[जम्मू-कश्मीर सिविल सर्विस रूल्स] संविदा कर्मचारी सेवा समाप्ति से पहले पूर्ण नियमित जांच का हकदार नहीं: हाईकोर्ट
Shahadat
13 July 2023 11:47 AM IST
जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट ने मंगलवार को फैसला सुनाया कि संविदा कर्मचारी सेवा समाप्ति (termination) से पहले पूर्ण नियमित जांच का हकदार नहीं है, भले ही सेवा समाप्ति प्रकृति में कलंकात्मक हो।
जस्टिस संजय धर ने ये टिप्पणियां ग्राम रोज़गार सहायक (जीआरएस) द्वारा दायर मामले में कीं, जिसे ग्रामीण विकास विभाग ने उसकी सेवा समाप्ति कर दी। याचिकाकर्ता ने अपनी सेवा समाप्ति को चुनौती देते हुए तर्क दिया कि उसकी सेवा समाप्ति से पहले विभागीय जांच नहीं की गई।
उत्तरदाताओं ने तर्क दिया कि इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए कि याचिकाकर्ता की नियुक्ति प्रकृति में संविदात्मक थी और किसी भी स्थायी पद के खिलाफ नहीं थी, इसलिए वह समाप्ति से पहले भारत के संविधान के अनुच्छेद 311 के तहत अपेक्षित प्रक्रिया के पालन पर जोर नहीं दे सकता।
प्रतिवादी की दलीलें सुनने और रिकॉर्ड की जांच करने के बाद पीठ ने माना कि याचिकाकर्ता विभाग का नियमित कर्मचारी नहीं था और केवल अस्थायी आधार पर नियुक्त किया गया था। इसलिए वह नियमित कर्मचारी के समान संपूर्ण नियमित जांच का अधिकार की सुरक्षा का हकदार नहीं है।
पीठ ने कहा कि याचिकाकर्ता की नियुक्ति प्रकृति में संविदात्मक थी और विशिष्ट नियमों और शर्तों द्वारा शासित थी, जो सिद्ध दुर्व्यवहार या खराब प्रदर्शन के आधार पर तत्काल समाप्ति की अनुमति देती थी।
जिले में अनियमितताओं और फर्जी मनरेगा जॉब कार्ड घोटालों के आरोपों के बाद सेवा समाप्ति की गई, जिसके पहले आरोपों की जांच के लिए अधिकारियों की एक समिति गठित की गई थी, जिसने रिकॉर्ड की जांच में पाया था कि याचिकाकर्ता के खिलाफ अधिकांश आरोप प्रमाणित थे। कोर्ट ने यह भी कहा कि याचिकाकर्ता के पास कारण बताओ नोटिस का जवाब देने का अवसर था।
पीठ ने दर्ज किया,
“ऐसा प्रतीत होता है कि उत्तरदाताओं को याचिकाकर्ता द्वारा दिए गए स्पष्टीकरण में कोई तथ्य नहीं मिला, जब समिति द्वारा अपनी अंतिम रिपोर्ट में की गई टिप्पणियों के आलोक में उस पर विचार किया गया, जिसमें यह स्पष्ट रूप से संकेत दिया गया कि रिकॉर्ड की जांच के बाद प्रारंभिक रिपोर्ट में आरोप क्रमांक 4 और 5 को छोड़कर याचिकाकर्ता के खिलाफ सभी आरोप प्रमाणित पाए गए।"
इस बात पर जोर देते हुए कि याचिकाकर्ता नियमित कर्मचारी नहीं है और उसने भारत के संविधान के अनुच्छेद 311 की सुरक्षा का आनंद लेने के लिए अस्थायी स्थिति प्राप्त नहीं की, अदालत ने कहा कि अनुबंध के आधार पर नियुक्त व्यक्ति सिविल सेवा के दायरे में नहीं आता है। इसलिए वह समान सुरक्षा का हकदार नहीं है। संघ लोक सेवा आयोग बनाम गिरीश जयंती लाल वाघेला (2006) के मामले में सुप्रीम कोर्ट पर भरोसा किया गया।
पीठ ने कहा,
“…याचिकाकर्ता किसी सिविल पद पर नियमित कर्मचारी के रूप में काम नहीं कर रहा था, बल्कि वह एक वर्ष के लिए समेकित वेतन पर अस्थायी आधार पर कार्यरत था और उसकी नियुक्ति एक वर्ष की प्रारंभिक अवधि की समाप्ति के बाद भी जारी रखी गई। इसलिए उसके लिए उपलब्ध सुरक्षा उपाय भारत के संविधान के अनुच्छेद 311 और जम्मू और कश्मीर सिविल सेवा (वर्गीकरण, नियंत्रण और अपील) नियम, 1956 में निहित सिविल पद पर नियुक्त कर्मचारी याचिकाकर्ता के लिए उपलब्ध नहीं हैं।”
याचिकाकर्ता की सेवाओं की समाप्ति को बरकरार रखते हुए पीठ ने निष्कर्ष निकाला कि सेवा समाप्ति इंगेजमेंट की शर्तों के अनुसार और प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का पालन करने के बाद की गई।
केस टाइटल: आबिद अहमद गनई बनाम यूटी ऑफ जम्मू-कश्मीर एवं अन्य।
साइटेशन: लाइव लॉ (जेकेएल) 182/2023
याचिकाकर्ता के वकील: जहांगीर इकबाल गनई, सीनियर वकील, एम/एस मेहनाज़ राथर और जुनैद बिन आज़ाद के साथ।
उत्तरदाताओं के लिए वकील: मोहसिन एस. कादिरी, सीनियर एएजी, महा मजीद के साथ।
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