अवैध प्रवासियों और धार्मिक कट्टरवाद के बारे में चिंता जताने वाले पत्रकार पर सिर्फ़ दुश्मनी बढ़ाने का अपराध नहीं बनता: गुवाहाटी हाईकोर्ट

Shahadat

18 Aug 2025 10:56 AM IST

  • अवैध प्रवासियों और धार्मिक कट्टरवाद के बारे में चिंता जताने वाले पत्रकार पर सिर्फ़ दुश्मनी बढ़ाने का अपराध नहीं बनता: गुवाहाटी हाईकोर्ट

    गुवाहाटी हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि अवैध प्रवासियों, धार्मिक कट्टरवाद, आतंकवादी गतिविधियों और मूल निवासियों के लिए जनसांख्यिकीय खतरों के बारे में चिंता जताने वाले पत्रकार को अपने आप में समूहों के बीच दुश्मनी पैदा करने या हिंसा भड़काने का प्रयास नहीं माना जा सकता।

    पत्रकारिता का मूल कर्तव्य समाज से जुड़े ज्वलंत मुद्दों को उठाना है, इस पर ज़ोर देते हुए जस्टिस प्रांजल दास की पीठ ने 'दैनिक जन्मभूमि' के पत्रकार कोंगकोन बोरठाकुर के खिलाफ भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 153-ए [विभिन्न समूहों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा देना...]/34 के तहत दर्ज 2016 की FIR रद्द कर दी।

    संक्षेप में मामला

    11 नवंबर, 2016 को शिवसागर स्थित अखिल असम मुस्लिम छात्र संघ (AAMSU) के अध्यक्ष फ़रीद इस्लाम हज़ारिका ने याचिकाकर्ता के खिलाफ FIR दर्ज कराई। FIR में आरोप लगाया गया कि उनकी रिपोर्ट ने सांप्रदायिक सद्भाव बिगाड़ा है और वह विभिन्न जनसांख्यिकीय समूहों के बीच सांप्रदायिक शांति को भंग करने का प्रयास कर रहे हैं।

    उल्लेखनीय है, संबंधित रिपोर्ट में कथित तौर पर संबंधित क्षेत्र में धार्मिक कट्टरवाद के मुद्दे को उजागर किया गया; पड़ोसी देश से आए अवैध प्रवासियों द्वारा उत्पन्न जनसांख्यिकीय ख़तरा और इस तरह के कट्टरवाद से जुड़ी कुछ उग्रवादी गतिविधियां भी।

    FIR को चुनौती देते हुए याचिकाकर्ता ने हाईकोर्ट का रुख किया और तर्क दिया कि प्रकाशन जमीनी स्तर के शोध पर आधारित था। FIR में भारतीय दंड संहिता की धारा 153ए के प्रावधानों का खुलासा नहीं किया गया।

    पीठ ने शुरू में ही प्रथम दृष्टया यह राय व्यक्त की कि रिपोर्ट जमीनी स्तर के शोध का परिणाम है और जब इसे भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 153ए के तहत परखा जाता है तो यह नहीं कहा जा सकता कि याचिकाकर्ता-आरोपी का इरादा विभिन्न जनसंख्या समूहों के बीच दुश्मनी पैदा करने या हिंसा भड़काने का था, जिसमें अपेक्षित मानसिक प्रवृत्ति हो।

    पीठ ने टिप्पणी की,

    "...इजहार में आरोपों को जन्म देने वाली अखबार की रिपोर्ट की जांच करने पर मुझे लगता है कि प्रथम दृष्टया, एक पत्रकार के रूप में आरोपी याचिकाकर्ता ने किसी भी जातीय या धार्मिक समूह पर आक्षेप नहीं लगाया।"

    अदालत ने आगे कहा,

    "यह कहने की ज़रूरत नहीं है कि पत्रकारिता का मूल कर्तव्य समाज से जुड़े ज्वलंत मुद्दों को उठाना है। अवैध प्रवासियों, धार्मिक कट्टरवाद, उग्रवादी गतिविधियों और मूल निवासियों के लिए जनसांख्यिकीय खतरों के बारे में चिंता व्यक्त करना अपने आप में समूहों के बीच दुश्मनी पैदा करने या हिंसा भड़काने का प्रयास नहीं माना जा सकता।"

    इस पृष्ठभूमि में अदालत ने याचिका में दम पाया और मामले की कार्यवाही को पूरी तरह से रद्द करते हुए इसे स्वीकार कर लिया।

    Case title - KONGKON BORTHAKUR vs. THE STATE OF ASSAM and ANR.

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