पुलिस अधिकारी ने दर्ज किया था हत्या का झूठा मामला, खुद ही गढ़ लिए थे सबूत, अब होगी कार्रवाई

Shahadat

26 April 2025 5:08 AM

  • पुलिस अधिकारी ने दर्ज किया था हत्या का झूठा मामला, खुद ही गढ़ लिए थे सबूत, अब होगी कार्रवाई

    मैसूर के सेशन कोर्ट ने पुलिस निरीक्षक प्रकाश.बी.जी. के खिलाफ शिकायत दर्ज करने का निर्देश दिया। प्रकाश. बी.जी. पर आरोप है कि उन्होंने एक व्यक्ति पर अपनी पत्नी की हत्या का आरोप लगाकर उसके खिलाफ झूठा मामला दर्ज किया। हालांकि, बाद में महिला को जीविता पाया गया।

    सेशन जज गुरुराज सोमक्कलवर ने कहा कि निरीक्षक ने गवाहों के बयानों सहित सबूत गढ़े और अदालत के समक्ष आरोपपत्र दायर किया। यह टिप्पणी करते हुए कि निरीक्षक ने अदालत को गुमराह किया।

    जज ने कहा,

    "सीडब्ल्यू-55 के खिलाफ एक गंभीर कार्रवाई शुरू की जानी चाहिए, क्योंकि उसने सबूत गढ़े हैं। अदालत को अनुचित प्रक्रिया का हिस्सा बनाया और अदालत को गुमराह किया। उसके कृत्य सार्वजनिक न्याय के खिलाफ अपराध हैं। उसने सिर्फ यह दिखाने के लिए बयान गढ़े हैं कि आरोपी ने अपनी पत्नी की हत्या की है।"

    अदालत ने दोषसिद्धि हासिल करने के इरादे से झूठे सबूत गढ़ने के अपराध के लिए निरीक्षक के खिलाफ शिकायत दर्ज करने का निर्देश दिया।

    अदालत ने कहा,

    “इस मौजूदा मामले में पूरा आरोपपत्र आरोपी को फंसाने के लिए गढ़ा गया और यह बहुत गंभीर है। इसलिए मुख्य प्रशासनिक अधिकारी, जिला एवं सेशन कोर्ट, मैसूर को निर्देश देना आवश्यक है कि वह सीडब्ल्यू-55 प्रकाश बी.जी. के खिलाफ भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 193 और 195 (BNS की नई धारा 299 और 231, 2023) के तहत दंडनीय अपराध के लिए शिकायत दर्ज करें।”

    अदालत ने पुलिस महानिरीक्षक (मैसूर डिवीजन) को प्रकाश और तीन अन्य पुलिस अधिकारियों जितेंद्र कुमार, प्रकाश.एम.यत्तिनमणि, महेश.बी.के., जो बेट्टाडापुरा पुलिस स्टेशन से जुड़े हैं, के खिलाफ विभागीय जांच शुरू करने का भी निर्देश दिया।

    अदालत ने पाया कि पुलिस अधिकारियों ने अवैध जांच की और उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई की जानी चाहिए।

    इसमें कहा गया,

    "इस मामले में जांच अधिकारियों ने अनुचित और पक्षपातपूर्ण जांच की है। इसमें कोई संदेह नहीं कि आरोपियों के खिलाफ़ पेश की गई जांच रिपोर्ट/आरोपपत्र मनगढ़ंत तथ्यों से भरा हुआ है। जांच अधिकारी की ओर से गंभीर चूक हुई और वर्तमान मामले में जांच अवैध है। दोषी अधिकारियों के खिलाफ़ कड़ी कार्रवाई की जानी चाहिए, जिन्होंने पूरी न्याय व्यवस्था को पटरी से उतारने की कोशिश की।"

    इसके मद्देनजर, अदालत ने आरोपी सुरेश को अपनी पत्नी की हत्या के आरोप में IPC की धारा 302 के तहत बरी कर दिया। अदालत ने राज्य सरकार को उसके खिलाफ़ दुर्भावनापूर्ण कार्यवाही के लिए उसे एक लाख रुपये का मुआवजा देने का निर्देश दिया।

    व्यक्ति के प्रति सहानुभूति व्यक्त करते हुए न्यायालय ने कहा,

    "यह केवल उसके खिलाफ़ शुरू की गई दुर्भावनापूर्ण कार्यवाही के कारण है। उसे हत्यारा करार दिया गया। उसे समाज में अपमान सहना पड़ा। आरोपी के दुख के दिनों को अब फिर से नहीं भुलाया जा सकता। लेकिन, उसे दुर्भावनापूर्ण अभियोजन और अवैध हिरासत के लिए मुआवजा दिया जा सकता है। चूंकि राज्य की ओर से दुर्भावनापूर्ण अभियोजन शुरू किया गया, इसलिए राज्य को आरोपी को हुए नुकसान की भरपाई करनी होगी। इसलिए गृह विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव को आरोपी को 1,00,000/- रुपये का मुआवजा देने का निर्देश दिया जाता है। हालांकि, विभागीय कार्रवाई के दौरान दोषी अधिकारियों से उक्त राशि वसूलने के लिए प्राधिकरण स्वतंत्र है।"

    न्यायालय के समक्ष मामला:

    पुलिस के अनुसार, आरोपी को अपनी पत्नी मल्लिगे पर बेवफाई का संदेह था और उसने उसके साथ शारीरिक और मानसिक क्रूरता की। आरोप है कि आरोपी अपनी पत्नी को नहर पर ले गया, जहां उसने उससे झगड़ा किया। आरोप है कि अपनी पत्नी को मारने के इरादे से उसने बगल में पड़ा एक डंडा उठाया और उसके सिर पर वार कर उसे मार डाला। पुलिस ने आगे आरोप लगाया कि आरोपी ने अपनी पत्नी के शव को झाड़ी में छिपा दिया और डंडे से भी वार किया।

    पुलिस के अनुसार, एक व्यक्ति को अज्ञात शव मिला और उसी दिन आरोपी ने अपनी पत्नी की गुमशुदगी की शिकायत दर्ज कराई। हालांकि, मुकदमे के दौरान आरोपी के वकील ने कहा कि मल्लिगे जीवित है। इसके बाद जज ने पुलिस को उसे न्यायालय के समक्ष पेश करने का निर्देश दिया। उसी दिन उसे न्यायालय के समक्ष पेश किया गया और उसके रिश्तेदारों ने उसकी पहचान की।

    सेशन कोर्ट ने पाया कि आरोपी की पत्नी के सामने आने से पुलिस पर संदेह पैदा हुआ। साक्ष्यों का अनुसरण करते हुए न्यायालय ने पाया कि पुलिस ने जांच की 'चतुराई से पटकथा तैयार की'।

    इसमें कहा गया,

    "जांच अधिकारी की रचनात्मकता इतनी अधिक है कि उसने कहानी गढ़ी और स्क्रिप्ट लिखी कि इन दोनों आरोपियों और मल्लिगे ने कदंबा बार से टेट्रा पैक खरीदा, जहां वे कभी नहीं गए और अपराध स्थल पर आए, उन टेट्रा पैक में शराब पी और मौके पर फेंक दिया और वे मल्लिगे के शव के साथ पाए गए। इसलिए अपराध स्थल से प्रत्येक विवरण को निकालकर स्क्रिप्ट को बहुत ही चतुराई से तैयार किया गया।"

    जांच को पूरी तरह से खारिज करते हुए न्यायालय ने पाया कि आरोपी के खिलाफ कोई प्रथम दृष्टया सबूत नहीं था, कोई प्रारंभिक जांच नहीं की गई और उसे झूठे सबूतों के साथ बनाए गए मामले में फंसाया गया। जांच को केवल 'दोषपूर्ण' मानने से इनकार करते हुए न्यायालय ने कहा कि "कहानी की स्क्रिप्टिंग, सबूतों का निर्माण और स्क्रिप्टेड कहानी में दस्तावेजों का निर्माण" जानबूझकर किया गया था और यह कोई वास्तविक गलती नहीं थी।

    इस मामले में न्याय प्रणाली का दुरुपयोग किए जाने पर प्रकाश डालते हुए न्यायालय ने कहा,

    "वर्तमान जैसे मामले में जहां पूरी प्रणाली का दुरुपयोग किया गया और कानून की अदालतें गुमराह हैं। दोषों को सुधार कर न्याय प्रणाली में विश्वास और भरोसा बहाल करना इस न्यायालय का कर्तव्य है। न्यायालय अपनी आंखें बंद करके एजेंसी को पूरी आपराधिक न्याय प्रणाली को पटरी से उतारने की अनुमति नहीं दे सकता।"

    इन टिप्पणियों के साथ न्यायालय ने आरोपी को बरी कर दिया और मैसूर के पुलिस अधीक्षक को अज्ञात शव के संबंध में जांच शुरू करने का निर्देश दिया।

    केस टाइटल: राज्य बेट्टाडापुरा पी.एस. और सुरेश @ कुरुबारा सुरेश पुत्र गांधी,

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