कर्नाटक हाईकोर्ट ने 'स्टेटलेस' नाबालिग को बालिग होने तक भारतीय पासपोर्ट जारी करने के केंद्र को निर्देश दिया, कहा-'ऐसे बच्चे के दुख' को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता

Avanish Pathak

24 March 2023 1:31 PM GMT

  • कर्नाटक हाईकोर्ट ने स्टेटलेस नाबालिग को बालिग होने तक भारतीय पासपोर्ट जारी करने के केंद्र को निर्देश दिया, कहा-ऐसे बच्चे के दुख को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता

    कर्नाटक हाईकोर्ट ने 15 वर्षीय किशोर को भारतीय पासपोर्ट जारी करने का निर्देश दिया है।

    पासपोर्ट अधिकारी, बेंगलुरु को दिए निर्देश में हाईकोर्ट ने कहा है कि जब तक वह 18 वर्ष का नहीं हो जाता, तब तक यात्रा दस्तावेज को प्रयोग किया जा सकेगा, अन्य‌था किशोर स्टेटलेस हो जाएगा।

    जस्टिस एम नागप्रसन्ना ने कहा कि केवल इसलिए कि नाबालिग के पिता का पता नहीं लग पा रहा है और मां नागरिकता छोड़ने के परिणामों को समझ पाने में "लापरवाही" बरत रही है, बच्चे के भाग्य को अधर में नहीं छोड़ा जा सकता है।

    कोर्ट ने कहा,

    "यह एक उपयुक्त मामला है, जहां हाईकोर्ट को संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत दूसरी याचिकाकर्ता के बेटे के साथ हुई गड़बड़ी के उपचार के लिए अपने क्षेत्राधिकार का प्रयोग करना पड़ता है और एक बच्चा कभी भी गलत नहीं करता है....।"

    संयुक्त सचिव, विदेश मंत्रालय और मुख्य पासपोर्ट अधिकारी ने 12 जनवरी 2022 को एक आदेश के जर‌िए नाबालिग को भारतीय पासपोर्ट देने से इनकार कर दिया था, जिसके बाद नाबालिग और उसकी मां ने अदालत का दरवाजा खटखटाया था।

    मां का मामला यह था कि उन्होंने चार नवंबर, 2005 को सेल्वाकुमार बालासुब्रमण्यम से विवाह किया था। विवाह से उन्हें पांच मार्च 2008 को एक बेटा पैदा हुआ। बेटा भारत में ही हुआ। पति ने वर्ष 2011 में अपने व्यवसाय के कारण कनाडा में सेटल होने का फैसला किया। उसकी पत्नी और बेटा भी उसके साथ कनाडा चले गए। 2012 में पिता बेटे को लेकर बेंगलुरु लौट आया और बेटे की कस्टडी उसके नाना-नानी को सौंप दी। तब से बच्ची के पिता का पता नहीं चल पाया।

    हालांकि, मां ने कनाडा में अपनी पढ़ाई जारी रखी, जबकि बेटा भारत में दादा-दादी के साथ रहा। बाद में 2015 में मां को कनाडा की नागरिकता और पासपोर्ट दे दिया गया, जिसके बाद उसने कनाडा में भारतीय दूतावास स्थित महावाणिज्य दूतावास के समक्ष आवेदन दायर किया और भारत की अपनी नागरिकता का त्याग कर दिया और ओवरसीज सी‌टिजन ऑफ इंडिया कार्ड की मांग की।

    नागर‌िकता त्याग के लिए दायर आवेदन को स्वीकार करते हुए विदेश मंत्रालय ने मां को नागरिकता समर्पण प्रमाण पत्र जारी किया, जिसमें दिखाया गया कि उसने नागरिकता अधिनियम, 1955 के तहत भारतीय नागरिकता त्याग दी और पासपोर्ट रद्द कर दिया।

    बच्चे के दादा-दादी ने बेटे को नाबालिग पासपोर्ट जारी करने के लिए आवेदन किया था। उसे 24 जुलाई 2015 को पांच साल की अवधि के लिए भारतीय पासपोर्ट जारी किया गया, 23-07-2020 को वह समाप्त होने वाला था। इस आधार पर कि पति कई वर्षों से लापता था, पत्नी ने शादी को रद्द करने/तलाक की मांग की।

    कोर्ट ने चार सितंबर 2018 को शादी को रद्द करने के लिए एक पक्षीय आदेश पारित किया और चूंकि पति की प्रति‌नधित्व नहीं होने के कारण मामले में कोई विरोध नहीं ‌था, इसलिए बच्चे की स्थायी कस्टडी मां को सौंप दी।

    इसी बीच 24 जुलाई 2015 को जारी बेटे का पासपोर्ट 23 जुलाई 2020 को समाप्त होने वाला था, तब वह तब 12 साल का था। समाप्ति की तारीख के कारण मां ने बेटे को पासपोर्ट फिर से जारी करने के लिए एक आवेदन दिया।

    अधिकारियों ने तब महसूस किया कि बच्‍चे की कस्टडी मां को दी गई है, लेकिन उसने भारत की नागरिकता त्याग दी है। इस प्रकार नाबालिग बेटा भी भारत का नागरिक नहीं रह गया। उस आधार पर बेटे को भारतीय पासपोर्ट फिर से जारी करने से मना कर दिया गया। जिसके बाद मां ने अपीलीय प्राधिकारी के समक्ष अपील दायर की।

    अपीलीय प्राधिकारी ने इस तथ्य को दर्ज किया कि पासपोर्ट नियमों में नाबालिग को पासपोर्ट जारी करने के लिए माता-पिता की आवश्यकता होती है, जिसकी कस्टडी में नाबालिग बच्चा भारत का नागरिक होना चाहिए और क्षेत्रीय पासपोर्ट अधिकारी के आदेश की पुष्टि की, जिसने बेटे को फिर से पासपोर्ट को जारी करने से इनकार कर दिया था।

    हालांकि, मानवीय आधार पर बच्चे को अपनी मां से जुड़ने के लिए 21 मार्च 2022 से प्रभावी एक अस्थायी पासपोर्ट प्रदान किया गया, जिसे 20 मार्च 2023 को समाप्त हो जाना था।

    मां ने अदालत के समक्ष तर्क दिया कि उसने अनजाने में या कानून के परिणामों से अनभिज्ञ होने के कारण अपनी भारतीय नागरिकता का त्याग करने की मांग की थी। उसके वकील ने कहा कि मां के लिए अधिनियम की धारा 7ए के तहत भारत की ओवरसीज सीटिजनशिप की आवश्यकता थी और त्याग की नहीं।

    उत्तरदाताओं की ओर से पेश एडवोकेट कुमार एम एन ने तर्क दिया कि अधिकारियों की ओर से दिए गए आदेश में नियमों के अनुसार कोई दोष नहीं है और मानवीय आधार पर बेटे को पासपोर्ट दिया गया और अगर अनुरोध स्वीकार कर लिया जाता है तो यह समाप्त हो जाएगा, और इसका व्यापक और गंभीर परिणाम होगा।

    निष्कर्ष

    पीठ ने कहा कि नागरिकता अधिनियम की धारा 8 के तहत, पूर्ण आयु और क्षमता का नागरिक निर्धारित तरीके से अपनी भारतीय नागरिकता छोड़ने की घोषणा कर सकता है और घोषणा को निर्धारित प्राधिकरण द्वारा पंजीकृत किया जाएगा और इस तरह के पंजीकरण के बाद घोषणाकर्ता भारत का नागरिक नहीं रहेगा।

    "धारा 8 की उप-धारा (2) दिखाती है कि जब कोई व्यक्ति उप-धारा (1) के तहत भारत का नागरिक नहीं रहता है, जिसका अर्थ होगा कि जो कभी भी नागरिकता त्याग देगा, उस घोषणाकर्ता, जिसने भारत की नागरिकता त्याग दी है, का नाबालिग बच्चा इसके बाद यानी इस तरह के त्याग की तारीख से भारत का नागरिक नहीं रहेगा।

    पीठ ने आगे कहा कि अधिनियम का तात्पर्य यह है कि यदि माता या पिता भारत की नागरिकता का त्याग करते हैं, तो नाबालिग भारत का नागरिक नहीं रहेगा। उप-धारा (2) का प्रावधान आगे अनुमति देता है कि जिस बच्चे ने भारत की नागरिकता खो दी है, अगर वह पूर्ण आयु यानी 18 वर्ष की आयु प्राप्त कर लेता है, तो उसके बाद एक वर्ष के भीतर यह घोषणा कर सकता है कि वह भारतीय नागरिकता फिर से शुरू करना चाहता है।

    कोर्ट ने कहा,

    "नाबालिग बच्चे की कस्टडी मां के पास है और मां अब कनाडा की नागरिक है। कानून के अनुसार, बच्चे ने भी अपनी भारतीय नागरिकता खो दी है और उसे 18 वर्ष की आयु प्राप्त करने के बाद ही वापस पाया जा सकता है।"

    अदालत ने कहा कि बेटे को किसी अन्य देश का नागरिक बनने या फिर भारतीय नागरिकता हासिल करने के लिए अपने विवेक का इस्तेमाल करने के लिए तीन साल बीतने देना चाहिए, हालांकि तब तक के लिए वह राज्यविहीन हो जाएगा।

    कोर्ट ने कहा,

    "एक स्टेटलेस बच्चा एक ऐसा व्यक्ति है जो किसी भी राज्य की नागरिकता नहीं रखता है। स्टेटलेस बच्चे दुनिया के सबसे कमजोर व्यक्तियों में से हैं, क्योंकि स्टेटलेस होने के कई परिणाम होते हैं। उनके पास कोई अधिकार नहीं होगा, कानूनी सुरक्षा, शिक्षा के लाभ, स्वास्थ्य सेवा, आंदोलन की स्वतंत्रता अन्य बातों के साथ-साथ स्टेटलेसनेस का एक बच्चे पर आजीवन प्रभाव पड़ता है...।”

    तदनुसार कोर्ट ने अधिकारियों को नाबालिग को पासपोर्ट जारी/विस्तारित/पुनः जारी करने का निर्देश दिया, जो उसके 18 वर्ष की आयु प्राप्त करने तक उपयोगी रहेगा। अदालत ने फैसले में कहा कि यह अधिकारियों पर है कि ऐसी अभूतपूर्व स्थितियों को निस्तारित करने के लिए लिए जब भी हों, वे आवश्यक समाधान निकालें।

    केस टाइटल: मास्टर आर्य सेल्वाकुमार प्रिया और अन्य और बनाम संयुक्त सचिव (पीएसपी) और मुख्य पासपोर्ट अधिकारी और अन्य

    केस नंबर: रिट पीटिशन नंबर 21642/2022

    साइटेशन: 2023 लाइवलॉ (कर) 119

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