रिपब्‍ल‌िक टीवी सीओओ प्र‌िया मुखर्जी को टीआरपी घोटाले में 20 दिनों की ट्रांजिट जमानत, कर्नाटक हाईकोर्ट ने दिया आदेश

LiveLaw News Network

25 Nov 2020 1:33 PM GMT

  • रिपब्‍ल‌िक टीवी सीओओ प्र‌िया मुखर्जी को टीआरपी घोटाले में 20 दिनों की ट्रांजिट जमानत, कर्नाटक हाईकोर्ट ने दिया आदेश

    कर्नाटक उच्च न्यायालय ने बुधवार को मुंबई पुलिस द्वारा दर्ज की गई एफआईआर, जिसमें टीआरपी स्कैम का आरोप लगाया गया है, में आरजी आउटलायर मीडिया प्राइवेट लिमिटेड (रिपब्लिक टीवी और आर भारत चैनल का मालिक कंपनी ) की मुख्य परिचालन अधिकारी प्रिया मुखर्जी को 20 दिनों की ट्रांजिट जमानत दी है।

    हाईकोर्ट ने कहा कि 20 दिनों बाद, प्र‌िया मुखर्जी को राहत के लिए उचित मंच पर अपील करनी होगी। इस बीच अगर उसे गिरफ्तार किया जाता है, तो उसे 2 लाख रुपए के बांड और दो जमानतदारों की जमानत पर रिहा किया जाना चाहिए।

    जस्टिस एचपी संधेश की पीठ ने कहा, "जब किसी व्यक्ति की न‌िजी स्वतंत्रता खतरे में है तो याचिकाकर्ता राहत मांग सकता है। याचिका ने सीमित अवधि के लिए ट्रांजिट जमानत देने के लिए आधार तैयार किया है।"

    कोर्ट ने इस आदेश में यह भी कहा कि पुलिस अर्नेश कुमार बनाम बिहार राज्य मामले में सुप्रीम कोर्ट के निर्णय का दुरुपयोग कर रही है।

    कोर्ट ने कहा, "पुलिस अपना दिमाग नहीं लगा रही है कि संज्ञेय अपराध किया गया है या नहीं। पुलिस को कोर्ट को संतुष्ट करना चाहिए कि वे किसी व्यक्ति को क्यों गिरफ्तार कर रहे हैं"।

    कोर्ट ने कहा कि ऐसे मामलों में उसे नागरिक के बचाव में आना होगा।

    मुखर्जी ने मुंबई पुलिस द्वारा दर्ज किए गए फर्जी टेलीविजन रेटिंग पॉइंट्स (TRP) स्कैम मामले में ट्रांजिट जमानत की मांग की थी।

    मुंबई पुलिस की दलीलें खारिज

    हाईकोर्ट ने मुंबई पुलिस की उन दलीलों को खारिज कर दिया, जिनमें कहा गया था कि याचिकाकर्ता 'फोरम शॉपिंग' में लिप्त है और याचिका सुनवाई योग्य नहीं है।

    पीठ ने कहा, "जब किसी व्यक्ति की न‌िजी स्वतंत्रता खतरे में हो तो याचिकाकर्ता राहत मांग सकता है। याचिका ने सीमित अवधि के लिए ट्रांजिट जमानत देने के लिए एक आधार बनाया है।"

    अदालत ने याचिकाकर्ता की मुंबई पुलिस की इस दलील को भी खारिज कर दिया कि याचिकाकर्ता का सुराग नहीं मिल पा रहा है।

    कोर्ट ने कहा, "जब याचिकाकर्ता ने थोड़ा समय मांगा है तो मुंबई पुलिस को बेंगलुरू क्यों भाग कर आना पड़ा, इसका कोई जवाब नहीं है। 17/18 नवंबर को बयान दर्ज करने के बाद उन्हें बंगलौर क्यों भागना पड़ा। मामले के फैक्चुअल मैट्रिक्स पर ध्यान देने पर, याचिका के बयान को दर्ज करने के एक दिन के भीतर, नोटिस जारी किया गया था और बंगलौर में घर का दौरा किया गया था। मेरी राय है कि याचिकाकर्ता द्वारा गिरफ्तारी की उचित आशंकाएं हैं। मुंबई पुलिस ने भी कोई स्पष्ट‌िकरण नहीं दिया है, केवल 17/18 नवंबर को रिकॉर्ड किया गया बयान पेश किया है।"

    कोर्ट ने आगे कहा, "बनर्जीहाटा पुलिस के सामने पेश होने के लिए उसे किस कारण से बुलाया गया है, यह नोटिस में विशिष्ट रूप से नहीं बताया गया है। प्रतिवादी तीन की ओर से कोई जवाब नहीं पेश किया गया है। जब याचिकाकर्ता द्वारा इस तरह की आशंका जताई जा रही है, तो प्र‌तिवादी तीन के बयान को स्वीकार नहीं किया जा सकता है।"

    पीठ ने कल (24 नवंबर) आदेश को सुरक्षित रखा था।

    अदालत में तर्क

    मुंबई पुलिस की ओर से पेश सीनियर एडवोकेट देवदत्त कामत ने याचिका के सुनवाई योग्य होने पर प्रारंभिक आपत्ति जताई थी। उन्होंने कहा, "यह कुछ भी नहीं है लेकिन फोरम शॉपिंग है और याचिका सुनवाई योग्य नहीं है।"

    बॉम्बे हाईकोर्ट ने एफआईआर को रद्द करने के लिए दायर याचिका पर भरोसा करते हुए, कामत ने तर्क दिया कि सीआरपीसी की धारा 438 के तहत कर्नाटक उच्च न्यायालय के समक्ष दायर की गई यह याचिका, बॉम्बे हाईकोर्ट के समक्ष दायर याचिका की नकल है, जहां कंपनी के कर्मचारियों और अन्य लोगों के खिलाफ राहत मांगी गई है। आवेदक द्वारा इस अदालत के समक्ष उसे प्रस्तुत नहीं किया गया है ।

    कामत ने कहा, "यह एक ऐसा मामला है, जहां बॉम्बे हाईकोर्ट से कोई राहत नहीं मिलने के बाद यह कर्नाटक हाईकोर्ट में दूसरा प्रयास किया जा रहा है।"

    उन्होंने यह भी कहा कि पुलिस को 19 नवंबर को यह नहीं बताया गया था कि आवेदक 24 नवंबर को जांच एजेंसी के समक्ष उपलब्ध होगी, जैसा कि याचिका द्वारा दावा किया जा रहा है। उसने उसकी ओर से जांच एजेंसी को दी गई सूचनाओं पर भरोसा किया, जिसमें तारीख का कोई उल्लेख नहीं था। उन्होंने कहा कि पुलिस की टीम 20 नवंबर को मुंबई से इस आशंका के कारण बंगलौर से रवाना हुई थी कि आरोपी भाग गई है।

    कामत ने यह भी कहा कि गिरफ्तार आरोपी घनश्याम सिंह और वर्तमान आवेदक के बीच की महत्वपूर्ण कड़ी फोन चैट है। उससे पूछताछ की तत्काल आवश्यकता है क्योंकि उसे फोन की चैट को हटाने की आदत है जैसा कि उसने बयान में दर्ज किया है। उन्होंने कहा, "इसलिए जांच एजेंसी के सामने आने में देरी हुई, क्योंकि सबूतों से छेड़छाड़ की जा रही है।"

    प्रिया मुखर्जी के वकील ने मुंबई पुलिस के बयानों का खंडन करते हुए कहा, "यह वह नहीं थी, जिसने बॉम्बे हाईकोर्ट से संपर्क किया था, यह अर्नब गोस्वामी था, जिसने अपने लिए अदालत का दरवाजा खटखटाया था।"

    उन्होंने कहा कि जब आवेदक को नोटिस जारी किया गया तो वह जांच अधिकारी के समक्ष उपस्थित हुई जांच में सहयोग किया और भविष्य में भी ऐसा ‌ही किया जाएगा।

    उसने बॉम्बे हाईकोर्ट से संपर्क करने के लिए 20 दिनों का समय देने की प्रार्थना की थी, और तब तक के लिए सुरक्षा की मांगी थी।

    यह भी कहा गया कि "एक महिला के पीछे पड़ना प्रतिवादी तीन की ओर से यह काफी अत्याचारपूर्ण है। वे (प्रतिवादी तीन) किसी और के लिए प्वाइंट साबित करना चाहते हैं।"

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