न्यायपालिका ने हमेशा निष्पक्ष और स्वतंत्र चुनावों की रक्षा की: जस्टिस सूर्यकांत

Amir Ahmad

4 Aug 2025 4:54 PM IST

  • न्यायपालिका ने हमेशा निष्पक्ष और स्वतंत्र चुनावों की रक्षा की: जस्टिस सूर्यकांत

    सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि भारत में स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनावों की रक्षा करने में न्यायपालिका ने हमेशा अग्रणी भूमिका निभाई है। उन्होंने कहा कि न्यायपालिका एक स्थिरकारी शक्ति के रूप में कार्य करती रही है, ताकि लोकतंत्र का रक्तनिर्बाध रूप से प्रवाहित होता रहे।

    जस्टिस सूर्यकांत पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट में आयोजित पहले वार्षिक 'एचएल सिब्बल स्मृति व्याख्यान' के अवसर पर बोल रहे थे, जिसे हाईकोर्ट बार एसोसिएशन द्वारा आयोजित किया गया था। इस अवसर पर चीफ जस्टिस शील नागु सीनियर एडवोकेट आरएस चीमा, सीनियर एडवोके कपिल सिब्बल सहित कई जज और गणमान्य लोग उपस्थित थे।

    जस्टिस सूर्यकांत ने कहा,

    “हमारे लोकतंत्र की एक विशेष बात यह है कि इसमें चुनावों की निष्पक्षता और स्वतंत्रता की रक्षा में न्यायपालिका की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। चुनाव केवल औपचारिक प्रक्रिया नहीं होते बल्कि लोकतंत्र की नींव होते हैं। अक्सर दुरुपयोग के खतरे में रहते हैं। ऐसे में चुनावों की न्यायिक पुनर्विचार के माध्यम से भ्रष्ट चुनावों को अमान्य कर देना और दोषी प्रत्याशियों को अयोग्य ठहराना हमारे लोकतांत्रिक ढांचे की शुचिता को बनाए रखने के लिए आवश्यक उपाय हैं।”

    उन्होंने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 32 की व्यापक व्याख्या के माध्यम से चुनाव आयोग को स्वतंत्र और गरिमा के साथ चुनाव कराने की शक्ति दी गई।

    लोकतांत्रिक कानूनों पर चर्चा करते हुए उन्होंने People's Union for Civil Liberties v. Union of India का उदाहरण दिया, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने जनप्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 की धारा 33B को असंवैधानिक करार दिया था। कहा गया था कि मतदाताओं को प्रत्याशियों के आपराधिक रिकॉर्ड और संपत्ति की जानकारी पाने का मौलिक अधिकार है।

    जस्टिस सूर्यकांत ने हाल ही के सीता सोरेन बनाम भारत संघ मामले का भी जिक्र किया, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने 1998 के पीवी नरसिम्हा राव फैसले को पलट दिया और कहा कि सांसदों और विधायकों को रिश्वत लेने के मामलों में अनुच्छेद 105(2) और 194(2) के तहत सुरक्षा नहीं दी जा सकती।

    उन्होंने सीनियर एडवोकेट एचएल सिब्बल के दृष्टिकोण की सराहना करते हुए कहा कि वह चुनावी भ्रष्टाचार से जुड़े मामलों में न्यायालय को इस तरह की याचिकाओं को 'संविधानिक मर्यादा' में रहते हुए देखने का आग्रह करते हैं। साथ ही यह भी मानते हैं कि जनता की इच्छा और मतदाता का निर्णय सर्वोपरि है। जब तक यह साबित न हो कि चुनावी प्रक्रिया को पूरी तरह हाईजैक किया गया है, तब तक केवल आरोपों के आधार पर किसी जनप्रतिनिधि को हटाना उचित नहीं है।

    जस्टिस सूर्यकांत ने एचएल सिब्बल को याद करते हुए बताया कि वे 1943 में भारत के पहले हैबियस कॉर्पस मामले की पैरवी करने वाले वकील थे, जब इस कानूनी धारणा की कोई स्पष्ट अवधारणा भी नहीं थी। उस समय मजिस्ट्रेट स्वयं उनके साथ गए थे ताकि अवैध हिरासत से व्यक्ति को छोड़ा जा सके।

    बता दें, एचएल सिब्बल को दो बार पंजाब एंड हरियाणा दोनों राज्यों का एडवोकेट जनरल नियुक्त किया गया था। वह हमेशा राजनीति से दूर रहते हुए राज्य का प्रतिनिधित्व संवैधानिक कर्तव्य मानते थे। उन्हें 2006 में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया। उन्होंने मशहूर उर्दू लेखक सआदत हसन मंटो और इस्मत चुगताई के मामलों की भी पैरवी की थी। वह सीनियर एडवोकेट कपिल सिब्बल और पूर्व विदेश सचिव कंवल सिब्बल के पिता हैं।

    अंत में जस्टिस सूर्यकांत ने उन्हें एक मार्गदर्शक, मित्र और प्रेरणा बताते हुए कहा,

    “उनकी विद्वत्ता ने मेरे विचारों को आकार दिया, उनका स्नेह मुझे ऊंचाइयों तक ले गया और उनका जीवन मेरे लिए एक उपहार था।”

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