लॉ इंटर्न रेप केस: कर्नाटक हाईकोर्ट ने आरोपी पब्लिक प्रॉसिक्यूटर को अग्रिम जमानत देने से इनकार किया

LiveLaw News Network

21 Dec 2021 10:15 AM GMT

  • हाईकोर्ट ऑफ कर्नाटक

    कर्नाटक हाईकोर्ट

    कर्नाटक हाईकोर्ट ने अपने कार्यालय में काम करने वाली लॉ इंटर्न का यौन उत्पीड़न करने और बलात्कार के प्रयास के आरोपी विशेष लोक अभियोजक के एस एन राजेश को अग्रिम जमानत देने से इनकार कर दिया है।

    न्यायमूर्ति के नटराजन की एकल पीठ ने याचिका को खारिज करते हुए कहा,

    "याचिकाकर्ता पेशे से वकील है और कहा जाता है कि उसका पुलिस, विश्वविद्यालय और न्यायाधीशों पर प्रभाव है, ऐसे में यह अदालत याचिकाकर्ता को अग्रिम जमानत देने का इरादा नहीं रखती है।"

    मैंगलोर महिला पुलिस थाने में अपने खिलाफ दर्ज दो अपराधों में अग्रिम जमानत की मांग करते हुए आरोपी ने अदालत का दरवाजा खटखटाया था। एक मामले में उस पर भारतीय दंड संहिता की धारा 376, 376(2)(f),376(2)(k), 376(c), 511, 354(A), 354(B), 354(D), 506, 384, 388, 389 और 34 के तहत आरोप लगाया गया है।

    याचिकाकर्ता का तर्क

    याचिकाकर्ता की ओर से पेश अधिवक्ता दिलराज जूडे रोहित सेकीरा ने कहा,

    "अभिलेखों के अवलोकन पर विशेष रूप से शिकायत के बयान में आईपीसी की धारा 376 और आईपीसी की धारा 354 और उप-धारा (ए) (बी) (सी) और (डी) के प्रावधान भी शामिल नहीं हैं। आईपीसी की धारा 376 के तहत याचिकाकर्ता के खिलाफ कथित आरोप बलात्कार करने का प्रयास है जो मौत या कारावास से दंडनीय नहीं है और साथ ही आईपीसी की धारा 354 केवल तीन साल के लिए दंडनीय है, यहां तक कि शिकायत दर्ज करने में देरी हुई है।"

    इसके अलावा, यह तर्क दिया गया कि सीसीटीवी फुटेज को पहले ही पीड़िता के अनुसार नष्ट कर दिया गया, लेकिन इसे पुनः प्राप्त किया जा सकता है। जांच के दौरान आवाज का नमूना भी लिया जा सकता है। जब वह पुलिस के सामने पेश हुआ तो उसका मेडिकल टेस्ट भी किया गया था। ऐसी स्थिति में याचिकाकर्ता को हिरासत में लेकर पूछताछ की आवश्यकता नहीं है।"

    अभियोजन पक्ष ने याचिका का विरोध किया

    अभियोजन पक्ष की ओर से पेश अधिवक्ता एचएस शंकर ने तर्क दिया कि याचिकाकर्ता को जिरह, हिरासत में पूछताछ, वीडियो क्लिपिंग और सीसीटीवी फुटेज बरामद करने के लिए उसके मोबाइल को जब्त करने की आवश्यकता है और कहा गया कि वह पुलिस अधिकारियों के साथ-साथ न्यायाधीशों को भी रिश्वत देने में शामिल है। अपराध जघन्य हैं और वह एक प्रभावशाली व्यक्ति हैं, अगर उसे अग्रिम जमानत दी जाती है तो वह सबूतों को नष्ट कर सकता है।

    कोर्ट का निष्कर्ष

    शिकायत पर विचार करने के बाद अदालत ने कहा,

    "बेशक अधिवक्ता यह प्रस्तुत करते हैं कि आईपीसी की धारा 376 के तहत अपराध नहीं बनता है, लेकिन शिकायतकर्ता की सामग्री से पता चलता है कि याचिकाकर्ता ने बलात्कार करने का प्रयास किया और छात्रा पीड़ित लड़की है जो ऑफिस में इंटर्नशिप कर रही थी, लेकिन जल्दी इरेक्शन होने के कारण वह उसके साथ इंटरकोर्स नहीं कर पाया, नहीं तो वह रेप कर देता।"

    इसमें कहा गया है कि याचिकाकर्ता-आरोपी ने निर्दोष पीड़ित लड़की की स्थिति का भी दुरुपयोग किया, उसने उसके शरीर को अनुचित तरीके से छूआ, जो आईपीसी की धारा 354 और 376 के साथ पठित 511 के अर्थ के अंतर्गत आता है। यहां तक कि वीडियो ग्राफ दिखाकर रेप की कोशिश कर रहा था। जब वह इंटर्नशिप कर रही थी और उसके अधीन काम कर रही थी, तब एक छात्रा के रूप में उसकी कमजोरी का उपयोग करके उसके साथ छेड़छाड़ करना आईपीसी में बनाई गई सामग्री के बराबर है, यह दर्शाता है कि यह उसके साथ बलात्कार करने का प्रयास है।

    अदालत ने यह भी कहा कि जैसा कि वकील ने तर्क दिया कि वह जांच के लिए उपलब्ध हो सकता है, लेकिन उसके वीडियो क्लिपिंग एकत्र करने, वीडियो ग्राफ प्राप्त करने वाले मोबाइल फोन को जब्त करने के संबंध में हिरासत में पूछताछ की आवश्यकता और आवाज के नमूने की तुलना रिकॉर्ड करने और इसे एफएसएल को भेजने और याचिकाकर्ता के कार्यालय से सीसीटीवी फुटेज को जब्त करना भी आवश्यक है। हालांकि अपराध मौत या आजीवन कारावास से दंडनीय नहीं हैं, लेकिन दोनों मामलों में पीड़ितों द्वारा लगाए गए आरोप गंभीर प्रकृति के हैं।

    केस का शीर्षक: केएसएन राजेश बनाम कर्नाटक राज्य

    केस नंबर: आपराधिक याचिका 8596/2021

    आदेश की तिथि: 4 दिसंबर, 2021

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