गांधी प्रतिमा को अपवित्र करने के आरोपी लॉ स्टूडेंट के खिलाफ मामला खारिज, कोर्ट ने कहा- निंदनीय लेकिन गैरकानूनी नहीं
Amir Ahmad
5 Aug 2025 3:29 PM IST

केरल हाईकोर्ट ने हाल ही में लॉ स्टूडेंट के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही रद्द की, जिसने अपने परिसर में महात्मा गांधी की प्रतिमा पर ठंडा गिलास और क्रिसमस पुष्पमाला रखकर कथित तौर पर उसे अपवित्र किया था।
जस्टिस वी.जी. अरुण ने भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 153 [दंगा भड़काने के इरादे से जानबूझकर उकसाना] और 426 [शरारत के लिए दंड] के तहत अपराध करने का आरोप लगाते हुए आपराधिक कार्यवाही को खारिज कर दिया, यह देखते हुए कि अपराध के तत्व नहीं बनाए गए थे।
इस कृत्य को अनैतिक बताते हुए जज ने कहा,
"निस्संदेह याचिकाकर्ता का आचरण निंदनीय है और उसे यह पता होना चाहिए था कि संविधान द्वारा प्रदत्त अधिकारों और स्वतंत्रता को उस पर डाले गए मौलिक कर्तव्यों के अनुसार ढाला जाना चाहिए। यहां यह ध्यान रखना आवश्यक है कि सभी अनैतिक कृत्य अवैध कृत्य नहीं होते। अवैध कृत्य वे व्यवहार या कार्य हैं, जो कानून द्वारा स्पष्ट रूप से निषिद्ध हैं, राज्य द्वारा लागू किए जा सकते हैं और जुर्माना या कारावास जैसे कानूनी दंड के अधीन हैं। दूसरी ओर, अनैतिक कृत्य वे व्यवहार हैं, जिन्हें सामाजिक मानदंडों व्यक्तिगत मूल्यों या नैतिक ढांचों के अनुसार गलत या अनैतिक माना जाता है, जो आवश्यक रूप से कानूनों का उल्लंघन नहीं करते। प्रासंगिक रूप से राष्ट्रीय सम्मान अपमान निवारण अधिनियम 1971 में भी हमारे राष्ट्रीय नेताओं की छवियों/प्रतिमाओं को अपवित्र करने के विरुद्ध कोई प्रावधान नहीं है। उपरोक्त चर्चा का निष्कर्ष यह है कि यद्यपि याचिकाकर्ता का आपत्तिजनक आचरण निस्संदेह अनैतिक है। इसे रोकने वाले कानून के अभाव में अवैध नहीं कहा जा सकता। ऐसे कृत्य के लिए दंड निर्धारित करना।"
न्यायालय ने कहा कि हमारे स्वतंत्रता सेनानियों का सम्मान करना संविधान के तहत एक मौलिक कर्तव्य है। भले ही इसका स्पष्ट रूप से उल्लेख न किया गया हो।
न्यायालय ने आगे कहा,
"भारत का संविधान मौलिक अधिकारों की गारंटी देते हुए अपने नागरिकों से उनके मौलिक कर्तव्यों का पालन करने की भी अपेक्षा करता है। अनुच्छेद 51A में उल्लिखित ऐसा ही एक मौलिक कर्तव्य संविधान का पालन करना और उसके आदर्शों व संस्थाओं, राष्ट्रीय ध्वज और राष्ट्रगान का सम्मान करना है। यद्यपि अनुच्छेद 51A में इसका विशेष रूप से उल्लेख नहीं किया गया। फिर भी प्रत्येक भारतीय नागरिक का यह कर्तव्य है कि वह उन स्वतंत्रता सेनानियों का सम्मान करे, जिन्होंने हमारे देश को विदेशी शासन से मुक्त कराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।"
न्यायालय ने टिप्पणी की कि यद्यपि याचिकाकर्ता के कृत्य को आम बोलचाल में 'शरारत' कहा जा सकता है, लेकिन 'शरारत' का अपराध नहीं बनता, क्योंकि IPC की धारा 425 के तहत प्रावधान पूरे होते हैं।
धारा 153 के तहत अपराध के संबंध में न्यायालय ने पाया कि चूँकि याचिकाकर्ता द्वारा कोई अवैध कार्य नहीं किया गया था, इसलिए यह मान्य नहीं होगा।
कोर्ट ने याचिका स्वीकार कर ली।
केस टाइटल: XXX बनाम केरल राज्य एवं अन्य।

