इन्फोसिस के सह-संस्थापक के खिलाफ SC/ST Act के तहत दर्ज मामला खारिज
Shahadat
29 April 2025 4:40 AM

कर्नाटक हाईकोर्ट ने इन्फोसिस के सह-संस्थापक एस कृष्ण गोपालकृष्णन और भारतीय विज्ञान संस्थान (IISc) के 15 अन्य सदस्यों के खिलाफ एससी/एसटी (अत्याचार निवारण) अधिनियम (SC/ST Act) के तहत शुरू की गई कार्यवाही खारिज की।
बता दें कि गोपालकृष्णन पर पूर्व प्रोफेसर डी. सन्ना दुर्गाप्पा ने गलत तरीके से सेवा से निकाले जाने और जाति आधारित भेदभाव का आरोप लगाया था।
जस्टिस हेमंत चंदनगौदर ने आरोपी द्वारा दायर याचिका स्वीकार करते हुए कहा,
"शिकायत के अवलोकन से यह स्पष्ट है कि याचिकाकर्ताओं के खिलाफ लगाए गए आरोप अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 के तहत अपराध नहीं हैं।"
FIR में IISc के फैकल्टी मेंबर्स के अलावा गोविंदन रंगराजन, श्रीधर वारियर, संध्या विश्वेश्वरैया, हरि के वी एस, दासप्पा, बलराम पी, हेमलता महिषी, चट्टोपाध्याय के, प्रदीप डी सावकर और मनोहरन के नाम भी शामिल हैं। डॉ. डी सन्ना दुर्गाप्पा ने दावा किया था कि उन्हें 2014 में हनी ट्रैप मामले में झूठा फंसाया गया, जिसके कारण उन्हें IISc से बर्खास्त कर दिया गया। उन्होंने जाति आधारित दुर्व्यवहार और धमकियों का भी आरोप लगाया। गोपालकृष्णन 2022 से IISc परिषद के अध्यक्ष के रूप में कार्यरत हैं।
पीठ ने कहा,
“प्रतिवादी नंबर 1 को विभागीय जांच के बाद यौन उत्पीड़न के लिए सेवा से बर्खास्त कर दिया गया, जिसे बाद में इस्तीफे में बदल दिया गया। प्रतिवादी नंबर 1 द्वारा इस न्यायालय के समक्ष W.P. नंबर 19594/2015 में बर्खास्तगी को चुनौती दी गई। उस कार्यवाही में पक्षकारों ने एक संयुक्त ज्ञापन दायर किया। समझौते की शर्तों के अनुसार, बर्खास्तगी को इस्तीफे में बदल दिया गया। प्रतिवादी नंबर 1 इस्तीफे से उत्पन्न होने वाले सभी टर्मिनल लाभों का हकदार था। प्रतिवादी नंबर 1 ने विभिन्न प्राधिकरणों, जैसे कि राष्ट्रीय अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति आयोग, कर्नाटक राज्य अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति आयोग, अतिरिक्त डीजीपी नागरिक अधिकार प्रवर्तन निदेशालय और उप पुलिस अधीक्षक सीआरई सेल, आदि के साथ दर्ज सभी कार्यवाही और शिकायतों को वापस लेने पर भी सहमति व्यक्त की।”
इसके अलावा, "समझौते के बाद शिकायतकर्ता के पक्ष में सभी टर्मिनल लाभ जारी किए गए। संयुक्त ज्ञापन के आधार पर रिट याचिका का निपटारा अंतिम रूप ले चुका है। इसके बावजूद, प्रतिवादी नंबर 2 ने CrPC की धारा 200 के तहत दो समान शिकायतें दर्ज कीं।"
यह देखते हुए कि "इन शिकायतों के आधार पर अपराध के रजिस्ट्रेशन को कुछ याचिकाकर्ताओं/अभियुक्तों ने डब्ल्यू.पी. नंबर 63878/2016 और 10835/2017 में इस न्यायालय के समक्ष चुनौती दी थी। इस न्यायालय ने दिनांक 30.10.2023 और 07.06.2022 के आदेशों द्वारा FIR के रजिस्ट्रेशन को रद्द कर दिया, यह मानते हुए कि पक्षों के बीच विवाद प्रतिवादी नंबर 1 की समाप्ति से उत्पन्न हुआ था, जिसे बाद में इस्तीफे में बदल दिया गया। हालांकि मामले को आपराधिक रंग दिया गया।"
इसने कहा,
"मौजूदा निजी शिकायत, जिसमें अतिरिक्त आरोपी नंबर 16 और 17 को शामिल करने के अलावा समान आरोप लगाए गए, जिन्होंने कथित तौर पर शिकायतकर्ता को सेवा छोड़ने की धमकी दी थी, कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग है। इसी तरह के आरोपों के साथ तीसरी शिकायत दर्ज करना स्पष्ट रूप से याचिकाकर्ताओं को शिकायतकर्ता की सेवा समाप्त करने के लिए परेशान करने का एक कष्टप्रद प्रयास है, जिसे बाद में इस्तीफे में बदल दिया गया। इसलिए पक्षों के बीच विवाद अनिवार्य रूप से दीवानी प्रकृति का है, यद्यपि इसे आपराधिक रंग दिया गया।"
तदनुसार, इसने याचिका को अनुमति दी और मामला रद्द कर दिया। साथ ही याचिकाकर्ताओं को शिकायतकर्ता के खिलाफ आपराधिक अवमानना कार्यवाही शुरू करने की अनुमति मांगने के लिए एडवोकेट जनरल के समक्ष उचित याचिका दायर करने की स्वतंत्रता सुरक्षित रखी।
केस टाइटल: प्रोफेसर गोविंदन रंगराजन और अन्य और डॉ डी सना दुर्गाप्पा और अन्य