'क्या सरकार जस्टिस शेखर यादव को बचा रही है?' : कपिल सिब्बल ने महाभियोग प्रस्ताव पर कार्रवाई न होने पर उठाए सवाल
Praveen Mishra
11 Jun 2025 9:24 AM IST

सिनियर एडवोकेट और राज्यसभा सांसद कपिल सिब्बल ने आज यह सवाल उठाया कि आखिर क्यों राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस शेखर कुमार यादव के खिलाफ लाए गए महाभियोग प्रस्ताव पर अब तक कोई कार्रवाई नहीं की है, जबकि उन पर कथित रूप से साम्प्रदायिक बयानबाजी और घृणा फैलाने वाले भाषण देने का आरोप है।
सिब्बल ने आज एक प्रेस कॉन्फ्रेंस की, जो हिंदुस्तान टाइम्स की एक रिपोर्ट के बाद बुलाई गई थी। उस रिपोर्ट में कहा गया था कि सुप्रीम कोर्ट ने जस्टिस यादव के खिलाफ इन-हाउस जांच शुरू नहीं की — जैसा कि उसने जस्टिस यशवंत वर्मा के मामले में किया था — क्योंकि उसे राज्यसभा सचिवालय से एक पत्र मिला था, जिसमें कहा गया था कि यह मामला राज्यसभा के अधीन विचाराधीन है। सिब्बल ने कहा कि राज्यसभा के सभापति ने महाभियोग प्रस्ताव पर निर्णय नहीं लेकर, सुप्रीम कोर्ट द्वारा जस्टिस यादव के खिलाफ की जा रही संभावित इन-हाउस कार्रवाई को प्रभावी रूप से रोक दिया।
सिब्बल ने कहा, “मेरे अनुसार यह बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण है और वास्तव में इसमें पक्षपात की बू आती है। अगर आपका तर्क यह है कि जब आपको यह सार्वजनिक रूप से ज्ञात हुआ कि इन-हाउस प्रक्रिया चल रही है, और चूंकि आपके समक्ष महाभियोग प्रस्ताव लंबित है, तो राज्यसभा के महासचिव ने भारत के प्रधान न्यायाधीश को पत्र लिखकर सूचित किया कि प्रस्ताव विचाराधीन है और इसलिए आप इन-हाउस प्रक्रिया आगे न बढ़ाएं — जबकि हम सब जानते हैं कि इन-हाउस प्रक्रिया का महाभियोग प्रस्ताव से कोई लेना-देना नहीं होता। वह महाभियोग प्रस्ताव तो अब तक स्वीकार भी नहीं किया गया है। हमने वह प्रस्ताव 13 दिसंबर 2024 को दाखिल किया था और अब जून 2025 आ गया है — छह महीने हो गए — लेकिन सचिवालय ने अब तक 55 हस्ताक्षरों का सत्यापन नहीं किया है। इसमें आखिर कितना समय लगता है?” सिब्बल ने सवाल किया।
सिब्बल ने कहा, "सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि अगर आपको याद हो, तो जस्टिस शेखर यादव ने विश्व हिंदू परिषद के कार्यक्रम में हाईकोर्ट परिसर में एक भाषण दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने इस पर संज्ञान लिया और जस्टिस यादव को स्पष्टीकरण के लिए तलब किया। इलाहाबाद हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस से रिपोर्ट मांगी गई थी और मैंने सुना है कि उन्होंने नकारात्मक रिपोर्ट दी थी। लेकिन इसी बीच, 13 फरवरी 2025 को राज्यसभा के सभापति ने बयान दिया कि संसद इस मामले को आगे बढ़ाएगी, और इसलिए इन-हाउस प्रक्रिया नहीं चलनी चाहिए,"
सिब्बल ने स्पष्ट किया कि इन-हाउस प्रक्रिया चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया द्वारा शुरू की जाती है और इसका संसद में लाए गए महाभियोग प्रस्ताव से कोई संबंध नहीं होता।
सिब्बल ने पूछा, "इन-हाउस प्रक्रिया की शुरुआत क्यों की गई थी? इसका उद्देश्य यह था कि भारत के प्रधान न्यायाधीश यह तय कर सकें कि क्या किसी न्यायाधीश के खिलाफ संवैधानिक कर्तव्यों को निभाने में विफल रहने के कारण कोई कार्रवाई होनी चाहिए या नहीं। इसी वजह से पहले प्राथमिक जांच जरूरी होती है, ताकि यह देखा जा सके कि आरोपों में सच्चाई है या नहीं।
शेखर यादव के मामले में, सुप्रीम कोर्ट केवल यह तय करने जा रही थी कि उन्होंने जो बयान दिए — जो कि मेरे अनुसार साम्प्रदायिक थे — क्या उन्हें देना उचित था या नहीं, और क्या ऐसे बयान देने के बाद वे न्यायाधीश बने रह सकते हैं या नहीं। अगर सरकार को इन-हाउस प्रक्रिया पसंद नहीं है, तो उसे रोकने का एक औपचारिक तरीका है।”
जस्टिस यशवंत वर्मा के मामले पर:
जस्टिस शवंत वर्मा के मामले को लेकर कपिल सिब्बल ने आरोप लगाया कि सरकार उन्हें हटाने की कोशिश कर रही है — इन-हाउस जांच रिपोर्ट के आधार पर — न कि न्यायाधीश (जांच) अधिनियम के तहत निर्धारित प्रक्रिया के अनुसार। उन्होंने कहा कि ऐसा करना असंवैधानिक है, क्योंकि इन-हाउस रिपोर्ट केवल भारत के प्रधान न्यायाधीश के लिए होती है।
सिब्बल ने कहा, "मुझे जानकारी मिली है कि सरकार यह कह रही है कि हम इस मामले को जजेज (इंक्वायरी) एक्ट के तहत नहीं भेजना चाहते और न्यायाधीश को इन-हाउस रिपोर्ट के आधार पर हटाना चाहते हैं, जिसे राष्ट्रपति को भेज दिया गया है। मैं इस सरकार को चेतावनी देना चाहता हूं कि अगर वह ऐसा करती है, तो यह पूरी तरह से असंवैधानिक होगा, क्योंकि इन-हाउस रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट ऑफ इंडिया के लिए थी — यह कोई ऐसी जांच नहीं है जिसे महाभियोग की प्रक्रिया के रूप में आगे बढ़ाया जा सके।
अगर ऐसे उदाहरण बनाए जाते हैं, तो यह न्यायपालिका की स्वतंत्रता के लिए खतरा है। क्योंकि अगर एक बार इन-हाउस प्रक्रिया पूरी हो गई और उसके बाद किसी न्यायाधीश को जजेज इंक्वायरी एक्ट के बिना ही हटा दिया गया, तो यह न्यायपालिका पर परोक्ष नियंत्रण का तरीका बन जाएगा। यह बहुत खतरनाक है कि इन-हाउस प्रक्रिया की रिपोर्ट के आधार पर न्यायाधीशों को हटाना शुरू कर दिया जाए, चाहे वे निष्कर्ष सही हों या गलत।”
सिब्बल ने यह भी टिप्पणी की कि उपराष्ट्रपति धनखड़ जब सरकार के खिलाफ मामला होता है तो अनुचित और असंतुलित नाराज़गी दिखाते हैं। उदाहरण के तौर पर उन्होंने तमिलनाडु के राज्यपाल से जुड़ा मामला उठाया, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने 10 विधेयकों को — जो जनवरी 2020 से लंबित थे — स्वीकृत मान लिया था।
उपराष्ट्रपति ने उस समय कहा था कि सुप्रीम कोर्ट अनुच्छेद 142 का उपयोग "न्यूक्लियर मिसाइल" की तरह कर रही है और यह सवाल उठाया था कि कोर्ट राष्ट्रपति और राज्यपाल को किसी विधेयक पर कार्रवाई के लिए समयसीमा कैसे तय कर सकती है। इसके बाद राष्ट्रपति ने यह मुद्दा संविधान पीठ के पास भेजा कि क्या राष्ट्रपति पर समयसीमा लागू की जा सकती है।
सिब्बल ने कहा, "क्या हम आज उसी विषय पर बात नहीं कर रहे हैं? कि कोई भी अदालत राज्यसभा के सभापति को यह निर्देश नहीं दे सकती कि वे महाभियोग प्रस्ताव को निश्चित दिनों, महीनों या वर्षों में स्वीकार करें — क्योंकि यह उनका संवैधानिक अधिकार है और संविधान में इसके लिए कोई समयसीमा निर्धारित नहीं है।"