आईपीसी की धारा 377 के तहत चूमना और प्यार करना अप्राकृतिक अपराध नहीं: बॉम्बे हाईकोर्ट ने POCSO आरोपी को जमानत दी

Shahadat

16 May 2022 7:05 AM GMT

  • बॉम्बे हाईकोर्ट, मुंबई

    बॉम्बे हाईकोर्ट

    बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा कि चुंबन और निजी अंगों को छूना प्रथम दृष्टया भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 377 के तहत अप्राकृतिक अपराध नहीं है। इसके साथ ही हाईकोर्ट ने नाबालिग लड़के के यौन उत्पीड़न के आरोपी व्यक्ति को जमानत दे दी।

    उस व्यक्ति ने सीआरपीसी की धारा 439 के तहत जमानत मांगी थी।

    एफआईआर के अनुसार आरोपी ने पीड़ित के गुप्तांगों को छुआ था और उसके होठों को चूमा था। उसके खिलाफ आईपीसी की धारा 377, 384, और धारा 420 और प्रोटेक्शन ऑफ़ चिल्ड्रेन फ्रॉम सेक्सुअल अफेंसेस एक्ट (POCSO अधिनियम), 2012 की धारा 8 और धारा 12 के तहत मामला दर्ज किया गया था।

    जस्टिस अनुजा प्रबुदेसाई ने कहा,

    "मेरे विचार में यह प्रथम दृष्टया भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 377 के तहत अपराध नहीं होगा।"

    आईपीसी की धारा 377 के तहत अपराधों में आजीवन कारावास या किसी एक अवधि के कारावास का प्रावधान है जो दस साल तक बढ़ सकता है। साथ ही जुर्माना भी हो सकता है।

    पोक्सो अधिनियम की धारा 8 और धारा 12 के तहत अपराध के लिए अधिकतम कारावास पांच वर्ष है।

    इसलिए, अदालत ने कहा कि आवेदक लगभग एक साल से हिरासत में है। आरोप अभी तय नहीं हुआ है और निकट भविष्य में मुकदमा शुरू होने की संभावना नहीं है।

    अदालत ने कहा,

    "उपरोक्त तथ्यों और परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए आवेदक जमानत का हकदार है।"

    पीड़ित के पिता द्वारा की गई शिकायत के आधार पर एफआईआर दर्ज की गई है। पिता ने आरोप लगाया कि 17/04/2021 को उन्हें अलमारी से कुछ पैसे गायब मिले।

    पूछताछ करने पर उन्हें पता चला कि पीड़ित ऑनलाइन ओला पार्टी गेम खेलता था और उसने उक्त गेमिंग ऐप को रिचार्ज करने के लिए आरोपी को रुपए दिए थे।

    पीड़ित ने अपने माता-पिता को यह भी बताया कि आवेदक ने उसका यौन शोषण किया। पीड़ित के बयान के साथ-साथ एफआईआर में प्रथम दृष्टया संकेत मिलता है कि आवेदक ने पीड़ित के गुप्तांगों को छुआ था और उसके होठों को चूमा था।

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