरी हिंसा : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने आशीष मिश्रा की जमानत याचिका खारिज की

Shahadat

26 July 2022 9:41 AM GMT

  • लखीमपुर खीरी हिंसा : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने आशीष मिश्रा की जमानत याचिका खारिज की

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने केंद्रीय मंत्री के बेटे आशीष मिश्रा की जमानत याचिका खारिज कर दी। आशीष मिश्रा लखीमपुर खीरी हिंसा मामले में मुख्य आरोपी हैं। कोर्ट ने कहा कि अगर उसे जमानत दी जाती है तो संभव है कि वह गवाहों को प्रभावित करे।

    मिश्रा 3 अक्टूबर, 2021 को हुई घटना के लिए हत्या के मामले का सामना कर रहा है। इस घटना में एसयूवी द्वारा कुचले जाने के बाद विरोध कर रहे चार किसानों की मौत हो गई थी। इस कार मेंमिश्रा कथित रूप से बैठा था।

    जस्टिस कृष्ण पहल की बेंच ने दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद 15 जुलाई को इस मामले में फैसला सुरक्षित रख लिया था।

    इससे पहले इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच के जस्टिस राजीव सिंह ने मामले की सुनवाई से खुद को अलग कर लिया था।

    मिश्रा को पहले फरवरी, 2022 में इलाहाबाद एचसी द्वारा जमानत दी गई थी। मगर उसे फिर से हाईकोर्ट का रुख करना पड़ा था, क्योंकि एचसी के पहले के आदेश को सुप्रीम कोर्ट ने अप्रैल, 2022 में रद्द कर दिया था और उसकी जमानत याचिका पर नए सिरे से विचार करने का आदेश दिया था।

    जमानत याचिका की पृष्ठभूमि

    इलाहाबाद हाईकोर्ट के जमानत आदेश को चुनौती देने वाले पीड़ितों द्वारा दायर अपील की अनुमति देते हुए मिश्रा की जमानत याचिका को अप्रैल, 2022 महीने में सुप्रीम कोर्ट द्वारा नए सिरे से विचार के लिए हाईकोर्ट में वापस भेज दिया गया था।

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 10 फरवरी को आशीष मिश्रा को जमानत दे दी थी। हाईकोर्ट ने यह यह देखते हुए जमानत दी थी कि इस बात की संभावना हो सकती है कि चालक (थार के) ने खुद को बचाने के लिए वाहन को तेज करने की कोशिश की हो, जिसके कारण घटना हुई।

    इसके बाद, पीड़ित एचसी के आदेश को चुनौती देने के लिए सुप्रीम कोर्ट चले गए। हालांकि, विशेष जांच दल की निगरानी करने वाले न्यायाधीश द्वारा इस आशय की सिफारिश के बावजूद उत्तर प्रदेश राज्य ने जमानत आदेश को चुनौती नहीं दी।

    लखीमपुर खीरी मामले में आशीष मिश्रा की जमानत रद्द करने के आदेश में सुप्रीम कोर्ट ने अप्रैल, 2022 में इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा मामले के पीड़ितों को जमानत देने से पहले उनकी सुनवाई से इनकार करने पर निराशा व्यक्त की थी।

    कोर्ट ने केंद्रीय मंत्री अजय कुमार मिश्रा के बेटे आशीष मिश्रा को जमानत देने में हाईकोर्ट की ओर से दिखाई गई 'हड़बड़ी में फट पड़ने' पर भी आलोचनात्मक टिप्पणी की थी।

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि हाईकोर्ट को अभियुक्तों की जमानत याचिकाओं की सुनवाई में भाग लेने के पीड़ितों के अधिकारों को स्वीकार करना चाहिए। लखीमपुर खीरी हिंसा में मारे गए किसानों के करीबी रिश्तेदारों ने हाईकोर्ट के समक्ष मिश्रा द्वारा दायर जमानत याचिका में हस्तक्षेप करने की मांग की थी। हालांकि, उनके वकील प्रभावी प्रस्तुतियां नहीं दे सके, क्योंकि वे वर्चुअल सुनवाई के दौरान डिस्कनेक्ट हो गए थे। हालांकि उन्होंने सुनवाई के लिए आवेदन दायर किया था, लेकिन हाईकोर्ट ने इस पर विचार नहीं किया।

    मामला हाईकोर्ट में वापस भेजे जाने के बाद जस्टिस कृष्ण पहल की खंडपीठ के समक्ष है, जिन्होंने पहले पीड़ित जगजीत सिंह को जवाबी हलफनामा दायर करने के लिए दो सप्ताह का समय दिया था।

    संबंधित समाचार में, लखीमपुर खीरी हिंसा की घटना के चार मुख्य आरोपियों को जमानत देने से इनकार करते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मई, 2022 में कहा कि यदि केंद्रीय गृह राज्य मंत्री ने किसानों को पीछा करने की धमकी देने वाले कथित बयान नहीं दिए होते तो शायद यह घटना नहीं होती।

    जस्टिस दिनेश कुमार सिंह ने कहा,

    "उच्च पदों पर बैठे राजनीतिक व्यक्तियों को समाज में इसके नतीजों को देखते हुए सभ्य भाषा में सार्वजनिक भाषण देना चाहिए। उन्हें गैर-जिम्मेदाराना बयान नहीं देना चाहिए, क्योंकि उन्हें अपनी स्थिति और उच्च पद की गरिमा के अनुरूप आचरण करने की आवश्यकता होती है।"

    कोर्ट को यह भी दिलचस्प लगा कि जब क्षेत्र में सीआरपीसी की धारा 144 लागू थी तो कुश्ती प्रतियोगिता का आयोजन क्यों किया गया। क्यों केंद्रीय गृह राज्य मंत्री अजय मिश्रा टेनी और उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित होने का फैसला किया।

    यह कहते हुए कि सांसदों को कानून का उल्लंघन करने वाले के रूप में नहीं देखा जा सकता, अदालत ने इसे अविश्वासनीय कहा कि यह राज्य के उप मुख्यमंत्री के ज्ञान में नहीं होगा कि धारा 144 सीआरपीसी के क्षेत्र में प्रावधान हैं।

    गौरतलब है कि कोर्ट ने अपराध की स्वतंत्र, निष्पक्ष और वैज्ञानिक जांच करने के लिए विशेष जांच दल के प्रयासों की सराहना की। इसके साथ ही बेंच ने कहा कि चार्जशीट ने आरोपी-आवेदक और अपराध के सह-अभियुक्त के खिलाफ भारी सबूतों का खुलासा किया, जिसे क्रूर, शैतानी, क्रूर, बर्बर, भ्रष्ट, भीषण और अमानवीय करार दिया गया है।

    केस टाइटल- आशीष मिश्रा @ मोनू बनाम यू.पी. राज्य [आपराधिक विविध जमानत आवेदन नंबर - 2021 का 13762]

    Next Story