कर्नाटक हाईकोर्ट ने गलत तरीके से गिरफ्तार किए गए व्यक्ति को पांच लाख रुपए का मुआवजा देने का आदेश दिया
Shahadat
1 Aug 2022 12:34 PM IST
कर्नाटक हाईकोर्ट ने कहा कि जब भी कोई जमानती या गैर-जमानती वारंट जारी किया जाता है तो गिरफ्तार करने वाले अधिकारी को यह पता लगाने और संतुष्ट होने की आवश्यकता होती है कि जिस व्यक्ति को गिरफ्तार किया जाना है, क्या वह वही व्यक्ति है जिसके खिलाफ वारंट जारी किया गया है।
जस्टिस सूरज गोविंदराज की एकल पीठ ने वर्तमान मामले में राज्य सरकार को निर्देश दिया कि वह निंगाराजू एन को उसकी पहचान में कथित भ्रम के आधार पर गलत तरीके से गिरफ्तार करने के लिए पांच लाख रुपये का मुआवजा दे।
बेंच ने कहा,
"आवेदक को गिरफ्तार करने का एकमात्र कारण यह है कि उसके पिता का नाम वारंट में नामित व्यक्ति के नाम से मिलता-जुलता है। मैं यह समझने में असमर्थ हूं कि पिता का नाम समान होने मात्र से किसी की गिरफ्तारी में क्या उसकी कोई भूमिका होगी। इसी तर्क को एक्सट्रपलेशन करना यदि गिरफ्तारी वारंट भाई के लिए जारी किया गया है तो क्या दूसरे भाई या शायद बहन को भी गिरफ्तार किया जा सकता है, क्योंकि पिता का नाम समान है। प्राथमिक महत्व उस व्यक्ति की पहचान जिसे गिरफ्तार किया जाना है। पिता का नाम समान होने जैसा अन्य पहलू का कोई महत्व नहीं है। हालांकि उसकी पुष्टिकारक भूमिका हो सकती है।"
बेंच ने यह भी जोड़ा,
"भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत गारंटीकृत जीवन और स्वतंत्रता का अधिकार सर्वोपरि है। किसी ऐसे व्यक्ति को गिरफ्तार करना जिसकी गिरफ्तारी अधिकृत नहीं है, भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत गारंटीकृत मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है।"
रिकॉर्ड को देखने पर पीठ ने नोट किया कि हालांकि गिरफ्तार व्यक्ति ने विवाद किया है कि वारंट उसी के नाम जारी हुआ है। हालांकि, उसकी पहचान को क्रॉस-चेक और सत्यापित नहीं किया गया। इसके परिणामस्वरूप निर्दोष व्यक्ति को गिरफ्तार किया गया।
बेंच ने यह भी देखा,
"हालांकि गिरफ्तार व्यक्ति ने स्पष्ट रूप से कहा कि वह वारंट में नामित व्यक्ति नहीं है। फिर भी गिरफ्तार करने वाले अधिकारी ने इसे सत्यापित नहीं किया है। इसके बजाय उस निर्दोष व्यक्ति को गिरफ्तार कर लिया गया है। इस न्यायालय के समक्ष पेश किया गया है। इससे उसकी स्वतंत्रता को नुकसान हुआ और चोट पहुंची, जो संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत गारंटीकृत मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है।"
इसके बाद बेंच ने यह भी कहा,
"गिरफ्तारी को स्वतंत्रता की हानि के साथ-साथ प्रतिष्ठा की हानि के रूप में भी रखा गया है। मेरा विचार है कि राज्य इसी के लिए गिरफ्तार व्यक्ति को मुआवजा देने के लिए उत्तरदायी होगा। मुआवजा पांच रुपये तय किया गया है। मुआवज़ा का भुगतान सोमवार से आठ सप्ताह की अवधि के भीतर किया जाना है। राज्य मुआवज़ा की राशि उन पुलिस अधिकारियों से वसूल करने के लिए स्वतंत्र है जिन्होंने आवेदक को गिरफ्तार किया था।"
पुलिस महानिदेशक ने उपयुक्त दिशा-निर्देश और/या मानक संचालन प्रक्रिया जारी करने का निर्देश दिया।
पीठ ने पुलिस महानिदेशक को निर्देश दिया कि यदि इस स्थिति से निपटने के लिए पहले से ही दिशानिर्देश या मानक संचालन प्रक्रिया जारी की गई है तो सभी गिरफ्तार अधिकारियों को इस संबंध में ट्रेनिंग दी जाए। यदि जारी नहीं किया जाता है तो चार सप्ताह के भीतर पहचान सत्यापन सहित किसी व्यक्ति को गिरफ्तार करने से पहले गिरफ्तार करने वाले अधिकारी द्वारा क्या कदम उठाए जाने चाहिए, इस संबंध में दिशा-निर्देश जारी किया जाए।
केस शीर्षक: निंगाराजू एन बनाम मैसर्स इंडिया हॉलिडे (प्राइवेट) लिमिटेड के आधिकारिक परिसमापक।
केस नंबर: कंपनी आवेदन नंबर 96 ऑफ 2022 सी/डब्ल्यू कंपनी याचिका नंबर 26 2008।
साइटेशन: 2022 लाइव लॉ (कर) 296
आदेश की तिथि: जुलाई, 2022 का 7वां दिन
उपस्थिति: आवेदक के लिए एडवोकेट के.एस.महादेवन; प्रतिवादी के लिए एडवोकेट के.आनंदा
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