'न्यायपालिका उग्रवादी बहुसंख्यकवाद के ज्वार को रोकने में विफल': लोकसभा में न्यायिक स्वतंत्रता पर चर्चा के दौरान शशि थरूर ने कहा

LiveLaw News Network

8 Dec 2021 9:52 AM GMT

  • न्यायपालिका उग्रवादी बहुसंख्यकवाद के ज्वार को रोकने में विफल: लोकसभा में न्यायिक स्वतंत्रता पर चर्चा के दौरान शशि थरूर ने कहा

    लोकसभा में हाईकोर्ट एंड सुप्रीम कोर्ट जजेज (सैलरी एंड कंड‌ीशन ऑफ सर्व‌िसेज) अमेंडमेंट बिल, 2021 को पेश किया गया है।

    विधेयक में हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के जजों की सैलरी और सेवा की शर्तों के विनियमन से संबंध‌ित अधिनियमों में संशोधन का प्रयास किया गया है। विधेयक में यह स्पष्ट किया गया है कि पेंशनभोगी-जज, जिस महीने में संबंधित आयु वर्ग के तहत न्यूनतम आयु पूरी करते हैं, पहले दिन से अतिरिक्त पेंशन या पारिवारिक पेंशन के हकदार होंगे।

    सभी दलों के सांसदों ने विचाराधीन विधेयक का समर्थन किया। साथ ही सभी ने कहा कि न्यायपालिका से संबंधित अन्य मुद्दे भी हैं, जिन पर लोकसभा को ध्यान देने और कार्रवाई की आवश्यकता है।

    कांग्रेस सांसद डॉ. शशि थरूर ने हाईकोर्ट के जजों की रिटायरमेंट की उम्र और लंबित मामलों पर इसके असर का मुद्दा उठाया। उन्होंने बताया कि वेंकटचलैया रिपोर्ट 2002 ने सिफारिश की थी कि हाईकोर्ट जजों की रिटायरमेंट की आयु बढ़ाकर 65 वर्ष की जाए। अन्य देशों में मानक सेवानिवृत्ति की आयु 70 वर्ष या जीवन भर की नियुक्ति भी है।

    थरूर ने न्यायिक पदों पर रिक्तियों की दरों पर भी बात की। उन्होंने कहा कि "न्याय में विलंब न्याय से वंचित किए जाने जैसा है, लेकिन हम न्याय कैसे दे सकते हैं जब देश भर के 25 हाईकोर्टों में 406 पद खाली पड़े हैं। इस मुद्दे पर एक बार एक सिटिंग सीजेआई को प्रधानमंत्री सामने आंसू बहाना पड़ा था, लेकिन उनके आंसुओं का भी सरकार पर कोई असर नहीं पड़ा।'

    थरूर ने ज्यूडिसियल पेंडेंसी का मुद्दा भी उठाया। उन्होंने कहा 2010 और 2020 के बीच, सालाना 2% की दर से लंबित मामलों की संख्या बढ़ी है।

    थरुर ने बताया कि भारत में जज-और जनता का अनुपात दुनिया में सबसे कम है। उन्होंने सरकार से जजों की सेवा की शर्तों, सेवानिवृत्ति की आयु में वृद्धि, रिक्तियों को भरने और लंबित मामलों में कमी पर गौर करने का आग्रह किया।

    थरूर ने कहा कि सेवा की अच्छी स्थिति होने से न्यायपालिका की स्वतंत्रता को भी मजबूती मिलेगी। उन्होंने कहा एक जज जितनी जल्दी सेवानिवृत्त होता है, सेवानिवृत्ति के बाद की गतिविधि की आवश्यकता उतनी ही अधिक होती है।

    उन्होंने कहा,

    "हम संविधान के अनुच्छेद 50 के विपरीत न्यायपालिका पर कार्यपालिका का व्यापक, कभी-कभी अदृश्य और कभी-कभी प्रत्यक्ष नियंत्रण देख रहे हैं। कई जजों का अंधाधुंध स्थानांतरण किया गया है, भले ही उनकी सेवानिवृत्ति कुछ महीने ही दूर रही गई हो। इनमें से कम से कम दो जजों ने इशरत जहां और सोहराबुद्दीन मामले में सरकार के दृष्टिकोण से विपरीत निर्णय दिए थे। हम राज्यसभा सांसद के रूप में पूर्व सीजेआई की नियुक्ति देख चुके हैं।"

    बाबरी मस्जिद विध्वंस का जिक्र करते हुए थरूर ने कहा कि वह "उग्रवादी बहुसंख्यकवाद के अप्रतिरोध्य ज्वार को न रोक पाना न्यायपालिका की ओर से भी विफलता थी।"

    थरूर ने कहा,

    "अपनी निरंतर निष्क्रियता से अदालत ने न केवल नागरिकों के खिलाफ सरकार के कार्यों को दंडमुक्त किया है, बल्कि कुछ आलोचकों को यह पूछने के लिए प्रेरित किया है कि क्या सुप्रीम कोर्ट को भी संविधान द्वारा दिए गए अधिकारों के उल्लंघन के लिए एक सहयोगी माना जाना चाहिए।"

    "न्यायपालिका की निष्क्रियता लगभग हमेशा सत्ता में रहने वालों के पक्ष में होती है। जब अदालतें सरकार के खिलाफ मामलों की सुनवाई करने में विफल होती हैं, तो यह डिफॉल्ट रूप से सरकार के पक्ष में निर्णय लेती है। यही चिंता का विषय है।"

    हालांकि ट्रेजरी बेंच के सदस्यों ने थरूर की इन टिप्पणियों पर आपत्ति जताते हुए आरोप लगाया कि वे जजों पर टिप्पणी करने जैसी हैं, और यह अनुच्छेद 121 के तहत निषिद्ध है।

    थरूर ने सरकार से सेवानिवृत्ति की आयु बढ़ाने, लंबित पदों को कम करने, रिक्तियों को भरने, सरकार में सेवानिवृत्ति के बाद की नियुक्ति को समाप्त करने या कूलिंग-ऑफ अवधि और स्वतंत्रता की गारंटी के मुद्दों को हल करने के लिए एक बड़े विधेयक का प्रस्ताव करने का आग्रह करके अपना भाषण पूरा किया।

    द्रमुक सांसद दयानिधि मारन ने सामान्य सेवानिवृत्ति की आयु 65 या 67 वर्ष करने के लिए कानून लाने और सुप्रीम कोर्ट की क्षेत्रीय पीठ बनाने का आग्रह किया।

    तृणमूल सांसद कल्याण बनर्जी ने हाईकोर्टों में कॉलेजियम की सिफारिशों को रोके जाने का मुद्दा उठाया। उन्होंने मद्रास हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति संजीव बनर्जी के हालिया स्थानांतरण के आलोक में हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीशों के स्थानांतरण का मुद्दा भी उठाया।

    शिवसेना सांसद अरविंद सावंत ने कहा कि कॉलेजियम की सिफारिशों को रोकने की समस्या इसलिए आती है क्योंकि न्यायाधीशों की नियुक्ति पर कोई समय सीमा निर्दिष्ट नहीं है। उन्होंने सिफारिश की कि देश में प्रतीक्षा सूची की व्यवस्था होनी चाहिए।

    पीआरएपी सांसद वंगा गीतविश्वनाथ ने उच्च न्यायपालिका में महिलाओं के कम प्रतिनिधित्व का मुद्दा उठाया और सरकार से सामाजिक विविधता और लिंग विविधता के मुद्दों को हल करने का आग्रह किया। वहीं, बीजू जनता दल के सांसद पिनाकी मिश्रा ने सरकार द्वारा विधेयक लाने के तरीके पर चिंता व्यक्त की।

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