कर्नाटक संशोधन, जिसके तहत कार्यकारी प्राधिकरण को विलंबित जन्म/मृत्यु पंजीकरण पर निर्णय लेने की शक्ति प्रदान की गई, अल्‍ट्रा वायर्सः कर्नाटक हाईकोर्ट

Avanish Pathak

19 April 2023 1:35 PM GMT

  • कर्नाटक संशोधन, जिसके तहत कार्यकारी प्राधिकरण को विलंबित जन्म/मृत्यु पंजीकरण पर निर्णय लेने की शक्ति प्रदान की गई, अल्‍ट्रा वायर्सः कर्नाटक हाईकोर्ट

    Karnataka High Court

    कर्नाटक हाईकोर्ट ने कर्नाटक जन्म और मृत्यु पंजीकरण (संशोधन) नियम, 2022, जिसके जरिए जन्म और मृत्यु नियम, 1999 के नियम 9 में संशोधन किया गया है और राजस्व अधिकारियों को जन्म और मृत्यु के विलंबित पंजीकरण के लिए आवेदन पर निर्णय लेने की शक्तियां प्रदान की गई हैं, को अल्ट्रा वायर्स घोषित कर दिया है।

    राज्य सरकार ने नियम 9 के उप-नियम (3) में संशोधन के जर‌िए "एक प्रथम श्रेणी के मजिस्ट्रेट या एक प्रेसिडेंसी मजिस्ट्रेट" को "एक सहायक आयुक्त (उप-मंडल मजिस्ट्रेट)" से प्रतिस्‍थापित कर दिया था। राज्य सरकार ने प्रथम श्रेणी के मजिस्ट्रेट की शक्ति को हटाकर उसे सहायक आयुक्त की दया पर छोड़ दिया था।

    जस्टिस एम नागप्रसन्ना की एकल न्यायाधीश पीठ ने एडवोकेट सुदर्शन वी बिरादर की याचिका की अनुमति दी और 18 जुलाई 2022 को अधिसूचित संशोधन नियमों को समाप्त कर दिया और कहा कि "यदि 2022 के संशोधन नियम को समाप्त नहीं किया जाता है" तो यह पूंछ को कुत्ते को हिलाने की अनुमति देने जैसे होगा ।”

    पीठ ने कहा कि 18 जुलाई 2022 को अधिसूचित नियमों के नियम 9 में संशोधन मूल अधिनियम से परे जाता है, क्योंकि संशोधन अधिनियम की धारा 13 की उप-धारा (3) से पूरी तरह व‌िपरीत है। यह कानून के उक्त प्रावधान के साथ असंगत है। इसलिए, 18 जुलाई 2022 को अधिसूचित संशोधन नियम कानूनी रूप से खड़े नहीं हो पाएंगे क्योंकि यह अधिनियम के इंट्रा वायर्स नहीं, बल्कि अल्ट्रा वायर्स हैं; यदि यह मूल अधिनियम का अल्ट्रा वायर्स है, तो इसे केवन अवैध और शून्य ही माना जा सकता है।

    18 जुलाई 2022 को कर्नाटक सरकार ने 1999 के नियमों के नियम 9 में संशोधन करके 'एक प्रथम श्रेणी के मजिस्ट्रेट या एक प्रेसीडेंसी मजिस्ट्रेट' के स्‍थान पर 'सहायक आयुक्त (सब-डिवीजनल मजिस्ट्रेट)' शब्दों को डाल दिया था।

    संशोधन को हटाने या संशोधन को वापस लेने की मांग करते हुए कर्नाटक राज्य बार काउंसिल ने सरकार को अभ्यावेदन दिया था। अभ्यावेदन में बताया गया था कि संशोधन अव्यवहार्य क्यों है? जब राज्य ने कर्नाटक राज्य बार काउंसिल के अभ्यावेदन पर ध्यान नहीं दिया तो याचिकाकर्ता ने अदालत का दरवाजा खटखटाया। याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि संशोधन अधिनियम मूल अधिनियम के विपरीत है और इसलिए, मूल अधिनियम के विरुद्ध है और इसे रद्द किया जाना चाहिए।

    यूनियन ऑफ इंडिया ने भी प्रस्तुत किया "नियम 1999 के नियम 9 के उप-नियम (3) के तहत दी गई न्यायिक शक्ति को वापस नहीं ‌लिया जा सकता है और इसे नौकरशाहों की दया पर नहीं छोड़ जा सकता है।"

    हालांकि, सरकार ने यह कहते हुए अपनी कार्रवाई का बचाव किया कि उन्होंने केवल हर दूसरी राज्य सरकार का अनुसरण किया है, जिन्होंने राजस्व अधिकारियों को उन मामलों में शक्ति दी है जहां जन्म और मृत्यु लंबे समय के बाद दर्ज की जाती हैं और इसलिए, राज्य सरकार ने इसे अन्य राज्य के अनुरूप होने के लिए पेश किया है।

    निष्कर्ष

    खंडपीठ ने कहा कि धारा 13 की उप-धारा (3) में कहा गया है कि कोई भी जन्म या मृत्यु, जो घटित होने के एक वर्ष के भीतर दर्ज नहीं की गई है, उसे भी पंजीकृत किया जा सकता है और ऐसा पंजीकरण उप-धारा (3) के तहत प्रथम श्रेणी मजिस्ट्रेट या प्रेसीडेंसी मजिस्ट्रेट के आदेश के बाद ही होगा, जिसे वह जन्म या मृत्यु की शुद्धता की पुष्टि करने पर देगा। धारा 30 राज्य सरकार को अधिनियम के उद्देश्यों को पूरा करने के लिए नियम बनाने का अधिकार देती है।

    खंडपीठ ने कहा,

    “अधिनियम की धारा 30 के तहत नियम बनाने की शक्ति राज्य सरकारों को सौंपी गई है। इसलिए, जो नियम बनाए गए हैं, वे प्रत्यायोजित विधान हैं। प्रत्यायोजित विधान को न्यायालयों के समक्ष इस आधार पर चुनौती दी जा सकती है कि यह मूल अधिनियम के अधिकार से अल्ट्रा वायर्स है। उक्त मुद्दे की जांच करने वाला न्यायालय अल्ट्रा वायर्स के सिद्धांत की कसौटी पर प्रत्यायोजित कानून की वैधता को परख सकता है।

    पीठ ने कहा कि अधिनियम की धारा 13 (3) के तहत, यह अधिनियम के तहत प्रथम श्रेणी मजिस्ट्रेट को प्रदत्त न्यायिक शक्ति है और देरी पर ऐसा पंजीकरण केवल मजिस्ट्रेट द्वारा किए गए आदेश पर ही हो सकता है।

    कोर्ट ने कहा, "अधिनियम के तहत प्रदत्त शक्ति न तो अर्ध-न्यायिक है और न ही प्रशासनिक, यह" न्यायिक "है। यदि अधिनियम की धारा 13 एक मजिस्ट्रेट को कुछ न्यायिक शक्ति प्रदान करती है, तो यह सामान्य बात है कि नियम अधिनियम के तहत अनिवार्य से परे जाकर या उससे हटकर इसे दूर नहीं कर सकते हैं।"

    इसके बाद कोर्ट ने नियम 9 में संशोधन को अधिनियम के विरुद्ध माना। जिसके बाद कोर्ट ने याचिका को अनुमति दी और घोषित किया कि उक्त अधिसूचना को आगे बढ़ाने के लिए की गई सभी कार्रवाइयां कानून में अमान्य घोषित की जाती हैं।

    केस टाइटल : सुदर्शन वी बिरादर और कर्नाटक राज्य

    केस नंबर: रिट पीटिशन नंबर 15800/2022 की

    साइटेशन: 2023 लाइव लॉ (कर) 155

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