कर्नाटक के कानून मंत्री जेसी मधुस्वामी पर मुकदमा चलाने के लिए पुलिस जांच के लिए केवल समर्थन पर्याप्त नहीं: हाईकोर्ट

Shahadat

12 Oct 2022 12:01 PM GMT

  • हाईकोर्ट ऑफ कर्नाटक

    कर्नाटक हाईकोर्ट

    कर्नाटक हाईकोर्ट ने माना कि भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 171-एफ और 171-सी के तहत गैर-संज्ञेय अपराधों के लिए कार्यवाही शुरू करने के लिए मजिस्ट्रेट को विवेक के उचित आवेदन के बाद अनुमति देनी चाहिए। पुलिस द्वारा किए गए अनुरोध पर केवल समर्थन पर्याप्त नहीं है।

    जस्टिस एस सुनील दत्त यादव की एकल न्यायाधीश पीठ ने राज्य के कानून मंत्री जेसी मधुस्वामी के खिलाफ शुरू की गई कार्यवाही को रद्द कर दिया और मामले को पुलिस अधिकारियों के सामने पेश होने वाले शिकायतकर्ता के स्तर पर बहाल कर दिया।

    आरोप लगाया गया कि 02.12.2019 को प्रिया दर्शिनी होटल के सामने बैठक हुई, जिसमें मधुस्वामी द्वारा कुछ बयान दिए गए, जो कानून का उल्लंघन करते हुए जाति और धर्म के आधार पर मतदाताओं को प्रभावित करने के समान हैं।

    पुलिस अधिकारियों को सूचना दिए जाने के बाद पुलिस अधिकारियों ने मजिस्ट्रेट से जांच की अनुमति मांगी। इस तरह के अनुरोध पर मजिस्ट्रेट ने अनुमति दे दी।

    कानून मंत्री ने तर्क दिया कि आगे की जांच का निर्देश देने वाली मजिस्ट्रेट अदालत द्वारा जारी समर्थन वाग्गेप्पा गुरुलिंग जंगलीगी (जंगलगी) बनाम कर्नाटक राज्य- आईएलआर 2020 केएआर 630 के मामले में किए गए दिशानिर्देशों के आलोक में पालन की जाने वाली उचित प्रक्रिया नहीं है।

    इसके अलावा, गैर-संज्ञेय अपराध की जांच के लिए अनुमति देने का कार्य विवेक के उचित उपयोग के साथ होना चाहिए और यह उपरोक्त संदर्भित निर्णय के पैराग्राफ संख्या 20 में दिशानिर्देश संख्या IV से स्पष्ट हो जाएगा।

    पीठ ने कहा कि पुलिस अधिकारियों द्वारा अदालत के समक्ष किए गए अनुरोध में मांग पर ही समर्थन शामिल है। इस तरह का समर्थन वाग्गेप्पा (सुप्रा) के मामले में (ii) में पैराग्राफ संख्या 20 में पारित निर्देश के संदर्भ में न्यायिक आदेश और उचित प्रक्रिया का पालन नहीं करता है।

    फैसले में दिशानिर्देशों का जिक्र करते हुए पीठ ने कहा,

    "(ii) में दिशानिर्देशों के संदर्भ में न्यायालय को अलग आदेश पत्रक रखने का निर्देश दिया जाता है और आदेश पत्र में मांग के संबंध में आदेश दिया जाना चाहिए, जिसे अदालत के समक्ष कार्यवाही का हिस्सा बनना चाहिए। यह देखते हुए कि उक्त प्रक्रिया का पालन नहीं किया जाता है, मजिस्ट्रेट के समक्ष कार्यवाही रद्द की जा सकती है।"

    इसमें कहा गया,

    "यह शिकायतकर्ता के लिए आगे की कार्यवाही को आगे बढ़ाने के लिए है और यदि कार्यवाही को आगे बढ़ाया जाता है तो यह बताने की जरूरत नहीं कि गैर-संज्ञेय अपराध की जांच के लिए अनुमति लेते समय सीआरपीसी की धारा 155 के तहत जनादेश के अनुसार, शिकायत मजिस्ट्रेट के पास भेजी जानी चाहिए। यदि अनुमति दी जानी है तो यह मजिस्ट्रेट के लिए अनुमति देने या न देने के लिए खुला है और जैसा कि ऊपर निकाले गए दिशानिर्देश (iv) में निर्दिष्ट है, यह मजिस्ट्रेट के लिए है कि वह अपने विवेक का उपोयग करे और देखें क्या यह जांच का मामला है।"

    केस टाइटल: जे सी मधुस्वामी बनाम कर्नाटक राज्य

    केस नंबर: आपराधिक याचिका संख्या 6535/2022

    साइटेशन: लाइव लॉ (कर) 403/2022

    आदेश की तिथि: 27 सितंबर, 2022

    उपस्थिति: एच.एस.चंद्रमौली, कीर्तन नागराज के लिए सीनियर वकील, एडवोकेट रजत, याचिकाकर्ता के लिए; एडवोकेट किरण जावली, एसपीपी-I ए/डब्ल्यू रोहित बीजे, एचसीजीपी आर1 के लिए; आर2 के लिए सीनियर वकील और एमिक्स क्यूरी संदेश जे. चौटा।

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