जब तक धोखाधड़ी का अपराध/आपराधिक न्यास भंग नहीं होता, आपराधिक कानून का इस्तेमाल 'पैसे वसूली' के लिए नहीं किया जा सकता: कर्नाटक हाईकोर्ट
Shahadat
2 Aug 2022 3:51 PM IST

कर्नाटक हाईकोर्ट
कर्नाटक हाईकोर्ट ने कहा कि अनुबंध के तहत भुगतान किए गए धन की वसूली के लिए आपराधिक कानून तब तक लागू नहीं किया जा सकता, जब तक कि धोखाधड़ी या आपराधिक न्यास भंग का अपराध स्थापित नहीं हो जाता।
जस्टिस एम नागप्रसन्ना की एकल पीठ ने इसके साथ ही अमित गर्ग द्वारा दायर याचिका को स्वीकार कर लिया और उसके खिलाफ भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 419 और 420 और सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 की धारा 66 सी और 66 डी के तहत शुरू की गई कार्यवाही को रद्द कर दिया।
बेंच ने कहा,
"पक्षों के बीच अनुबंध या घटिया गुणवत्ता की आपूर्ति निस्संदेह सिविल कार्यवाही के दायरे में आएगी, चाहे वह किसी भी प्रकृति की शिकायतकर्ता शुरू करना चाहे। लेकिन यह अपराध का मामला नहीं है। यह सामान्य कानून है कि आपराधिक कानून को पैसे वसूलने के लिए लागू नहीं किया जा सकता है, जब तक कि धोखाधड़ी या आपराधिक न्यास भंग का अपराध स्थापित नहीं हो जाता।"
गर्ग ने 2 अगस्त, 2021 की एफआईआर को रद्द करने की मांग करते हुए अदालत का दरवाजा खटखटाया था। गर्ग के खिलाफ उक्त एफआईआर मेसर्स पेगासी स्पिरिट्स प्राइवेट लिमिटेड के निदेशक नीरज कुकरेजा द्वारा कथित तौर पर एन 95 फेस मास्क की घटिया गुणवत्ता की आपूर्ति के लिए दर्ज कराई गई थी।
याचिकाकर्ता ने दलील दी कि पूरा मामला अनुबंध के दायरे में है। याचिकाकर्ता की ओर से कोई धोखाधड़ी नहीं की गई। उसका सौदे की शुरुआत में बेईमानी का कोई इरादा नहीं था।
इसके अलावा, याचिकाकर्ता द्वारा आपूर्ति किए गए मास्क के नमूने की गुणवत्ता पर रिपोर्ट आने की प्रतीक्षा किए बिना शिकायतकर्ता/प्रतिवादी ने जोर देकर कहा कि डिलीवरी तुरंत की जाए। इसलिए, शिकायतकर्ता अब यह तर्क नहीं दे सकता कि जो आपूर्ति की गई, वह वादे के मुताबिक नहीं थी। याचिकाकर्ता के खिलाफ अब अपराध दर्ज करने का पूरा मकसद पैसे की वसूली है।
शिकायतकर्ता ने यह कहते हुए सबमिशन का खंडन किया कि हालांकि विवाद अनुबंध के दायरे में है, याचिकाकर्ता का धोखा देने और बेईमानी करने का इरादा नूमने की जांच से पहले से ही था। उसने तर्क दिया कि वह आपूर्ति किए गए मास्क की खेप को नही ले सकता, क्योंकि वे खराब गुणवत्ता के थे। इस सौदे में शिकायतकर्ता को 47/- लाख रुपये का नुकसान हुआ है। इसका उसने भुगतान किया है। अब उसने इस आधार पर अपराध दर्ज कराया है कि याचिकाकर्ता ने खराब गुणवत्ता वाले मास्क की आपूर्ति करके शिकायतकर्ता को धोखा दिया है।
न्यायालय का निष्कर्ष:
पीठ ने आईपीसी की धारा 415 पर भरोसा करते हुए कहा,
"यह अनिवार्य करता है कि जो कोई भी किसी व्यक्ति को धोखे या बेईमानी से किसी भी संपत्ति को धोखेबाजी से देने के लिए प्रेरित करता है, उसे धोखा देने वाला कहा जाता है।"
इसके बाद आगे कहा गया कहा,
"वर्तमान मामले में याचिकाकर्ता-कंपनी को शिकायतकर्ता-कंपनी के नाम पर विपणन किए जाने वाले मास्क के उत्पादन और वितरण के लिए अच्छी तरह से सुसज्जित होने के कारण उसने खरीद आदेश दिया और मास्क खरीदे। माल मिलने पर इसमें खराब गुणवत्ता पा गई। यह अनुबंध की शुरुआत में धोखाधड़ी या धोखे की राशि नहीं हो सकती, क्योंकि मास्क की आपूर्ति नमूना दिखाने के बाद की गई। यदि शिकायतकर्ता उपयुक्त द्वारा नमूनों की जांच के लिए इंतजार नहीं कर सका तो याचिकाकर्ता के खिलाफ धोखाधड़ी का आरोप नहीं लगाया जा सकता।"
इसमें कहा गया,
"इसलिए, आईपीसी की धारा 415 की कोई भी सामग्री याचिकाकर्ता और शिकायतकर्ता के बीच विवाद में मौजूद नहीं है, जो अनुबंध है और आरोप अनुबंध का उल्लंघन है।"
आगे अदालत ने कहा,
"मामले में कोई धोखाधड़ी नहीं है। आईपीसी की धारा 419 के तहत भी याचिकाकर्ता के खिलाफ आरोप नहीं लगाया जा सकता।"
सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा 66सी और 66डी को शामिल करने के संबंध में पीठ ने कहा,
"अधिनियम के ये प्रावधान अपराध में लापरवाह समावेश नहीं करते हैं, क्योंकि यहां ऊपर वर्णित तथ्य अधिनियम की धारा 66 सी और 66 डी के तहत से दायरे हैं। इसलिए, उन अपराधों को भी याचिकाकर्ता के खिलाफ नहीं रखा जा सकता है।"
बेंच ने सुशील सेठी बनाम अरुणाचल प्रदेश राज्य, (2020) 3 एससीसी 240 के मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर भरोसा किया। इस मामले में अदालत ने अनुबंध और धोखाधड़ी के बीच परस्पर क्रिया के संबंध में कानून के पूरे स्पेक्ट्रम पर विचार किया था।
मामले पर भरोसा करते हुए बेंच ने कहा,
"मामले में आपराधिक कानून को गति में स्थापित करने के लिए दोनों दुर्बलताएं शामिल हैं- पहली, इसे अनुबंध के उल्लंघन के लिए शुरू किया गया है और दूसरा, इसे पैसे की वसूली के लिए शुरू किया गया। इसलिए, अगर याचिकाकर्ता के खिलाफ आगे की कार्यवाही जारी रखने की अनुमति दी जाती है तो यह न्याय के क्षेत्र में निराधार हो जाएगी। इस पर मामला सीआरपीसी की धारा 482 के तहत इस न्यायालय के अधिकार क्षेत्र के प्रयोग के लिए उपयुक्त मामला बन जाता है और आक्षेपित कार्यवाही को खत्म कर देता है।"
पीठ ने स्पष्ट किया,
"इस अदालत ने शिकायतकर्ता के पैसे की वसूली के लिए दीवानी कार्यवाही शुरू करने के किसी भी अधिकार पर फैसला नहीं किया है। यदि ऐसी कार्यवाही शुरू की जाती है तो इस आदेश के दौरान की गई टिप्पणियों से किसी न्यायिक मंच की योग्यता पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा।"
केस टाइटल: अमित गर्ग बनाम कर्नाटक राज्य
केस नंबर: 2021 की आपराधिक याचिका नंबर 4856
साइटेशन: 2022 लाइव लॉ (कर) 298
आदेश की तिथि: 26 जुलाई, 2022
उपस्थिति: याचिकाकर्ता के लिए एडवोकेट भरत कुमार वी; एचसीजीपी के.पी.यशोधा, आर1 के लिए; एडवोकेट डी.विजय राज, आर2. के लिए
ऑर्डर डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें

