केरल हाईकोर्ट ने मोटर व्हीकल एक्ट के तहत क्लेम याचिकाओं की परिसीमा अवधि निर्धारित करने के लिए 'महीना' का अर्थ बताया

Brij Nandan

30 Dec 2022 7:49 AM GMT

  • केरल हाईकोर्ट ने मोटर व्हीकल एक्ट के तहत क्लेम याचिकाओं की परिसीमा अवधि निर्धारित करने के लिए महीना का अर्थ बताया

    केरल हाईकोर्ट (Kerala High Court) ने हाल ही में मोटर वाहन संशोधन अधिनियम, 2019 के तहत निर्धारित छह महीने की परिसीमा अवधि का पता लगाने के उद्देश्य से 'महीना (Month)' शब्द का अर्थ बताया।

    जस्टिस अमित रावल ने कहा,

    "केरल राज्य के लिए लागू जनरल क्लॉज एक्ट, 1987 की धारा 3 की उप-धारा (35) का अर्थ होगा ब्रिटिश कैलेंडर के अनुसार महीना" का अर्थ एक महीना होगा।“

    कोर्ट ने इस प्रकार निर्धारित किया कि अधिनियम, 2019 के तहत दावा याचिका दायर करने के लिए 6 महीने की अवधि की गणना दुर्घटना की तारीख से की जाएगी।

    आगे कहा,

    "परिसीमा के प्रयोजन के लिए गणना की जाने वाली अवधि के रूप में एक महीने की परिभाषा लेते हुए, छह महीने की अवधि के भीतर दावा याचिका दायर करने की गणना दुर्घटना की तारीख से की जानी है।"

    याचिकाकर्ता को 10 मई, 2022 को पहले प्रतिवादी ने एक कार से टक्कर मार दी थी।

    दावा याचिका 10 नवंबर, 2022 को मोटर दुर्घटना दावा न्यायाधिकरण के समक्ष दायर की गई थी। दिनांक 09.08.2019 के राजपत्र संख्या 51 की धारा 53 के साथ पठित सरकारी अधिसूचना दिनांक 25.02.2022 को देखते हुए एमएसीटी द्वारा इसे सीमाबद्ध मानते हुए वापस कर दिया गया, जिससे मोटर वाहन अधिनियम, 2019 के तहत संशोधन लागू हुआ। 01.04.2022 से प्रभावी हुआ और जिसे उक्त अधिनियम की धारा 166(3) में शामिल किया गया है।

    याचिकाकर्ता की ओर से एडवोकेट आर. श्रीहरि और एडवोकेट हमजा ए.वी. ने कहा कि एमएसीटी को याचिका वापस नहीं करनी चाहिए थी और उसे दूसरे पक्ष को बुलाना चाहिए था और यह तय करने के लिए मुद्दों को तैयार करना चाहिए था कि दावा याचिका परिसीमा से बाधित है या नहीं।

    यह तर्क दिया गया कि छह महीने की अवधि की गणना दुर्घटना की तारीख से होनी चाहिए न कि एक महीने में प्रत्येक दिन की गणना करके। वकीलों ने बीबी सलमा खातून बनाम बिहार राज्य (2001) के फैसले पर भी भरोसा किया।

    बीमा कंपनी के सरकारी वकील एडवोकेट पी.के. मनोज कुमार ने तर्क दिया कि दुर्घटना की तारीख से दाखिल करने की तारीख तक की तारीखों की सीधी गणना पर, याचिका 180 दिनों से आगे दायर की गई थी, और इसलिए एमएसीटी का आदेश उचित था।

    यह पाते हुए कि दावा याचिका को दुर्घटना की तारीख से गणना करने के लिए 6 महीने की अवधि के भीतर दायर किया जाना था, अदालत ने यह पता लगाया कि दुर्घटना की तारीख 10 नवंबर छह महीने की आखिरी तारीख है जिस दिन दावा याचिका दायर की गई थी।

    कोर्ट ने बीबी सलमा खातून बनाम बिहार राज्य (2001) के फैसले पर भी भरोसा किया, जिसमें कोर्ट ने स्थानीय जनरल क्लॉज एक्ट के प्रावधानों का अवलोकन किया और पाया कि विधायिका का इरादा महीनों का था न कि दिनों का।

    कोर्ट ने एमएसीटी के आदेश को रद्द करते हुए कहा,

    "मेरा विचार है कि एमएसीटी को उस तरीके से परिसीमा की गणना करके याचिका वापस नहीं करनी चाहिए थी जैसा कि किया गया है। सबसे अच्छा, कानून के प्रावधानों को ध्यान में रखते हुए इस मुद्दे को तैयार किया जा सकता था और पार्टियों को उस पर साक्ष्य का नेतृत्व करने या सुनवाई करने के लिए रखा जा सकता था।“

    जिला न्यायालय के अधीक्षक को दावा याचिका दर्ज करने, इसे सक्षम अदालत को आवंटित करने और कानून के अनुसार आगे बढ़ने का निर्देश दिया गया।

    केस टाइटल: विमला जोस बनाम अबूबकर व अन्य।

    साइटेशन: 2022 लाइव लॉ (केरल) 670

    फैसले को पढ़ने/डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें:





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