जस्टिस मंजुला चेल्लूर ने पश्चिम बंगाल चुनाव के बाद हिंसा के मामलों में जांच के बनी एसआईटी की निगरानी के लिए 10 लाख रुपये का मानदेय लेने से इनकार किया

LiveLaw News Network

16 Sep 2021 8:34 AM GMT

  • जस्टिस मंजुला चेल्लूर ने पश्चिम बंगाल चुनाव के बाद हिंसा के मामलों में जांच के बनी एसआईटी की निगरानी के लिए 10 लाख रुपये का मानदेय लेने से इनकार किया

    जस्टिस (रिटायर्ड) मंजुला चेल्लूर ने कलकत्ता हाईकोर्ट को बताया है कि वह पश्चिम बंगाल में चुनाव बाद हुई हिंसा के मामलों की जांच के लिए बनी एसआईटी के लिए कोर्ट द्वारा निर्धारित 10 लाख रुपये के मानदेय को स्वीकार नहीं करना चाहती हैं।

    जिसके बाद हाईकोर्ट ने निर्देश दिया कि राज्य सरकार को जस्टिस चेल्लूर को मानदेय का भुगतान करने की आवश्यकता नहीं है। वह अगस्त 2014- अगस्त 2016 तक कलकत्ता हाईकोर्ट की मुख्य न्यायाधीश रही हैं।

    गुरुवार को कार्यवाहक चीफ जस्टिस राजेश बिंदल और जस्टिस राजर्षि भारद्वाज की पीठ ने कहा, "हमें जस्टिस मंजुला चेल्लूर से एक संदेश मिला है, जिसमें कहा गया है कि वह अदालत द्वारा निर्धारित मानदेय लेने की इच्छुक नहीं हैं। हम अनुरोध स्वीकार करते हैं। राज्य उन्हें कोई मानदेय नहीं दे सकता है। हालांकि, 3 सितंबर, 2021 के आदेश के आदेश में अन्य सभी निर्देशों का पालन किया जा सकता है।"

    अदालत ने 3 सितंबर को दिए आदेश में जस्टिस मंजुला चेल्लूर को हाईकोर्ट द्वारा गठित विशेष जांच दल (एसआईटी) का नेतृत्व सौंपा था। एसआईटी को चुनाव बाद हिंसा के आरोपों की जांच के लिए का जिम्मा दिया गया था। साथ ही, राज्य सरकार को जस्टिस मंजुला चेल्लूर को उक्त कार्य के लिए 10 लाख रुपये की राशि देने का आदेश दिया गया था ।

    19 अगस्त के आदेश में हाईकोर्ट ने एसआईटी गठन का निर्देश दिया था, जिसे हत्या, बलात्कार और महिलाओं के खिलाफ अपरधा की जांच का जिम्‍मा सौंपा गया था। एसआईटी में पश्चिम बंगाल कैडर के आईपीएस अधिकारियों- सुमन बाला साहू और सौमेन मित्रा और रणवीर कुमार को शामिल किया गया था।

    केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) को मई 2021 में पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव की घोषणा के बाद राज्य में कथ‌ित चुनाव संबंधित हत्या, बलात्कार और महिलाओं के खिलाफ अपराध के मामलों की जांच का निर्देश दिया गया था। कोर्ट ने निर्दिष्ट किया था कि सीबीआई की जांच कोर्ट की निगरानी में होगी।

    5 जजों की बेंच, जिसमें कार्यवाहक चीफ जस्टिस राजेश बिंदल , जस्टिस आईपी मुखर्जी , जस्टिस हरीश टंडन, जस्टिस सौमेन सेन और जस्टिस सुब्रत तालुकदार शामिल थे, तीन ‌सितंबर के आदेश में कहा था,

    " कार्यभार संभालने के लिए माननीय सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जज की तत्काल अनुपलब्धता के कारण हम आदेश के उपरोक्त भाग को संशोधित करना उचित समझते हैं। यह कहते हुए कि एसआईटी के कामकाज की निगरानी हाईकोर्ट के रिटायर्ड चीफ ज‌स्टिस द्वारा की जानी है। इसके अलावा हमने माननीय सुश्री जस्टिस मंजुला चेल्लूर, इस न्यायालय की रिटायर्ड चीफ ज‌स्टिस से कार्यभार ग्रहण करने का अनुरोध किया था। उन्होंने बहुत कृपापूर्वक हमारे अनुरोध को स्वीकार कर लिया है। तदनुसार हम उन्हें कार्य का अवलोकन करने के लिए नियुक्त करते हैं"।

    3 सितंबर के आदेश में कोर्ट ने आगे निर्देश दिया था कि जस्टिस चेल्लूर को रहने के लिए मुख्य न्यायाधीश के लिए उपयुक्त स्थान की व्यवस्था की जानी चाहिए।

    गुरुवार को याचिकाकर्ताओं की ओर से शिकायत की गई थी कि चुनाव बाद हिंसा के कई कथित पीड़ित एनएचआरसी समिति के पास शिकायत दर्ज कराने में असमर्थ रहे हैं। याचिकाकर्ताओं की दलील थी कि वर्तमान में बलात्कार और यौन उत्पीड़न जैसे अपराधों की जांच कर रही है सीबीआई बार-बार अनुरोध के बावजूद पीड़ितों की शिकायत दर्ज नहीं कर रही है।

    हालांकि, बेंच ने ऐसी शिकायतों पर विचार करने से इनकार कर दिया क्योंकि यह पाया गया कि वे केवल जस्टिस चेल्लूर के पारिश्रमिक के संबंध में एक सीमित निर्देश पारित करने के लिए इकट्ठे हुए थे।

    वहीं, पश्चिम बंगाल सरकार ने कलकत्ता हाईकोर्ट के उक्त आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। सोमवार को, पश्चिम बंगाल की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने एनएचआरसी द्वारा गठित फैक्ट फाइंडिंग कमेटी की तटस्थता पर सवाल उठाया था। एनएचआरसी समिति को पश्चिम बंगाल में चुनाव के बाद की हिंसा के मामलों पर एक रिपोर्ट तैयार करने की जिम्मेदारी सौंपी गई थी, जिसे बाद में कलकत्ता हाईकोर्ट ने अपने 19 अगस्त के आदेश में संदर्भित किया था।

    केस शीर्षक: अनिंद्य सुंदर दास बनाम यून‌ियन ऑफ इंडिया और अन्य जुड़े मामले


    Next Story