न्यायिक अनुशासनहीनता का आरोप: मद्रास हाईकोर्ट के वकीलों ने जस्टिस निशा बानू के तबादले पर CJI को लिखा पत्र

Amir Ahmad

4 Nov 2025 4:25 PM IST

  • न्यायिक अनुशासनहीनता का आरोप: मद्रास हाईकोर्ट के वकीलों ने जस्टिस निशा बानू के तबादले पर CJI को लिखा पत्र

    मद्रास हाईकोर्ट की जस्टिस निशा बानू के तबादले पर विवाद ने एक बार फिर हाईकोर्ट जजों के ट्रांसफर से जुड़े संवैधानिक और कानूनी प्रावधानों पर ध्यान केंद्रित किया है।

    भारतीय न्यायपालिका में जजों का तबादला एक संवेदनशील प्रक्रिया है, जो न्यायिक स्वतंत्रता और न्यायिक प्रशासन की आवश्यकता के बीच संतुलन साधती है।

    भारतीय संविधान का अनुच्छेद 222 हाईकोर्ट के जजों के तबादले से संबंधित है। यह प्रावधान कहता है कि राष्ट्रपति चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (CJI) से परामर्श करने के बाद एक हाईकोर्ट के जज को दूसरे हाईकोर्ट में स्थानांतरित कर सकते हैं।

    यह स्पष्ट करता है कि तबादले का आदेश अंतिम रूप से राष्ट्रपति द्वारा जारी किया जाता है, लेकिन यह शक्ति CJI के परामर्श के अधीन है। यह 'परामर्श' न्यायपालिका में CJI की प्राथमिक भूमिका को स्थापित करता है।

    हालांकि संविधान केवल CJI से परामर्श की बात करता है, सुप्रीम कोर्ट के कई फैसलों ने तबादलों की प्रक्रिया को विकसित किया है।

    वर्तमान में जजों के तबादले का निर्णय सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम द्वारा लिया जाता है। कॉलेजियम में CJI और सुप्रीम कोर्ट के चार सीनियर जज शामिल होते हैं। कॉलेजियम ही तबादले की सिफारिश राष्ट्रपति को भेजता है, जो संवैधानिक प्रमुख के रूप में इसे अधिसूचित करते हैं।

    जस्टिस निशा बानू के मामले में कॉलेजियम द्वारा सिफारिश किए जाने के बाद केंद्र ने तबादले को अधिसूचित किया जिससे कानूनी प्रक्रिया पूरी हो गई।

    किसी जज का कार्यभार ग्रहण करने से इनकार करना या उसमें जानबूझकर देरी करना न्यायिक अनुशासन के गंभीर उल्लंघन के रूप में देखा जाता है जैसा कि मद्रास हाईकोर्ट के वकीलों ने अपने पत्र में उल्लेख किया।

    जजों के तबादले का एक महत्वपूर्ण पहलू वरिष्ठता (Seniority) का निर्धारण है। एक हाईकोर्ट से दूसरे हाईकोर्ट में तबादला होने पर जज की सीनियरिटी अक्सर प्रभावित होती है, जैसा कि जस्टिस बानू के मामले में मदुरै बार ने आपत्ति जताई।

    हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने स्थापित किया है कि जनहित और बेहतर न्यायिक प्रशासन व्यक्तिगत असुविधा या सीनियरिटी पर वरीयता पा सकते हैं।

    इस पूरे मामले में मद्रास हाईकोर्ट के वकीलों ने यह तर्क देकर न्यायिक अनुशासन बनाए रखने पर जोर दिया कि एक बार तबादला अधिसूचित हो जाने के बाद जज का तुरंत कार्यभार ग्रहण करना न्यायिक प्रणाली की अखंडता और सुचारू कार्यप्रणाली के लिए आवश्यक है।

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