केरल हाईकोर्ट ने पुलिस को भ्रष्टाचार या मानवाधिकार उल्लंघन के मामलों में दोषी पाए गए अधिकारियों की डिटेल्स प्रकाशित करने के निर्देश दिए
LiveLaw News Network
30 March 2021 1:00 PM IST
केरल हाईकोर्ट ने केरल पुलिस को निर्देश दिए कि वह अपनी आधिकारिक वेबसाइट पर उन पुलिस अधिकारियों का विवरण प्रकाशित करे जिन्हें भ्रष्टाचार या मानवाधिकार उल्लंघन के मामलों में दोषी पाया गया है। इस निर्देश का अनुपालन 20 मार्च से 30 दिनों के भीतर किया जाना है।
कोर्ट ने फैसला में कहा कि पुलिस भ्रष्टाचार या मानवाधिकार के उल्लंघन के मामलों में दोषी पाए गए या सेवा से बर्खास्त किए गए अधिकारियों के नामों को छुपा नहीं सकती है।
न्यायमूर्ति राजा विजयराघवन की एकल न्यायाधीश पीठ ने ये बातें अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (उप-अधीक्षक, तिरुवनंतपुरम) के राज्य लोक सूचना अधिकारी द्वारा दायर याचिका का निपटारा करते हुए कहा।
सूचना अधिकारी ने राज्य सूचना आयोग (एसआईसी) के एक आदेश को चुनौती देते हुए हाईकोर्ट का रुख किया था। राज्य सूचना आयोग ने अपने आदेश में पुलिस को भ्रष्टाचार के आरोपों में दोषी पाए गए भ्रष्ट अधिकारियों और मानवाधिकारों के उल्लंघन के आरोप में सेवा से बर्खास्त किए गए अधिकारियों का विवरण प्रकाशित करने का निर्देश दिया था।
इसके अतिरिक्त एसआईसी ने सूचना अधिकारियों को पुलिस वेबसाइट पर उन अधिकारियों के नाम को अपलोड करने का निर्देश भी दिया था, जिन अधिकारियों को जांच के बाद भ्रष्टाचार या मानवाधिकार के उल्लंघन के आरोप में दोषी पाया गया है।
एसआईसी ने उस प्रार्थना पत्र की अनुमति नहीं दी, जिसमें पुलिस अधिकारियों की जानकारी मांगी गई थी। कोर्ट में पुलिस सूचना अधिकारियों के लिए सरकारी याचिकाकर्ता मेबल सी क्यूरन ने तर्क दिया कि सूचना का अधिकार अधिनियम केवल संगठनात्मक मामलों से संबंधित सूचना के प्रकाशन से संबंधित है। अन्य कोई भी विवरण का प्रकाशन पुलिस को हतोत्साहित कर देगा।
सरकारी वकील ने आगे तर्क दिया कि एक ऐसा व्यक्ति जिसके खिलाफ अपराध का पता नहीं चला है तो वह व्यक्ति न्यायालय के कानून के तहत निर्दोष माना जाता है और इस मामले में राज्य आयोग का द्वारा नामों का खुलासा करने का आदेश न्यायसंगत नहीं है।
आगे तर्क दिया गया कि उन पुलिस अधिकारियों का विवरण जिनके खिलाफ अंतिम रिपोर्ट रखी गई है, उन विवरण का खुलासा करने से संरक्षित किया जाएगा क्योंकि यह व्यक्तिगत जानकारी से संबंधित है और इस व्यक्तिगत विवरण का किसी भी सार्वजनिक गतिविधि या हित से कोई संबंध नहीं है।(सूचना का अधिकार अधिनियम की दारा 8 (1) (j))
एसआईसी की ओर से पेश हुए वकील एम अजय और सूचना के लिए मूल आवेदक पत्रकार राधाकृष्णन आर ने तर्क दिया कि नागरिकों के अधिकार तहत कानून प्रवर्तन अधिकारियों के बारे में जानने के लिए सूचना मांगी गई है, जिससे यह पता चल सके कि पुलिस विभाग कैसे काम करता है और इसके साथ ही यह भी जानकारी मिल सके कि पुलिस विभाग सरकारी कामकाज के साथ-साथ लोकतंत्र के लिए जरूरी कौन-से सुधारात्मक उपाय कर रहा है।
कोर्ट ने प्रस्तुतियों पर विचार करने के बाद एसआईसी के फैसले को बरकरार रखा और एसआईसी ने फैसला सुनाया था कि भ्रष्टाचार या मानवाधिकारों के उल्लंघन जैसे अवैध कारावास, यौन शोषण, बलात्कार और अपमानजनक भाषा का उपयोग करने के मामले में दोषी पाए गए और जांच के बाद सेवाओं से बर्खास्त किए गए दोषी अधिकारियों के नामों को आवश्यक रूप से वेबसाइट पर प्रकाशित की जाएगी।
खंडपीठ ने कहा कि,
"याचिकाकर्ताओं को ऐसे अधिकारियों के नामों को छुपाना न्यायसंगत नहीं होगा और इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए नामों को प्रकाशित करने के लिए बाध्य होगा कि अधिनियम धारा 4 उन्हें इस तरह की जानकारी प्रकाशित करने के लिए बाध्य नहीं करता है (अधिनियम की धारा 4 के तहत सार्वजनिक सूचना को प्राधिकरण द्वारा प्रकाशित करना अनिवार्य है।)"
कोर्ट ने स्पष्ट किया कि जिन अधिकारियों के खिलाफ अपराध के आरोपों की जांच चल रही है और जब तक कानून की अदालत द्वारा निर्णायक निष्कर्ष नहीं पाया जाता तब तक इन अधिकारियों का विवरण प्रकाशित नहीं जाएगा।
खंडपीठ ने जोर दिया कि सूचना प्राधिकरण को यह ध्यान रखना है कि सूचनाओं से निपटते वक्त अधिनियम की धारा 4 (1) (b) और (c) के अंतर्गत नहीं आने वाले सूचनाओं को अधिकारी प्रतिबंधात्मक तरीके से इसमें छूट नहीं दे सकता है। पीठ ने आगे कहा कि इसके बजाय इस खंड को व्यावहारिक तरीके से देखा जाना चाहिए ताकि जनहित को संरक्षित किया जा सके।
कोर्ट ने कहा कि यह सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक है कि अधिनियम के उद्देश्य के लिए सूचना में पारदर्शिता के साथ-साथ जनहित को सुरक्षित रखने के बीच एक अच्छा संतुलन है।
कोर्ट ने फैसले में कहा कि,
"अधिनियम की धारा 4 को जो सार्वजनिक प्राधिकरणों के दायित्वों से संबंधित है और छूट प्राप्त सूचनाओं की श्रेणी का विवरण देने वाली धारा 8 को साथ पड़ने पर पता चलता है कि प्राधिकरण को इस चीज का ध्यान रखना चाहिए कि अधिनियम के प्रावधानों की व्याख्या इस तरह से नहीं की जानी चाहिए कि सूचना के अधिकार पर रोक लग जाए। दूसरे शब्दों में अधिनियम के प्रावधानों को इस तरह से पढ़ा जाना चाहिए जो जनहित को आगे बढ़ाएंगे क्योंकि यह लोकतांत्रिक आदर्शों की पूर्ति और संरक्षण के लिए आवश्यक है।"