केरल हाईकोर्ट ने मानसिक रूप से विकलांग बलात्कार पीड़िता के 15 सप्ताह से अधिक के गर्भ को समाप्त करने की अनुमति दी

LiveLaw News Network

27 July 2021 4:44 PM IST

  • केरल हाईकोर्ट ने मानसिक रूप से विकलांग बलात्कार पीड़िता के 15 सप्ताह से अधिक के गर्भ को समाप्त करने की अनुमति दी

    केरल हाईकोर्ट

    केरल हाईकोर्ट ने माता-पिता की भूमिका निभाते हुए सोमवार को मानसिक रूप से विकलांग बलात्कार पीड़िता के 15 सप्ताह से अधिक के गर्भ को समाप्त करने की अनुमति देते हुए कहा कि यह उसके सर्वोत्तम हित में है क्योंकि वह खुद से निर्णय लेने में असमर्थ है।

    न्यायमूर्ति पी.बी सुरेश कुमार ने सरकारी मानसिक स्वास्थ्य केंद्र और श्री अवितोम थिरुनल अस्पताल को गर्भावस्था के चिकित्सकीय गर्भपात की अनुमति दी। अस्पतालों को भ्रूण के ऊतक लेने और डीएनए जांच के लिए इसे बनाए रखने का भी निर्देश दिया गया क्योंकि महिला बलात्कार पीड़िता है।

    बिहार की रहने वाली पीड़िता जब पुलिस को मिली तो वह सड़कों पर घूम रही थी। मेडिकल जांच में पता चला कि वह गर्भवती है। चूंकि उसके रिश्तेदारों का पता नहीं चल सका है। इसलिए जिला कानूनी सेवा प्राधिकरण से सहायता मांगी गई।

    केरल राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण ने याचिका दायर कर पीड़िता के गर्भ को चिकित्सकीय रूप से समाप्त करने की अनुमति देने के आदेश की मांग करते हुए कहा कि मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट, 1971 की धारा 3(4)(ए) के अनुसार पीड़िता बालिग होने के कारण गर्भावस्था को समाप्त करने के लिए उसकी सहमति आवश्यक है और पीड़िता गर्भावस्था को समाप्त करने के लिए सहमति देने की स्थिति में नहीं है।

    याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता केपी प्रदीप पेश हुए। एएसजी एपी विजयकुमार और सरकारी वकील विनीता बी ने मामले में प्रतिवादियों का प्रतिनिधित्व किया।

    सिंगल बेंच ने एक मेडिकल बोर्ड की रिपोर्ट के आधार पर निर्णय लिया, जिसमें महिला की जांच के बाद पता चला कि गर्भावस्था जारी रखने से पीड़िता के जीवन को खतरा नहीं है, लेकिन मां और बच्चे के लिए एक उच्च जोखिम है क्योंकि वह कई एंटीसाइकोटिक दवाएं ले रही हैं।

    अदालत ने अपने आदेश में कहा कि मानसिक स्वास्थ्य केंद्र से जुड़े मेडिकल बोर्ड द्वारा जारी एक प्रमाण पत्र में यह भी संकेत दिया गया है कि पीड़िता मानसिक रूप से पीड़ित है और निर्णय लेने या अपनी राय देने में असमर्थ है।

    अदालत ने कहा कि,

    "इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए कि मामले में शामिल व्यक्ति एक बलात्कार पीड़िता है और मेडिकल बोर्ड की राय पर विचार करते हुए मेरा विचार है कि इस प्रकार के मामले में यह संबंधित व्यक्ति के सर्वोत्तम हित में है कि उसकी गर्भावस्था को समाप्त करने की अनुमति दें।"

    बेंच ने कहा कि वर्तमान मामले में एक ऐसी गर्भावस्था है जिसे एक पंजीकृत चिकित्सक की राय के आधार पर समाप्त किया जा सकता है कि गर्भावस्था को जारी रखने से उसके मानसिक स्वास्थ्य को गंभीर चोट लगेगी क्योंकि गर्भधारण की अवधि बीस सप्ताह से अधिक नहीं है।

    अदालत ने कहा कि ऐसे गर्भावस्था को उपरोक्त तर्ज पर दो चिकित्सकों की राय के आधार पर समाप्त किया जा सकता है। परंतु मामले में एकमात्र बाधा यह है कि पीड़िता सहमति देने की स्थिति में नहीं है।

    अदालत ने इसके बाद 'पैरेंस पैट्रिया' के सिद्धांत को लागू किया, एक अवधारणा जो सामान्य कानून में विकसित हुई और उन स्थितियों पर लागू होती है जहां राज्य को उन व्यक्तियों के हितों की रक्षा के लिए निर्णय लेना चाहिए जो स्वयं की देखभाल करने में असमर्थ हैं।

    सिंगल बेंच ने टिप्पणी की कि,

    "यह सिद्धांत नाबालिगों और उन व्यक्तियों के अधिकारों से जुड़े मामलों में लागू किया जाता है जो मानसिक रूप से पीड़ित होने के कारण अपने लिए निर्णय लेने में अक्षम पाए गए हैं।"

    कोर्ट ने आगे कहा कि भारत में अदालतों ने मानसिक रूप से बीमार व्यक्तियों की ओर से प्रजनन संबंधी निर्णय लेने के उद्देश्य से 'पैरेंस पैट्रिया' क्षेत्राधिकार का प्रयोग किए हैं।

    कोर्ट ने कहा कि उक्त परीक्षणों में से एक 'सर्वोत्तम हितों' की परीक्षा है, जिसके लिए अदालत को कार्रवाई के पाठ्यक्रम का पता लगाने की आवश्यकता होती है जो व्यक्ति के सर्वोत्तम हितों में होनी चाहिए।

    केस का शीर्षक: केरल राज्य कानूनी सेवा प्राधिकरण बनाम भारत संघ एंड अन्य।

    आदेश की कॉपी यहां पढ़ें:



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