RG Kar मामले में कोर्ट ने मृत्युदंड देने से इनकार किया, कहा- अदालत को जनता के दबाव के आगे नहीं झुकना चाहिए
Shahadat
22 Jan 2025 4:10 AM

RG Kar Rape-Murder case में दोषी संजय रॉय को मृत्युदंड देने से इनकार करते हुए और आजीवन कारावास की सजा सुनाते हुए सेशन जज अनिरबन दास ने कहा कि इस तरह के मामलों में भावनात्मक प्रतिक्रियाएं और जनता की राय हो सकती है, लेकिन अदालत का कर्तव्य है कि वह मामले का फैसला गुण-दोष के आधार पर करे और बाहरी कारकों से प्रभावित न हो।
कोर्ट ने कहा:
न्यायपालिका की प्राथमिक जिम्मेदारी कानून के शासन को बनाए रखना और साक्ष्य के आधार पर न्याय सुनिश्चित करना है, न कि जनता की भावना के आधार पर। यह सबसे महत्वपूर्ण है कि अदालत मुकदमे के दौरान प्रस्तुत तथ्यों और साक्ष्यों पर ध्यान केंद्रित करके अपनी निष्पक्षता बनाए रखे, न कि जनता की राय या मामले पर भावनात्मक प्रतिक्रियाओं से प्रभावित हो। इसके अलावा, अदालत को अभियुक्त के अधिकारों और परिस्थितियों के साथ-साथ अपने निर्णयों के व्यापक निहितार्थों पर भी विचार करना चाहिए। इस विशेष मामले में यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि दोषी द्वारा पहले आपराधिक व्यवहार या कदाचार का कोई सबूत नहीं है।
कोर्ट ने आगे कहा,
"आधुनिक न्याय के क्षेत्र में हमें "आँख के बदले आँख" या "दांत के बदले दांत" या "कील के बदले कील" या "जीवन के बदले जीवन" की आदिम प्रवृत्ति से ऊपर उठना चाहिए। हमारा कर्तव्य क्रूरता का मुकाबला क्रूरता से करना नहीं है, बल्कि ज्ञान, करुणा और न्याय की गहरी समझ के माध्यम से मानवता को ऊपर उठाना है। सभ्य समाज का मापदंड बदला लेने की उसकी क्षमता में नहीं, बल्कि सुधार, पुनर्वास और अंततः उपचार करने की उसकी क्षमता में निहित है।"
बचन सिंह मामले में सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले का हवाला देते हुए, जिसने मृत्युदंड लगाने के लिए दिशा-निर्देश स्थापित किए, अदालत ने कहा कि यह स्पष्ट है कि यह मामला "दुर्लभतम में से दुर्लभतम" के रूप में वर्गीकृत होने के लिए कड़े मानदंडों को पूरा नहीं करता है।
इन विचारों को देखते हुए मृत्युदंड के लिए अभियोजन पक्ष के अनुरोध को स्वीकार करना अनुचित होगा। न्यायालय ने कहा कि पीड़ित के माता-पिता के अपार दुख और पीड़ा को स्वीकार करते हुए, जिसके लिए कोई भी सजा पूरी तरह से राहत नहीं दे सकती, न्यायालय का कर्तव्य है कि वह ऐसी सजा सुनाए जो आनुपातिक, न्यायसंगत और स्थापित कानूनी सिद्धांतों के अनुरूप हो।
न्यायाल ने कहा,
अंत में इस मामले में सावधानीपूर्वक विचार-विमर्श करके उचित सजा सुनाए जाने की आवश्यकता है, जो अपराध की गंभीरता को न्याय, पुनर्वास और मानवीय गरिमा के संरक्षण के सिद्धांतों के साथ संतुलित करे। न्यायालय को जनता के दबाव या भावनात्मक अपील के आगे झुकने के प्रलोभन से बचना चाहिए। इसके बजाय ऐसा फैसला सुनाने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए, जो कानूनी प्रणाली की अखंडता को बनाए रखे और न्याय के व्यापक हितों की सेवा करे।
पश्चिम बंगाल सरकार ने रॉय के लिए मृत्युदंड की मांग करते हुए कलकत्ता हाईकोर्ट में अपील दायर की है।