प्राकृतिक न्याय का घोर उल्लंघन: कर्नाटक हाईकोर्ट ने भोगा नंदीश्वर मंदिर के अर्चक को जांच पूरी होने तक ड्यूटी करने की अनुमति दी

Shahadat

22 Nov 2022 8:24 AM GMT

  • प्राकृतिक न्याय का घोर उल्लंघन: कर्नाटक हाईकोर्ट ने भोगा नंदीश्वर मंदिर के अर्चक को जांच पूरी होने तक ड्यूटी करने की अनुमति दी

    कर्नाटक हाईकोर्ट ने बंदोबस्ती आयुक्त द्वारा कथित कदाचार के आरोप में जांच किए बिना चिक्कबल्लापुर तालुक में भोग नंदीश्वर मंदिर के अर्चक को बर्खास्त करने का आदेश रद्द कर दिया।

    जस्टिस एम नागप्रसन्ना की एकल न्यायाधीश पीठ ने प्रतिवादी-प्राधिकरण को याचिकाकर्ता को सुनवाई का अवसर प्रदान करने और दो सप्ताह के भीतर जांच पूरी करने का निर्देश दिया, जैसा कि हाईकोर्ट ने मुकदमे के पहले दौर में (याचिकाकर्ता के निलंबन के खिलाफ) निर्देश दिया था। तब तक कोर्ट ने याचिकाकर्ता को मंदिर में अर्चक के रूप में प्रदर्शन करने की अनुमति दी।

    याचिकाकर्ता को 2015 में अर्चक के रूप में नियुक्त किया गया। 2020 में उसके खिलाफ अज्ञात शिकायतें सामने आईं, जिसमें उसके कर्तव्यों के प्रदर्शन में कुछ अनियमितताओं का आरोप लगाया गया। कार्यवाही गुमनाम पत्र और याचिकाकर्ता द्वारा शराब की बोतलें पकड़े हुए तस्वीर के आधार पर शुरू की गई। याचिकाकर्ता को कारण बताओ नोटिस जारी किया गया, जिसका उसने जवाब दिया और बाद में उसे निलंबित कर दिया गया।

    चूंकि एक वर्ष से अधिक समय तक कोई जांच नहीं की गई, तब याचिकाकर्ता ने निलंबन का आदेश रद्द करने की मांग करते हुए हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया। इन कार्यवाहियों में यह है कि हाईकोर्ट ने प्रतिवादी को दो सप्ताह की अवधि के भीतर प्रश्नगत जांच पूरी करने का निर्देश दिया, जिसमें विफल होने पर याचिकाकर्ता के निलंबन को रद्द कर दिया गया माना जाएगा और उसे कर्तव्यों का निर्वहन करने की अनुमति दी जाएगी।

    हाईकोर्ट ने कर्नाटक हिंदू धार्मिक संस्थान और धर्मार्थ बंदोबस्ती अधिनियम 1997 अधिनियम की धारा 10 (ए) पर भरोसा किया, जो अर्चकों की अयोग्यता से संबंधित है।

    जांच - परिणाम:

    वर्तमान कार्यवाही में हाईकोर्ट ने कहा कि उसके आदेश के अनुसार कोई जांच नहीं की गई।

    कोर्ट ने कहा,

    "जिसका परिणाम इस न्यायालय द्वारा निर्देशित किए बिना अर्चक के कर्तव्यों से याचिकाकर्ता को बर्खास्त करने का आदेश है। इसलिए यह आदेश न केवल इस न्यायालय द्वारा 22.8.2022 को पारित आदेश के विपरीत है, बल्कि निंदनीय है और प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन है। साथ ही खुद का बचाव करने के अवसर से वंचित करना है।"

    इसमें कहा गया,

    "इन कारणों से बर्खास्तगी का आदेश अस्थिर है और इसे समाप्त करने की आवश्यकता है। आदेश के विलोपन का परिणाम याचिकाकर्ता को जांच के परिणाम के अधीन अपने कर्तव्यों का पालन करने की अनुमति देने की दिशा में होगा। मामले के अजीबोगरीब तथ्यों में यह निर्देश जारी किया गया। इस कारण से कि प्रतिवादी बर्खास्तगी का आदेश पारित करके पहले के आदेश को पार करना चाहते हैं।"

    केस टाइटल: अश्वीजा टीसी बनाम एंडोमेंट कमिश्नर व अन्य

    केस नंबर: रिट याचिका नंबर 20999/2022

    साइटेशन: लाइवलॉ (कर) 471/2022

    आदेश की तिथि: 2, नवंबर, 2022

    प्रतिनिधित्व: याचिकाकर्ता के वकील जयकुमार.एस.पाटिल और राजाराम टी.; प्रतिवादी के लिए बी.वी.कृष्णा और आगा।

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