केरल हाईकोर्ट ने 14 मामलों में 18 साल जेल काटने वाले 61 वर्षीय अपराधी की रिहाई का आदेश दिया

LiveLaw News Network

28 July 2021 4:09 AM GMT

  • केरल हाईकोर्ट ने 14 मामलों में 18 साल जेल काटने वाले 61 वर्षीय अपराधी की रिहाई का आदेश दिया

    केरल हाईकोर्ट ने हाल ही में एक 61 वर्षीय व्यक्ति को राहत दी, जिसने राज्य भर की विभिन्न अदालतों में लंबित 14 आपराधिक मामलों में सजा काटने के लिए 18 साल से अधिक समय तक सलाखों के पीछे बिताया था।

    न्यायमूर्ति अशोक मेनन ने इस मामले में हस्तक्षेप किया और उसकी रिहाई का आदेश देने के लिए आपराधिक प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 427 के तहत अदालत को प्राप्त शक्ति का इस्तेमाल किया।

    याचिकाकर्ता को चोरी, सेंधमारी और छुपकर घर में प्रवेश करने जैसे अपराधों से संबंधित 14 मामलों के लिए दोषी ठहराया गया था। परिणामस्वरूप उसे सभी मामलों में छह महीने से पांच साल की अवधि की जेल की सजा के लिए दोषी ठहराया गया था।

    10 अप्रैल 2003 को गिरफ्तार होने के बाद से याचिकाकर्ता जेल में था।

    अदालत ने पाया कि सभी सजाओं को एक के बाद एक लगातार जारी रहना था क्योंकि किसी भी अदालत ने धारा 427 के तहत अपने विवेक का इस्तेमाल नहीं किया ताकि सजा को एक साथ चलाने का आदेश दिया जा सके। ऐसा इसलिए था क्योंकि उसे अलग-अलग समय पर किए गए विभिन्न अपराधों में में भिन्न-भिन्न अदालतों द्वारा दोषी ठहराया गया था।

    धारा 427 अदालतों को यह आदेश देने की शक्ति प्रदान करती है कि क्रमिक चलने वाली सजाएं साथ-साथ चलेंगी। यदि मजिस्ट्रेट ने इस शक्ति का प्रयोग किया होता, तो याचिकाकर्ता को पांच साल की जेल की सजा काटने के बाद रिहा किया गया होता, जो कि 14 मामलों में से एक में उसे दी गई अधिकतम सजा थी।

    याचिकाकर्ता की दलील थी कि अगर सजा एक के बाद एक लगातार चलती रही तो उसे 30 साल छह महीने सलाखों के पीछे रहना होगा।

    याचिकाकर्ता की ओर से एडवोकेट वी जॉन सेबेस्टियन राल्फ पेश हुए और दलील दी कि वह बूढ़ा और दुर्बल है। तद्नुसार, यह प्रार्थना की गई कि याचिकाकर्ता की निरंतर हिरासत अवैध है और इसलिए, जेल अधिकारियों को याचिकाकर्ता को रिहा करने का निर्देश देने के लिए विशिष्ट आदेश दिए जाएं।

    दस्तावेजों और दलीलों पर विचार करने के बाद, न्यायालय ने इस प्रकार कहा:

    "मुझे लगता है कि यह न्याय के हित में होगा यदि अदालत सीआरपीसी की धारा 482 के तहत अपने अधिकार क्षेत्र का प्रयोग करते हुए सीआरपीसी की धारा 427 के तहत शक्तियों का इस्तेमाल करने का हस्तक्षेप करती है।"

    सिंगल बेंच ने सीआरपीसी की धारा 482 के तहत हाईकोर्ट के अधिकार क्षेत्र का इस्तेमाल करते हुए सीआरपीसी की धारा 427 पर अमल किया और जिस केंद्रीय कारागार में याचिकाकर्ता को रखा गया था उसके अधीक्षक को निर्देश दिया कि यह रिकॉर्ड करते हुए उसे तुरंत रिहा किया जाये कि वह जिन अपराधों में दोषी ठहराया गया था उन सभी अपराधों में सजा काट चुका है।

    कोर्ट ने याचिकाकर्ता की उम्र को भी ध्यान में रखा।

    कोर्ट ने आदेश दिया,

    "मैंने पाया है कि याचिकाकर्ता ने मामले में बचाव के लिए कोई दलील दलील भी नहीं दी थी और गलती मान ली थी, जिसके परिणामस्वरूप उसे कारावास की सजा सुनाई गई थी। वह 60 वर्ष से अधिक आयु का है और अब 18 साल से अधिक समय जेल में काट चुका है। इन परिस्थितियों मे सीआरपीसी की धारा 482 के तहत अधिकार क्षेत्र का इस्तेमाल करते हुए याचिका को मंजूर किया जाता है और प्रतिवादियों को निर्देश दिया जाता है कि वे यह रिकॉर्ड करते हुए आरोपी को तुरंत रिहा किया जाये कि वह जिन अपराधों में दोषी ठहराया गया था उन सभी अपराधों में सजा काट चुका है।"

    हालांकि, बेंच ने माना कि धारा 482 के तहत प्रदत्त शक्ति का इस्तेमाल अत्यंत सावधानी के साथ किया जाना चाहिए।

    कोर्ट ने कहा,

    "यह तथ्य कि सीआरपीसी की धारा 482 के तहत ऐसी शक्ति केवल उच्च न्यायालय में निहित है, शक्ति के दुरुपयोग को रोकने के लिए एक सुरक्षा कवच है और इसलिए इन शक्तियों का इस्तेमाल करते समय अत्यधिक सावधानी की आवश्यकता है। शक्ति के इस्तेमाल का उद्देश्य न्यायालय की प्रक्रिया के दुरुपयोग को रोकने और न्याय सुरक्षित करने से है, इसलिए उसका मानना है कि केवल कानून होने की तुलना में न्याय होना अधिक उच्चतर है।"

    कोर्ट ने याचिकाकर्ता की दलीलों में दम देखा। इसने 'नीरा यादव बनाम सीबीआई' मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का उल्लेख किया, जिसमें यह कहा गया है कि धारा 427 के तहत अदालत को समवर्ती सजा का आदेश देने की शक्ति विवेकाधीन है।

    "अदालत द्वारा अपनाया गया हितैषी सिद्धांत सजा की समग्रता है। एक आरोपी के खिलाफ एक ही मामले में दी गई अधिकतम सजा दूसरे मामले में समवर्ती सजा देते समय प्रासंगिक है। मामले के तथ्यों पर विचार करके केवल उपयुक्त मामलों में ही अदालत सीआरपीसी की धारा 31 के साथ पठित धारा 427 के तहत शक्तियों का प्रयोग करते हुए पहले की सजा के साथ सजा को समवर्ती बनाती है।"

    इसलिए कोर्ट ने याचिकाकर्ता को उसकी सजा से रिहा कर दिया।

    केस का शीर्षक : शिवानन्दन बनाम अधीक्षक, केंद्रीय कारा एवं सुधार गृह

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