जे जे एक्ट | बाल न्यायालय को इस बात की जांच करनी चाहिए कि क्या बच्चे पर वयस्क के रूप में मुकदमा चलाया जाना चाहिए: सुप्रीम कोर्ट

Avanish Pathak

7 Oct 2023 11:24 AM GMT

  • जे जे एक्ट | बाल न्यायालय को इस बात की जांच करनी चाहिए कि क्या बच्चे पर वयस्क के रूप में मुकदमा चलाया जाना चाहिए: सुप्रीम कोर्ट

    Supreme Court

    सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में माना कि किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम, 2015 की धारा 19(1) उपधारा (i) का अनुपालन, जिसके तहत बाल न्यायालय को यह जांच करने के आवश्यकता है कि कथित अपराधी को बच्चे या वयस्‍क अपराधी के रूप में मुकदमा चलाने की जरूरत है या नहीं, यह महज औपचारिकता नहीं है।

    इस संबंध में कोर्ट ने यह भी कहा कि धारा 19 की उपधारा 1 के खंड (ii) में प्रयुक्त 'हो सकता है' शब्द को 'करेगा' के रूप में पढ़ा जाएगा।

    जेजे अधिनियम की धारा 19(1)(i) के तहत, बाल न्यायालय को यह तय करने के लिए जांच करनी है कि आपराधिक प्रक्रिया संहिता, 1973 के प्रावधानों के अनुसार एक वयस्क के रूप में बच्चे पर मुकदमा चलाने की आवश्यकता है या नहीं।

    जस्ट‌िस अभय एस ओक और जस्टिस पंकज मिथल की पीठ ने माना कि न्यायालय ने माना कि जेजे अधिनियम की धारा 18(3) के तहत जांच मामले की सुनवाई को बाल न्यायालय में स्थानांतरित करने का आदेश पारित करने के लिए केवल एक प्रारंभिक मूल्यांकन है और धारा 19(1)(i) के तहत आगे का मूल्यांकन किया जाना उसी के संबंध में आवश्यक है।

    उन्होंने कहा,

    “हाईकोर्ट की यह टिप्पणी कि धारा 18 की उप-धारा (3) के तहत पारित आदेश अंतिम रूप ले चुका है, पूरी तरह से इस बात को नजरअंदाज करता है कि धारा 18 की उप-धारा (3) के तहत आदेश एक बच्चे के एक वयस्क के रूप में सुनवाई के सवाल पर अंतिम निर्णय नहीं है। कारण यह है कि धारा 18 की उप-धारा (3) के तहत आदेश धारा 15 के तहत किए गए प्रारंभिक मूल्यांकन पर आधारित है।

    चूंकि ऐसा आदेश केवल प्रारंभिक मूल्यांकन पर आधारित है, इसलिए कानून सक्षम बाल न्यायालय द्वारा धारा 19 की उप-धारा (1) के संदर्भ में आगे की जांच का प्रावधान करता है। इसलिए, बाल न्यायालय धारा 19 की उप-धारा (1) के खंड (i) के तहत जांच करने की आवश्यकता को खारिज नहीं कर सकता है।"

    इस मामले में, जेजे अधिनियम की धारा 18(3) के तहत पारित एक आदेश के आधार पर, किशोर न्याय बोर्ड ने मामले को क्षेत्राधिकार वाले बाल न्यायालय में स्थानांतरित कर दिया। जब इसे हाईकोर्ट में चुनौती दी गई, तो यह माना गया कि जेजे अधिनियम की धारा 15 (बोर्ड द्वारा जघन्य अपराधों में प्रारंभिक मूल्यांकन) के तहत मूल्यांकन करने की आवश्यकता का अनुपालन करने के बाद ही, जेजे अधिनियम की धारा 18 की उप-धारा (3) के तहत एक आदेश पारित किया गया था। धारा 18(3) के तहत प्रारंभिक मूल्यांकन के आधार पर जेजे बोर्ड मामले की सुनवाई को बाल न्यायालय में स्थानांतरित करने का आदेश पारित कर सकता है, जिसके पास ऐसे अपराधों की सुनवाई का अधिकार क्षेत्र है।

    शीर्ष अदालत ने कहा कि धारा 18 के तहत स्थानांतरण का आदेश केवल प्रारंभिक मूल्यांकन पर आधारित है।

    उन्होंने कहा,

    “..धारा 19 की उप-धारा 1 के खंड (i) के संदर्भ में जांच करना कोई खाली औपचारिकता नहीं है। इसका कारण यह है कि यदि बाल न्यायालय इस निष्कर्ष पर पहुंचता है कि बच्चे पर वयस्क के रूप में मुकदमा चलाने की कोई आवश्यकता नहीं है, तो वह इस अर्थ में अलग व्यवहार करने का हकदार होगा कि उसके खिलाफ केवल जेजे अधिनियम की धारा 18 के तहत कार्रवाई की जा सकती है।

    इस प्रकार न्यायालय ने विवादित आदेशों को रद्द कर दिया और विशेष न्यायालय को जेजे अधिनियम की धारा 19 की उप-धारा 1 की आवश्यकता का पालन करने का निर्देश दिया।

    केस टाइटलः अजीत गुर्जर बनाम मध्य प्रदेश राज्य, आपराधिक अपील संख्या 3023/2023

    साइटेशन: 2023 लाइव लॉ (एससी) 857

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